पटना। बिहार में दल नहीं, गठबंधनों के बीच होगी चुनावी जंग। बिहार में कोई भी दल अपने बूते चुनाव में उतरने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। अभी तक 4 गठबंधन सामने आ चुके हैं। अलबत्ता ओवैसी की पार्टी आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (AIMIM) ने ही अकेले मैदान में उतरने की घोषणा की है।
पहले से दो ही गठबंधन थे- महागठबंधन और एनडीए। अब 4 हैं। इनमें सभी गठबंधनों का स्वरूप भी बदल गया है। महागठबंधन में 2015 के चुनाव में आरजेडी, जेडीयू और कांग्रेस शामिल थे। 2019 के लोकसभा चुनाव में जेडीयू ने एनडीए में अपना ठौर तलाश लिया। 2019 के लोलकसभा चुनाव में जेडीयू, बीजेपी और एलजेपी एनडीए के घटक थे। 2020 के विधानसभा चुनाव में एनडीए में बीजेपी, जेडीयू और एलजेपी के अलावा जीतन राम मांझी की पार्टी हम (से) भी शामिल हो गयी है।
2019 के लोकसभा चुनाव में जीतनराम मांझी, मुकेश सहनी अपनी वीआईपी और उपेंद्र कुशवाहा भी अपनी आरएलएसपी के साथ महागठबंधन में शामिल थे। आरजेडी और कांग्रेस तो 2015 के विधानसभा चुनाव से ही साथ चल रहे हैं।
2020 में महागठबंधन का स्वरूप भी बिगड़ गया है। उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी ने मायावती की बहुजन समाज पार्टी और जनवादी सोशलिस्ट पार्टी के साथ एक मोर्चा बना लिया है। जीतन राम मांझी ने एनडीए में ठौर तलाश लिया है। अलबत्ता वाम दल इस बार महागठबंधन का हिस्सा बन गये हैं।
जन अधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) सुप्रीमो राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने प्रगतिशील लोकतांत्रिक गठबंधन (पीडीए) नाम से मोरचा बनाया है। इस गठबंधन में चंद्रशेखर आजाद की अध्यक्षता वाली आजाद समाज पार्टी, एमके फैजी के नेतृत्व वाली सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (एसटीपीआई) और बीपीएल मातंग की बहुजन मुक्ति पार्टी शामिल हैं। पप्पू यादव का दावा है कि यह मानवतावादी और सबको साथ लेकर चलने वाला गठबंधन है। यह गठबंधन 30 साल के महापाप को मिटाने के लिए बनाया गया है। यशवंत सिन्हा भी बिहार चुनाव में उतर गये हैं। उन्होंने भी एक मोर्चा बनाया है।
हर दल को एह एहसास है कि अकेले अपने बूते चुनावी वैतरणी पार करना आसान नहीं है। यानी सभी दल यह मान चुके हैं कि राज्य में नका या तो जनाधार नहीं है या फिर जनाधार में छीजन हो गया है।