- डी. कृष्ण राव
कोलकाता। बंगाल चुनाव में भाषा की मर्यादा टूट रही है। कोई पैंट खोल खदेड़ने की बात करता है तो कुछ हिन्दुस्तान, पाकिस्तान और मुसलमान की बात करते हैं। बंगाल में विधानसभा चुणाव होने में अभी चार महीने बाकी हैं, लेकिन राजनीति का बजार गरमा गया है। तकरीबन हर दल के नेता आपा खो बैठे हैं। भाषणों में भाषा की मर्यादा तार-तार हो रही है। किसी की जुबान पर नियंत्रण नहीं है। वैसे भी चुनाव के दौरान नेताओं का बदजुबान होना कोई नयी बात नहीं है, लेकिन पिछले एक दशक में बंगाल में यह संस्कृति बन गयी है। चुणावी सभाओं में सत्ता पक्ष के लोग विपक्ष के खिलाफ बोलते समय बलात्कार, पाछा जैसे अश्लील शब्दों का इस्तेमाल धड़ल्ले से कर रहे हैं। इस बार नेताओं की जुबान जितनी खराब हुई है, शायद इससे पहले कभी न थी।
भाषणों-बयानों में हिंदू, मुसलमान, पाकिस्तान तो बहुत पहले से होता रहा है। सच कहें तो यह तो भाजपा का ट्रेडिशन बन गया है। लेकिन इस बार भाजपा के राष्र्टीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के दौरे के बाद खुद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने टिप्पणी करते हुए चड्डा, गड्डा, भड्डा, नड्डा कह कर व्यंग्य की पराकाष्ठा कर दी। इसी से माहौल बिगड़ना शुरू हुआ। TMC के दबंग नेता अणुब्रत मंडल ने कल कह दिया कि भाजपा के राज्य अध्यक्ष दिलीप घोष बोलपुर घुसे तो उनका पैंट खोलकर वापस भेजेंगे।
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इधर हेस्टिंग में शुभेन्दु अधिकारी के खिलाफ TMC के बिरोध प्रदर्शन के बाद बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष का कहना है कि भाजपा अगर मारना शुरू करेगी तो बैडेंज खोजते रह जाओगे। असल में इस तरह का कल्चर सीपीएम के समय से ही शुरू हो गया था। आरामबाग के माकपा नेता अनिल बसु, गणबेता के माकपा नेता सुशांत घोष और यहां तक कि बुद्धदेव भट्टाचार्य ने भी पिंगला की सभा में यह चेतावनी दी थी कि बंगाल में रहने के लिए माकपा को ही वोट देना होगा। TMC विधायक तापस पाल ने तो घर-घर गुंडा घुसा कर रेप कराने तक की का बात कह दी थी।
असल में इस तरह के भाषण क्यों दिये जाते हैं, इस पर राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इससे तत्काल रैलियों में कार्यकर्ताओं को आक्सीजन मिलता है और तालियां बजने के अलावा लाभ कुछ नहीं होता। हिन्दुस्तान, पाकिस्तान और मुसलमान के नारों के साथ बीजेपी हिन्दू वोटों को ध्रुवीकृत करने की कोशिश कर रही है।
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