पटना। बिहार में फिर सियासी खिचड़ी पक रही है। राज्यसभा चुनाव से ही यह साफ हो गया है कि आरजेडी अब महागठबंधन के मोह में पड़ना नहीं चाहता। घटक दलों के नेता भी अपने ठिकानों की तलाश में लग गये हैं। कभी जेडीयू के साथ रहे पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की नीतीश कुमार से देर रात बंद कमरे में मुलाकात के बाद यह साफ हो गया है कि फिर कोई खिचड़ी पक रही है।
महागठबंधन के घटक दलों में आरजेडी के साथ कांग्रेस, हम (से), वीआइपी, आरएलएसपी और शरद यादव साथ थे। साथी दलों के नेताओं ने आरजेडी पर हावी होने के लिए पहले खूब उछल-कूद मचायी, लेकिन आरजेडी ने साफ कर दिया कि वह अपने मन की करेगा। उसके मुख्यमंत्री फेस तेजस्वी यादव ही रहेंगे। कोआर्डिनेशन कमेटी बनाने की बात को भी आरजेडी ने सिरे से खारिज कर दिया। इससे एक बात साफ हो गयी है कि आरजेडी एकला चलने की नीति पर काम कर रहा है।
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नीतीश कुमार के साथ जाने के लिए वीआइपी के मुकेश सहनी भी तैयार हैं। जीतन राम मांझी ने तो उनसे मुलाकात ही कर ली। उपेंद्र कुशवाहा ने चूंकि नीतीश से खुलेआम झगड़ा मोल लिया है, इसलिए फिलवक्त खामोश हैं, लेकिन अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाये रखने के लिए बेचैनी तो उनके भीतर भी होगी ही। अब देखना यह है कि नीतीश इनमें कितनों को और किन शर्तों पर अपने साथ लाते हैं। जहां तक जानकारी मिली है, नीतीश चाहते हैं उनके साथ आने के इच्छुक इन नेताओं को अपनी दलीय पहचान खत्म कर जदयू में शामिल होना चाहिए।
भाजपा ने महागठबंधन के घमासान पर ली चुटकी
महागठबंधन में मचे घमासान पर टिप्पणी करते हुए भाजपा प्रवक्ता व पूर्व विधायक राजीव रंजन ने कहा कि बिना किसी विचारधारा और आपसी विश्वास के गठबंधनों का क्या हश्र होता है, यह आज महागठबंधन को देख कर पता चलता है। कभी एक दूसरे के दुश्मन रहे इन दलों का यह ठगबंधन सिर्फ और सिर्फ जनता को ठगने के लिए हुआ था, लेकिन जनता की समझदारी ने इनके मंसूबों पर पानी फ़ेर दिया। स्वार्थ और अवसरवादी राजनीति के सबसे बड़े प्रतीक बने इस ठगबंधन के नेताओं में शुरुआत से ही सांप और नेवले सरीखी दुश्मनी रही है।
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कुछ साल पहले ऐसा कोई दिन नहीं बीतता था, जब ये नेता एक दूसरे को पानी पी-पी कर नहीं कोसते थे। सत्ता के लालच और अपना अस्तित्व बचाने की मजबूरी ने भले ही इन नेताओं को एक दूसरे के साथ रहने को मजबूर कर दिया, लेकिन एक-दूसरे की पीठ पर वार करने की इनकी आदत नहीं गयी। आज भी ये कैमरे के सामने जबर्दस्ती मुस्कान बिखेरते हुए एक दूसरे के साथ रहने की कसमें खाते हैं, लेकिन कैमरा हटते ही एक-दूसरे को नीचा दिखाने का जुगाड़ भिड़ाने लगते हैं। यही कारण है कि इतने वर्षों के बाद भी इनमें आपसी एकता आज तक पनप नहीं पायी है।
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आज भी इनकी राजनीति एक दूसरे की जड़ खोदने से शुरू और एक दूसरे के खिलाफ साजिशों का जाल बुनने पर समाप्त हो जाती है। इनका पूरा दिन इसी उधेड़बुन में समाप्त हो जाता है कि कैसे अपने सहयोगियों को नीचा दिखाया जाए और कैसे उनकी मिट्टी और पलीद की जाए। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आते जाएंगे, इनका घमासान और बढ़ता जाएगा और चुनाव आने तक इनका पूरा कुनबा खंड-खंड होकर बिखर जाएगा। इस ठगबंधन के सभी दल यह जान लें कि बिहार की जनता भोली जरुर है, लेकिन उसे मूर्ख समझने की गलती वे कभी न करें। जनता इनके खिलाफ कमर कस चुकी है और आने वाले विधानसभा चुनाव में इनका वह हाल करने वाली है, जो उन्हें लंबे समय तक याद रहेगा।
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