बिहार में कानून-व्यवस्था : सरकार की फजीहत, अपराधियों के बढे़ हौसले

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बिहार में नई सरकार और चौथी बार मुख्यमंत्री बने नीतीश कुमार के लिए इन दिनों कानून-व्यवस्था लगातार चुनौती बनी हुई है। पिछले कुछ अरसे में राज्य के हर कोने और राजधानी में अराजक तत्वों और अपराधियों ने जिस तरह से पुलिस-प्रशासन को चुनौती देना शुरू किया है उससे सरकार और उनके मुखिया के लिए जवाब देना मुश्किल हो रहा है। तमाम दावों की खुलेआम धज्जियां उड़ रही है और शासन-प्रशासन कुछ कर नहीं पा रहा है।
जिस तेजी से बिहार में आपराधिक घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है, वह न सिर्फ प्रदेश की जनता के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए चिंता की बात है। आए दिन राज्य में हत्याएं हो रही हैं। दिनदहाड़े अपहरण और डकैती की जा रही है। महिलाओं के खिलाफ हिंसा में भी तेजी आई है। प्रदेश की जनता में इन घटनाओं को ले kiकर बेचैनी व्याप्त है। विपक्षी पार्टियों, व्यापारियों, स्वतंत्र संगठनों और आम लोगों का निरंतर विरोध प्रदर्शन जारी है। लेकिन राज्य सरकार की तरफ से आपराधिक घटनाओं पर काबू पाने की कोई गंभीर कार्रवाई नहीं दिख रही है। हां, मीटिंग और बहसों का दौर जारी है। हर दिन बड़ अधिकारी, सरकार के मंत्री और मुख्यमंत्री तक बैठक कर निर्देश जारी करने में कोई कोताही नहीं करते हैं पर नतीजा वही ढाक के तीन पात जैसा दिख रहा है। उदाहरण के लिए कुछ दिन पहले जब मुख्यमंत्री कानून-व्यवस्था पर बैठक कर रहे थे तभी दरभंगा में एक ज्वैलर्स के यहां से 5 करोड़ की डकैती व लूट की घटना हो गई। यही नहीं जिस दिन बैठक हुई उसके अगले 24 घंटों में पूरे प्रदेश में कई हत्याएं और लूट की घटना हो गई। मानो अपराधियों ने सरकार को चुनौती देने का मन बना लिया था।
जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विपक्ष के नेता हुआ करते थे तो प्रदेश में लालू-राबड़ी की सरकार के दौरान होने वाले अपराध की घटनाओं पर उनकी कड़ी प्रतिक्रिया हुआ करती थी। सत्ता में आने के लिए बिहार की जनता को सुशासन का जो सपना उन्होंने दिखाया था, उसमें अपराध नियंत्रण प्रमुख मुद्दों में शामिल था। नीतीश कुमार 13 सालों से प्रदेश की सत्ता पर काबिज हैं। बीच में जीतनराम मांझी कुछ महीनों के लिए मुख्यमंत्री तो बने, लेकिन सरकार तो नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू की ही थी। इस दौरान वे बीजेपी से पाला बदलकर आरजेडी-कांग्रेस और आरजेडी-कांग्रेस से पाला बदलकर फिर से बीजेपी के साथ जा चुके हैं। बड़ी बात यह है कि बीजेपी के साथ उनकी दूसरी पारी में न सिर्फ आपराधिक घटनाओं को बोलबाला बढ़ा है, बल्कि सांप्रदायिक हिंसा में भी तेजी आई है। बिहार के समाज की परिपक्व समझ और प्रशासन के अपने लंबे अनुभव के बावजूद इतने मंझे हुए राजनेता का इस समस्या पर काबू न पाना लोगों को उलझन में डाल देता है। आखिर कानून-व्यवस्था की स्थिति सुधारने के लिए वे किस चीज का इंतजार कर रहे हैं? निश्चित रूप से, इस पूरी स्थिति ने उनके चेहरे की चमक छीन ली है और देश के सबसे असफल नेताओं-प्रशासकों की सूची में उन्हें उच्च स्थान पर ला दिया है।
बिहार में अपराध के बढ़ते मामलों के बीच पुलिस मुख्यालय ने 2020 का क्राइम रिकॉर्ड आंकड़ा जारी किया है. इस आंकड़े में जनवरी से सितंबर तक का औसतन एक साथ और अलग से अक्टूबर 2020 के अपराध के मामले जारी किए गए हैं. बुधवार को जारी आंकड़े के अनुसार, इस साल पिछले नौ महीने यानी जनवरी से सितंबर के मुकाबले अक्टूबर में संज्ञेय अपराध में 3.12 प्रतिशत का इजाफा हुआ है. जनवरी से सितंबर तक कुल संज्ञेय अपराध 21419 हुए जबकि अक्टूबर 2020 में 22068 केस दर्ज हुए. संगीन अपराधों में हत्या, डकैती, लूट, गृहभेदन, चोरी, दंगा, रेप, रोड डकैती, रोड लूट में कमी आई है, हालांकि जनवरी से सितंबर के मुकाबले अपहरण और फिरौती के लिए अपहरण में बढ़ोतरी हुई है. मुख्यालय द्वारा अक्टूबर के जारी आंकड़े टेंटेटिव हैं, जबकि जनवरी से सितंबर तक के अपराध आंकड़े औसत में जारी किए गए हैं. आंकड़ों के अनुसार, जनवरी से सितंबर तक औसतन 267 हत्याएं हुईं, जबकि अक्टूबर में 243 मर्डर हुए, यानी 9.1 प्रतिशत की कमी आई. वहीं डकैती की सितंबर तक 10 वारदातों हुईं, जबकि अक्टूबर माह में केवल दो केस दर्ज किए गए यानी डकैती में सबसे बधिक 89.47 फीसदी की कमी दर्ज की गई. इसी तरह सितंबर तक बिहार में लूट के 153 मामले आए वहीं अक्टूबर में डकैती की 42 घटनाएं हुई और इसमें 72.63 प्रतिशत कमी आई. गृह भेदन में जहां 3.37, चोरी में 7.03, दंगों में 36.73, रेप में 20.25, रोड डकैती में 10.81, रोड लूट में 19.77 फीसदी की कमी दर्ज की गई. जनवरी से लेकर सितंबर तक अपहरण के औसतन 638 केस सामने आए जबकि अक्टूबर माह में 765 केस हुए, यानी अपहरण में 19.8 प्रतिशत का इजाफा हो गया. फिरौती के लिए अपहरण की बात करें तो नौ माह में औसतन 222 मामले आए वहीं केवल अक्टूबर माह में 5 केस हुए. फिरौती के लिए अपहरण में 125 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. इससे पहले पुलिस मुख्यालय ने मंगलवार को ही 2019 का एससीआरबी का डाटा जारी किया था जिसमें 2018 के मुकाबले 2019 में दंगों में कमी दर्ज की गई थी पर अन्य संगीन अपराधों हत्या, लूट,डकैती, अपहरण, रेप, चोरी, डकैती में इजाफा हुआ था।
अपराध की बढ़ती घटनाओं के विश्लेषण के बाद यह तो साफ है कि बिहार में अधिकांश अपराध की जड़ में भूमि विवाद है। हालांकि जानकारों की राय में सरकार ने भूमि विवाद को कम करने के लिए कई नियम-कानून बनाए पर अफसरशाही ने उनका लाभ आम जनता को दिया ही नहीं। ये कानून सिर्फ दस्तावेजों की शोभा बनकर रह गए। बिहार में नई सरकार के काम काज संभालने के बाद अपराध की घटनाओं में अचानक आई तेजी के पीछे कुछ जानकार तो कुछ राजनीतिक दलोंं की भूमिका से भी इनकार नहीं करते हैं। उनके अनुसार, चुनाव में मिली जीत के बाद अपनी सत्ता स्थापित करने की महत्वाकांक्षा में ऐसे लोग असामाजिक तत्वों को प्रश्रय देते हैं। ऐसे में सरकार की जिम्मेदार बनती है कि वह इन पर लगाम लगाए नहीं तो जनता का विश्वास उठता चला जाएगा।

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