पश्चिम मेदिनीपुर की 9 सीटों का क्या है हाल, कौन मचाएगा धमाल

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बंगाल में अंतिम चरण के चुनाव में भी हिंसा नहीं थमी। सुरक्षा के व्यापक तामझाम के बावजूद बंगाल में आठवें चरण का मतदान भी शांतिपूर्ण नहीं रहा।
बंगाल में अंतिम चरण के चुनाव में भी हिंसा नहीं थमी। सुरक्षा के व्यापक तामझाम के बावजूद बंगाल में आठवें चरण का मतदान भी शांतिपूर्ण नहीं रहा।
  • डी. कृष्ण राव

कोलकाता। पश्चिम मेदिनीपुर की 9 सीटों का क्या है हाल, इस पर सरसरी नजर डालते हैं। बंगाल असेंबली के दूसरे फेज में यहां की 9 सीटों पर 1 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे। दूसरे चरण का चुनाव प्रचार आज थम गया। 30 सीटों के लिए वोट डाले जाएंगे। पहले चरण में भी 30 सीटों पर ही वोट डाले गये थे। पहले चरण के चुनाव के दौरान हिंसा की वारदात को देखते हुए चुनाव आयोग ने सेंट्रल फोरेस के जवानों को आत्मरक्षार्थ गोली चलाने की इजाजत दे दी है। दूसरे चरण में जिन सीटों पर वोट पड़ेंगे, उनमें पश्चिम मेदिनीपुर की 9 सीटों का क्या है हाल, इस पर सरसरी नजर डालते हैं।

पश्चिमी मेदिनीपुर जिले में विधानसभा की नौ सीटें हैं। प्रधानमंत्री रहते स्वर्गीय राजीव गांधी ने बड़े दुख के साथ एक बात कही थी। उन्होंने कहा था कि  केंद्र से जनता के लिए  मोटे पाइप के जरिए  विकास की धारा दिल्ली से भेजी जाती है, लेकिन आम आदमी तक पहुंचते-पहुंचते हैं, वह पाइप पतली हो जाती है और  बिना पानी के सूख जाती है। रेल शहर खड़गपुर के बोगदा में  वही बात दोहराते हुए कांग्रेस के एक पुराने कार्यकर्ता  श्यामसुंदर अधिकारी ने कहा कि दीदी तो आम आदमी के लिए  करना चाहती है, लेकिन  कट मनी और सिंडिकेट राज ने पूरे सिस्टम को खोखला कर दिया है। दूसरे चरण की  30 सीटों के लिए मतदान होना है, जिनमें पश्चिम मेदिनीपुर के खड़गपुर, केशपुर, चंद्रकोना, घटाल, दासपुर, देवरा, पिंगला, साबंग  व  नारायणगढ़ विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। इन नौ विधानसभा क्षेत्रों के किसी  कोने में जाएं तो वहां वोट के सबसे बड़े मुद्दे के रूप में तृणमूल के निचले स्तर के लोगों की  रातोंरात  कट मनी के सहारे बड़े आदमी बनने की  कहानी सुनाई देगी।

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एक समय खड़गपुर कांग्रेस  का गढ़ माना जाता था। ज्ञान सिंह सोहनपाल उसके नेता थे, जिन्हें लोग चाचा के नाम से जानते थे। जितने दिन वे जिंदा थे, खड़गपुर में  दूसरे किसी दल की इंट्री नहीं  हुई। खड़गपुर की राजनीति से जुड़ा और एक मशहूर नाम  सीपीआई के नारायण  चौबे का है। लेकिन यह सब अभी अतीत की बातें हैं। इस बार की खड़गपुर की लड़ाई तृणमूल कांग्रेस के भूमिपुत्र प्रदीप सरकार के साथ  भाजपा के सिल्वर स्क्रीन के नायक हरिन चट्टोपाध्याय के बीच है। रेल शहर खड़गपुर में  रेलवे कर्मचारियों के परिवारों का वोट  हमेशा एग्जिट का नियंत्रक रहा  और यहां के कुल वोटरों की  आधा से ज्यादा संख्या तेलुगु, उड़िया और बिहारी लोगों वोटरों की है। ऊपर से रेल निजीकरण का मुद्दा  पूरे खड़गपुर शहर में  आग की तरह फैला हुआ है। सब मिलाकर खड़गपुर का  चुनाव  कांटे की टक्कर का है। प्रदीप सरकार का कहना है कि  मैं 365 दिन यहां के लोगों के आसपास रहता हूं  और हरिन चट्टोपाध्याय का कहना है  लोगों की सेवा करने जब  सड़क पर उतर ही गया हूं तो अब हमेशा जनता जनार्दन के बीच ही रहेंगे। स्थानीय  व्यापारी  मिलन नाथ का कहना है कि दीदी के तुष्टीकरण की नीति का लाभ भाजपा को  जरूर मिलना चाहिए।

खड़गपुर शहर से निकल कर  देवरा घुसते ही एक चीज जरूर नजर में आयी कि राज्य के 2 पूर्व आईपीएस अधिकारियों  के बीच की लड़ाई  जरूर रंग लायी है। तृणमूल के उम्मीदवार  यहां के भूमि पुत्र  हुमांयू कबीर हैं, जो हाल ही में आईपीएस से इस्तीफा देकर  चुनाव मैदान में कूद पड़े हैं। दूसरी ओर  भाजपा से भारती घोष हैं। कभी मेदनीपुर में तृणमूल कांग्रेस उनके ही नियंत्रण में थी। भारती भी आईपीएस हैं और पुलिस सुपरिंटेंडेंट रह चुकी हैं। नाम बताने से  इनकार करते हुए स्थानीय एक टीचर का कहना है कि मेदिनीपुर के लोगों को एक टाइम का खाना न देने से भी चलेगा, लेकिन उनके  विचार को अगर कोई कुचलने की कोशिश करेगा  तो फिर विद्रोह होना  तय है। इसके जरिए  शिक्षक महाशय ने बहुत कुछ न बताते हुए भी बहुत कुछ बता दिया। थोड़ा आगे बढ़ते ही  डीजे की कान फाड़ू आवाज में खेला हबे का नारा लगाते हुए  टीएमसी के कार्यकर्ता नाचते दिखे। चाय की दुकान में बैठे 70 साल के एक बुजुर्ग इससे काफी नाखुश हैं। लेकिन हमने जब यह कहा कि आप मना क्यों नहीं करते तो  हमारी तरफ  गुस्से से देखते हुए कहा-  कौन जाएगा उन्हें मना करने और मार खाने?

देवरा के भाजपा उम्मीदवार  भारती घोष का कहना है कि  2019 के लोकसभा चुनाव में  देवरा सीट पर भाजपा  को बढ़त मिली थी। इस बार इस बढ़त को काफी आगे ले जाना है। भारती की यह बात  सुनकर हुमांयू कबीर का कहना है कि आने वाला समय ही बताएगा कि देवरा किसका है।

देवरा से निकलकर पिंगला घुसते ही तृणमूल कांग्रेस का लंबा  रोड शो दिखा। इस रोड शो में भी खेला होबे स्लोगन  के बीच आगे आगे चलते पिंगला के तृणमूल उम्मीदवार अजीत माइती चल रहे थे। अजीत माइती का कहना है कि  भाजपा यहां गलत प्रचार कर, लोगों को सपने दिखाकर कई सीटें जीतना चाहती है, लेकिन लोग अब भी तृणमूल की दीदी के साथ ही हैं। रोड शो आगे निकलते ही हमारे बातें सुन रहे कई युवकों में से एक ने आगे आकर  कहा कि आप लिख लीजिए, यह सीट  किसी भी कीमत पर तृणमूल कांग्रेस नहीं जीतेगी। क्योंकि लॉकडाउन और तूफान में  तृणमूल के नेताओं ने किस तरह अपने पॉकेट भरे, लोग सब कुछ देख रहे हैं। अगर  ईवीएम तक पहुंच पाये तो तृणमूल का खेल जरूर बिगड़ेगा। पिंटू हाजरा नाम के अन्य एक युवक का कहना था कि बेरोजगारी के कारण हमारे यहां के  आधा से ज्यादा युवा  महाराष्ट्र, चेन्नई में रहते हैं। घर में कोई असुविधा होने पर 2000 किलोमीटर सफर कर आना पड़ता है। हमारे यहां अगर  रोजगार की सुविधा होती तो हम क्यों जाते बाहर। यहां भाजपा उम्मीदवार  अंतरा भट्टाचार्य  जिला परिषद की  सदस्य  रह चुकी हैं। उनका कहना है कि  पिंगला के युवा और महिलाएं उनके साथ हैं। जीतना के लिए केवल समय का इंतजार है।

सबंग  राज्य के दबंग नेता  मानस भुइयां का गढ़ माना जाता है। वाममोर्चा के 34 साल में केवल एक बार 510 मतों से वे हारे थे। तब वे कांग्रेस में थे।  2016 में  पार्टी परिवर्तन कर  तृणमूल कांग्रेस में ज्वाइन किया था। 42 साल के राजनीतिक कैरियर में  इसके पहले कभी भी मानस भुइयां को इतनी दौड़-धूप करते  देखा नहीं गया। अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं में ही उनके प्रति शिकायत है। यह कि मानस भुइयां उनसे दुर्व्यवहार करते हैं। एक समय उन्हीं के चुनावी एजेंट  रहे यहां के दबंग नेता  अमूल्य माइती को भाजपा ने इस बार टिकट दिया। कुछ ही दिन हुए हैं उन्हें  तृणमूल छोड़ भाजपा में आये। अमूल्य माइती का कहना है  कि पूरे सबंग में  मानस भुइयां के खिलाफ जोरदार हवा है। उनका हारना तय है। यह बात सुनकर  मानस का कहना है जो भी हो, मैं तो उसका गुरु हूं।

केशपुर  मैं घुसते ही  वह जमाना याद आ गया, जब पहली बार  ममता बनर्जी ने अपने उम्मीदवार  विक्रम सरकार को जिताने के लिए  मोहम्मद रफीक को  कमान सौंपी थी  और एक महीना में  केशपुर नरक बन गया था। रोज मर्डर की खबर से  केशपुर एक भयंकर नाम बन गया था। आज वहां शांति तो है, लेकिन एक डर हमेशा सताता है। ऐसा ही कहना है यहां के बैटरी रिक्शा चालक मधुसूदन का। देओल बाजार पहुंचते ही सामने मिल गये प्रख्यात  अंग्रेजी ग्रामर के लेखक भाजपा के उम्मीदवार  पृथ्वीश रंजन। उन्होंने बताया कि  यहां मुझे हिंदू-मुसलमान  सेंटीमेंट की जरूरत नहीं है। मैं अपने ग्रामर की किताब के कारण लोगों के मन में पहले से ही बैठा हुआ हूं। तृणमूल उम्मीदवार शिवली शाहा का कहना है कि पश्चिम बंगाल में अगर कोई भी एक  सुनिश्चित  सीट है, तो वह है  केशपुर। सीपीएम मुख्यालय जमशेद अली भवन  पहुंचते ही माकपा के उम्मीदवार रामेश्वर  धूप से बचने के लिए थोड़ा विश्राम करते मिल गये। कभी यहां से पूरा मेदिनीपुर नियंत्रित होता था। उनका कहना है कि इस बार यहां माकपा अपना  पुराना इतिहास  लिखेगी, लेकिन  यह उम्मीद खुद माकपा के निचले स्तर के कार्यकर्ताओं में नहीं है। शमशाद नाम के एक कार्यकर्ता का कहना है  कि माकपा को जीतने में अभी और बहुत समय लगेगा।

पश्चिम मेदिनीपुर के अगर किसी एक जगह के सबसे ज्यादा लोग  महाराष्ट्र में सोना का काम करते हैं, तो वह है दासपुर। यहां के लोगों की आर्थिक अवस्था  काफी मजबूत है। ज्यादातर युवा  महाराष्ट्र समेत दूसरे राज्यों में रहते हैं, लेकिन लॉकडाउन के समय इनकी स्थिति बहुत खराब  हो गयी थी। कोरोना के समय  ट्रेन चलाने की अनुमति न देने के कारण  ममता बनर्जी पर लोगों का गुस्सा है। तृणमूल उम्मीदवार ममता भैया का कहना है कि बुद्धदेब भट्टाचार्य के समय काम नहीं हुआ। अभी तो विकास का काम हो रहा है। लोग हमारे साथ हैं। इस बात को सुन कर हंसते हुए भाजपा के उम्मीदवार प्रशांत बेरा का कहना था कि  आप लोगों से पूछ लीजिए। लोगों से  आपको जवाब जरूर मिल जाएगा। दुकानदार सुकुमार बेरा का कहना था कि यहां अभी बीजेपी की हवा है। 1 अप्रैल को चुनाव होना है। उसके पहले हवा तूफान में बदल जाएगी, क्योंकि स्थानीय तृणमूल नेताओं ने 4 तल्ला मकान बनवा लिये, जिनके पास रहने की जगह तक नहीं थी।

चंद्रकोना और घटाल में लगभग एक ही किस्सा है। चंद्रकोना के किसान  रजनीकांत का कहना है-आलू की खेती में ₹50000 लगाते हैं तो हाथ में कुल ₹40000 मिल पाता है, क्योंकि  दाम नहीं मिलता। बाद में सुनते हैं कि बाजार में वही आलू ₹50 किलो बिक रहा है। आज तक इस सवाल का जवाब किसी ने  नहीं दिया कि ऐसा क्यों होता है। सपना तो बहुत दिखाया गया कोल्ड स्टोरेज का, लेकिन बिचौलिये लूट ले गए। कभी-कभी तो खेत से फसल उठाकर  ले जाने के लिए उल्टा हमें पैसा देना पड़ता है। घटाल हर साल  डूबता है। इसे रोकने के लिए एक मास्टर प्लान भी बनाया गया,  जो 30 साल से कहीं गायब है। घटाल के तृणमूल उम्मीदवार शंकर दुलाई  का कहना है है कि मास्टर प्लान तो तैयार है, लेकिन केंद्र की आपत्ति के कारण  उस पर अमल नहीं हो पाया। एक स्कूल टीचर का कहना है  कि सभी नेता चुनाव के बाद अपने-अपने पॉकेट भरने में लगे रहते हैं। कहां से मास्टर प्लान के बारे में इन्हें याद रहेगा। बहुत दिन देख चुके, अभी थोड़ा बदलाव की जरूरत है।

नारायणगढ़ विधानसभा क्षेत्र  एक समय  माकपा के नेता  सूर्यकांत मिश्रा का गढ़ हुआ करता था, लेकिन आज  यहां की लड़ाई  तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच हो गयी है। सीपीएम के उम्मीदवार तापस बाबू को  जरूर सूर्यकांत मिश्रा के  अच्छे वाम नेता होने का लाभ मिल रहा है, लेकिन जीतने  का सपना देखना भी मना है। नारायणगढ़ में तृणमूल के छोटे स्तर के नेताओं पर ढेर सारे धांधली के आरोप हैं। टीएमसी उम्मीदवार सूर्यकांत बाबू का कहना है कि  जिनके नाम पर धांधली का आरोप था, उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया। अब लोग  हमारे साथ हैं। यहां के एक स्कूल टीचर ने अपने नाम को उजागर न करने के अनुरोध के साथ कहा- देखिएगा, आने वाले समय में फिर सीपीएम लौटेगी। भले थोड़ा समय क्यों ना लगे।

दूसरा चरण- सीटों पर चुनाव- 30, वोटिंग तिथि- 1 अप्रैल

पश्चिम मेदिनीपुर- 9

पश्चिम मेदिनीपुर – 9

बांकुड़ा- 8

दक्षिण 24 परगना- 4

पश्चिम मेदिनीपुर में 2016 में किसके पास कितनी सीटें

टीएमसी- 7,

बीजेपी-1,

कांग्रेस-1

2019 लोकसभा चुनाव में किसको कितनी सीटों पर बढ़त

टीएमसी- 7

बीजेपी- 2

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