प्रेमचंद और फणीश्वरनाथ रेणु गांव और शहर दोनों के कथाकार हैं। इन्हें सिर्फ गांव में ही सिमटा देना एक साजिश है, इनके साथ न्याय नहीं। न प्रेमचंद सिर्फ लमही के कथाकार हैं और न रेणु सिर्फ औराही हिंगना के। ये भारतीय कथाकार हैं। इन्हें इसी रूप में जानना तथा मानना उचित है।
- भारत यायावर
प्रेमचन्द के बड़े पुत्र थे श्रीपतराय। दरियागंज के सरस्वती प्रेस के कार्यालय में उनकी कुर्सी के पीछे टंगी प्रेमचंद और फणीश्वरनाथ रेणु की तस्वीर को देखकर एक बार पूछा था, “प्रेमचंद के साथ रेणु क्यों?” उन्होंने बताया था कि प्रेमचंद के बगल में रेणु ही हो सकते हैं और दूसरा कोई नहीं।
श्रीपतराय का अपना तर्क था। हर लेखक का तर्क और मत हो सकता है और होना भी चाहिए। नलिन विलोचन शर्मा का मत था कि गोदान के बाद हिन्दी उपन्यास लेखन में एक गत्यावरोध था, जो मैला आंचल के आने से टूट गया। लेकिन मैं मानता हूं कि इन दोनों औपन्यासिक कृतियों के बीच बहुत सारे महत्त्वपूर्ण उपन्यास लिखे गए, जिनकी उपेक्षा करना ठीक नहीं। सिर्फ गांव पर लिख कर ही बड़ा लेखक हुआ जा सकता है, यह अवधारणा ही अजीब है।
गांव और शहर दो परिवेश हैं। इन दोनों की संरचना और परिवेश को जो कथाकार गहराई से जीता है, एक नई सर्जनात्मक भाषा अर्जित करता है और अनूठे कथा-शिल्प में अभिव्यक्त करता है, वही महत्त्वपूर्ण होता है। इस दृष्टि से अज्ञेय का उपन्यास ‘शेखर:एक जीवनी’ विलक्षण कृति है। यह फणीश्वरनाथ रेणु का सर्वाधिक प्रिय उपन्यास था। जैनेन्द्र की सुनीता और यशपाल की दिव्या विभिन्नताओं के बावजूद मैला आंचल के पूर्व की अनूठी कृतियाँ हैं ।
कथाकार की गहराई अपनी विषयवस्तु में कितनी है और उसने जीवन को किस तरह कथा में समाहित किया है, यह देखना आवश्यक है। विश्व के महानतम उपन्यासों में एक ‘अपराध और दण्ड’ एक शहर सेण्ट पीटर्सबर्ग पर आधारित है, हिन्दी का ‘जहाज का पंछी’ कलकत्ता शहर पर आधारित है, लेकिन अपनी महत्ता में अद्वितीय है।
प्रेमचंद और फणीश्वरनाथ रेणु गांव और शहर दोनों के कथाकार हैं। इन्हें सिर्फ गांव में सिमटा देना एक साजिश है। न प्रेमचंद सिर्फ लमही के कथाकार हैं और न रेणु सिर्फ औराही हिंगना के। ये भारतीय कथाकार हैं। इन्हें इसी रूप में जानना तथा मानना उचित है।