पिछड़ा/अतिपिछडा आयोग व तथा तीन तलाक पर रवैया बदले विपक्ष

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पटना। संसद में बुधवार से शुरू हुए मानसून सत्र में विपक्ष से पिछड़ा/अतिपिछडा आयोग तथा तीन तलाक बिल पर अड़ियल रवैया छोड़ने की अपील करते हुए प्रदेश भाजपा प्रवक्ता सह पूर्व विधायक श्री राजीव रंजन ने इन बिलों को अति महत्वपूर्ण करार दिया। उन्होंने कहा, “ 1955 से ही पिछड़ा/अतिपिछडा समुदाय के लोगों की यह मांग रही है कि SC/ST आयोग की तर्ज पर पिछड़ा/अतिपिछड़ा आयोग का भी गठन हो, जिससे उनका समाज भी SC/ST समुदाय के लोगों की तरह समुचित लाभ लेकर देश के विकास की मुख्यधारा से जुड़ सकें।

लेकिन इस महत्वपूर्ण विषय को कांग्रेस और उसके सहयोगियों ने आज तक लटकाए रखा है। आज भाजपा के लाख प्रयास करने के बावजूद भी कांग्रेस और उसके सहयोगी दल छोटे-छोटे तकनीकी चीजों को लेकर पिछड़ा/अतिपिछड़ा आयोग के गठन में अड़ंगा लगा रहे हैं। ज्ञातव्य हो कि पिछड़ा/अतिपिछड़ा आयोग में सालाना 50 से 55 हजार शिकायतें आती हैं, लेकिन आयोग को संवैधानिक दर्जा प्राप्त न होने के कारण उनमे से 1% शिकायतों का निपटारा भी नहीं हो पाता, जिसके कारण इस समुदाय के लोग मायूस हो लौट जाते हैं।

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इस मानसून सत्र में सरकार फिर से इन दोनों बिलों को सदन में पेश करने वाली है, इसलिए विपक्ष से हमारी मांग है कि अपनी हठधर्मिता छोड़े और संसद के काम काज में बेफिजूल अडंगा न डाले।”

श्री रंजन ने आगे कहा, “ जिस काम से देश और समाज का भला हो उसमें अड़ंगा डालने की कांग्रेस-राजद में एक पुरानी परिपाटी है। अपनी इसी नीति पर चलते हुए तीन तलाक के मुद्दे पर इन दोनों दलों का रवैया पूरे देश ने देखा। राजद जहां शुरुआत से ही महिलाओं के हित को दरकिनार कर इस मुद्दे पर कट्टरपंथियों के आगे झुकी नजर आयी, वहीं कांग्रेस ने लोकसभा में दिखावे के लिए इस बिल का समर्थन किया, लेकिन राज्यसभा में अपने संख्याबल का फायदा उठाते हुए इस बिल को रोक दिया। हकीकत में इन दोनों दलों के सामने पिछड़े/अतिपिछडे समाज के लोग तथा मुस्लिम महिलाओं का महत्व सिर्फ वोटबैंक का है। यह दोनों दल इसी चक्कर में रहते हैं कि यह लोग कभी आगे नही बढ़े, जिससे भावनात्मक रूप से इनका दोहन किया जा सके।

ऐसे भी लोग अच्छे से जानते हैं कि राजद-कांग्रेस उन्ही कामों में हाथ डालती है जिसमें, उन्हें भ्रष्टाचार कर पाने की संभावना लगती है, अपनी गलत नीतियों के कारण आज यह दोनों दल बहुत ही नाजुक दौर से गुजर रहे है, लेकिन विनाश काले विपरीत बुद्धि की तर्ज पर इनके नेता अभी भी चेतने को तैयार नहीं हैं। फिर भी हमारी उनसे अपील है कि वर्तमान मानसून सत्र में अपनी नकारात्मक राजनीति का त्याग करें और इन दोनों बिलों को पास करवाने में सरकार की मदद करें, नही तो आने वाले समय में जनता इसका माकूल जवाब उन्हें जरूर देगी। “

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