कोलकाता। पश्चिम बंगाल विधानसभा के चुनाव में क्रमवार बढ़ते रहे हैं चुनावी के फेज। इस बार 8 फेज में हो रहे हैं। चुनाव के फेज लगातार बढ़ते रहे हैं। 2005 से 2021 तक विधानसभा के चुनाव के फेज बढ़ते रहे। इस पर वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर की टिप्पणी है- जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा, तासु दून कपि रूप देखावा। सुरेंद्र किशोर ने सुरसा यानी चुनावी आतंक-हिंसा और कपि यानी चुनाव आयोग को माना है।
सुरेंद्र किशोर लिखते हैं- सन 2005 में पश्चिम बंगाल विधानसभा का चुनाव 5 चरणों में हुआ था। सन 2011 में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 6 चरणों में हुआ था। सन 2016 में वहां 7 चरणों में चुनाव हुए थे। सन 2021 में आठ चरणों में चुनाव हो रहा है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुनील अरोड़ा ने कल कहा कि सुरक्षा संबंधी कारणों से अधिक चरणों में चुनाव हो रहा है।
सन 2019 के लोकसभा चुनाव के समय चुनाव आयोग के पर्यवेक्षक अजय नायक ने कहा था कि पश्चिम बंगाल की हालत आज वैसी ही है, जैसी हालत 15 साल पहले बिहार की थी। (याद रहे कि तब पटना हाइकोर्ट ने कहा था कि बिहार में जंगल राज है।) उस पर तृणमूल कांग्रेस ने अजय को आर.एस.एस. का एजेंट बताया था। अब ममता बनर्जी ने कहा है कि नरेंद्र मोदी के कहने पर आयोग ने आठ चरणों में चुनाव का निर्णय किया है।
सत्ताधारी वाम मोर्चा पर तो तब बूथ जाम करने व साइंटिफिक रिगिंग करने का आरोप लगता था। सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस पर तो आरोप है कि उसने पंचायत चुनाव में हजारों लोगों को नामांकन पत्र तक भरने नहीं दिया था।
इसके पुख्ता प्रमाण तो नहीं, लेकिन लोग बताते हैं कि पंचायत चुनाव में तृणमूल कांग्रेस के दबाव में जीते हुए को अफसरों को हराना पड़ा और हारे हुए को जीत का प्रमाणपत्र देना पड़ा। पंचायत चुनाव में प्रेसाइडिंग अफसर की भूमिका में रहे एक आदमी ने निजी बातचीत में यह कहा था।
यानी, जस जस सुरसा (हिंसा व चुनावी धांधली का) बदनु बढ़ावा। तासु दून कपि (चुनाव आयोग) रूप देखावा। बंगाल में हिंसा की रफ्तार जैसे जैसे बढ़ती गयी, चुनाव आयोग ने चुनाव के चरण की संख्या भी बढ़ायी।
सुरेंद्र किशोर कहते हैं कि कोई भी निष्पक्ष प्रेक्षक कहेगा कि वाम शासन काल की अपेक्षा ममता शासन में हिंसा और अराजकता बढ़ी है। स्वाभाविक ही है। केंद्र सरकार ने घोषणा कर दी है कि बंगाल चुनाव के बाद सी.ए.ए. लागू होगा। इस घोषणा के कारण तनाव स्वाभाविक है।