बिहार में नीतीश सरकार गिरी तो उसकी वजह होगी NRC !

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नीतीश कुमार ने भी माना है कि बिहार असेंबली की कल हुई घटना शर्मनाक है। इसके लिए विपक्ष को कोसा। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पत्रकारों से बात कर रहे थे।
नीतीश कुमार ने भी माना है कि बिहार असेंबली की कल हुई घटना शर्मनाक है। इसके लिए विपक्ष को कोसा। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पत्रकारों से बात कर रहे थे।
  • पारखी प्रकाश

पटना। बिहार में नीतीश कुमार की सरकार अगर गिरती है तो उसकी वजह NRC होगी। इसलिए कि नीतीश कुमार ने बिहार में NRC के विरोध की बात फिर दोहरायी है। शनिवार से शुरू हुई प्रदेश जेडीयू की बैठक में नीतीश कुमार और जेडीयू नेताओं के तेवर तल्ख थे। एक नेता बोंगा सिंह ने एलानिया कह दिया कि बीजेपी वालों ने उन्हें वोट नहीं दिया। दूसरी ओर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी कहा कि चुनाव में उन्हें पता ही नहीं चला कि कौन दोस्त है और कौन दुश्मन। हालांकि बोंगा सिंह की तरह उन्होंने बीजेपी का नाम तो नहीं लिया, लेकिन उनके मन में भी यह कसक जरूर रही होगी। ऐसा इसलिए कि एनडीए में रहते एलजेपी नेता चिराग पासवान ने तो महीनों पहले ही नीतीश के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था, इसलिए वे दुश्मनों में पहले से ही ही शुमार थे। दूसरी बची बीजेपी। यानी अपरोक्ष तौर पर उनका इशारा बीजेपी की ओर ही था। वैसे नीतीश ने यह कह कर सबकों निश्चिंत किया कि घबराने की जरूरत नहीं, उनकी सरकार पांच साल के कार्यकाल जरूर पूरा करेगी।

राजनीति की समझ रखने वाले इसे नीतीश कुमार की कूटनीति मानते हैं। उनका कहना है कि बीजेपी से नीतीश को जो अपेक्षाएं हैं, अगर पूरी हो जाती हैं तो कोई तूफान खड़ा नहीं होगा, लेकिन जिस तरह की शर्तें वे थोप रहे हैं, उसे पूरा करना बीजेपी के लिए संभव नहीं है। नीतीश केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार में अपने लोगों के लिए दो सीट चाह रहे हैं। बीजेपी ने आरंभ में ही यह स्पष्ट कर दिया था कि साथी दलों को सांकेतिक तौर पर मंत्रिमंडल में एक-एक जगह दी जाएगी। इसे मान कर ही रामविलास पासवान ने मंत्री पद स्वीकार किया था। अकाली दल से भी एक ही आदमी मंत्री बना, लेकिन नीतीश कुमार ने दो सीटों की मांग करते हुए न सिर्फ एक पद ठुकराया, बल्कि यहां तक कह दिया था कि भविष्य में जेडीयू कभी कैबिनेट में शामिल नहीं होगा। वह समय भी बीजेपी के साथ नीतीश की सरकार ही था। हां, नीतीश की ताकत और औकात तब बड़े भाई की हुआ करती थी और वे इसी दबंगता से बीजेपी के साथ पेश भी आते थे।

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बिहार एनडीए में अपना बड़े भाई का रुतबा बरकरार रखने के लिए और विधानसभा चुनाव में सब उनके अनुरूप ही होगा, इस उम्मीद में नीतीश के सांसदों ने परोक्ष-अपरोक्ष तौर पर बीजेपी का साथ दिया। CAA और NRC जैसे मुद्दों पर भी नीतीश कभी मुखर नहीं रहे। लेकिन प्रदेश कमेटी की बैठक में कहीं उनकी तीन बातों को गंभीरता से लेने की जरूरत है। पहला यह कि चुनाव के दौरान उन्हें पता ही नहीं चला कि कौन दोस्त है और कौन दुश्मन। दूसरी बात, जो वे दोबारा-तिबारा कह चुके हैं कि उन्हें मुख्यमंत्री बनने की चाहत नहीं थी, लेकिन बीजेपी और पार्टी नेताओं के दबाव में उन्होंने यह पद स्वीकार किया। इसके साथ ही तीसरी बात यह कह कर कि बिहार में NRC लागू नहीं होगा, उन्होंने संकेत दे दिया कि अल्पसंख्यक समुदाय में अपना खोया जनाधार हासिल करने के लिए वे बीजेपी के एजेंडे को खारिज करने का जोखिम उठा सकते हैं। इसे नीतीश का मुख्यमंत्री पद छोड़ने का बहाना भी माना जा सकता है।

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इधर विपक्षी खेमा आरजेडी और कांग्रेस के नेता लगातार कह रहे हैं कि नीतीश सरकार ज्यादा दिन तक नहीं चलेगी। जेडीयू विधायक टूट कर महागठबंधन के साथ आ जाएंगे। आरजेडी के वरिष्ठ नेता श्याम रजक ने तो इनकी संख्या तक जाहिर कर दी है और दावे के साथ कहते हैं कि जेडीयू के नाराज विधायक लगातार आरजेडी के संपर्क में हैं। तेजस्वी यादव और एलजेपी के चिराग पासवान तो मध्यावधि चुनाव के लिए अपने समर्थकों-कार्यकर्ताओं को तैयार रहने के लिए लगातार कह रहे हैं। शायद उन्हें भी यह भान है कि नीतीश कब क्या कदम उठा सकते हैं, उनके सिवा किसी को मालूम नहीं होता। संभव है सीएए बिहार में लागू न करने की चर्चा छेड़ वे बीजेपी से रिश्ते तोड़ने का बहाना ढूढ रहे हों।

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