पटना : बिहार में भाजपा से जदयू निभायेगा दोस्ती, झारखंड में लड़ेगा कुश्ती। सुनने में यह अजब-गजब जैसा लगता है, लेकिन है सोलह आने सच है । जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार में भाजपा के साथ सरकार चला रहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कुछ इसी तरह का फैसला लिया है। उन्होंने रांची में अपने कुनबे के साथ भाजपा के खिलाफ अलग चुनाव लड़ने का आगाज कर दिया। उन्होंने राज्यस्तरीय कार्यकर्ता सम्मेलन को संबोधित किया। सम्मेलन को जदयू के राष्ट्रीय इपाध्यक्ष और चुनावी रणनतिकार प्रशांत किशोर ने भी संबोधित किया।
झारखंड में भाजपा के खिलाफ लड़ेंगे चुनाव
जदयू के झारखंड में भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ने के फैसले का संकेत साफ है। पार्टी खुद को राष्ट्रीय दल के रूप में अपनी ताकत बढ़ाना चाहती है। इसके लिए जेडीयू को दूसरे राज्यों में भी अपने उम्मीदवार उतारना और जिताना जरूरी है। 2014 के लोकसभा चुनाव में अकेले लड़ कर जदयू दो सीटों पर सिमट गयी थी, लेकिन 2019 के आम चुनाव में पार्टी ने अपनी ताकत और नीतीश के नेतृत्व में राज्य सरकार के कामों का हवाला देकर भाजपा को अपनी जीती पांच सीटें छोड़ने पर मजबूर किया। साथ ही 17 सीटों पर लड़ कर 16 पर जीत भी हासिल की।
जदयू का मानना है कि बिहार में नीतीश के नेतृत्व वाली सरकार ने विकास का नया माडल खड़ा किया है। समाज सुधार की दिशा में उन्होंने राज्य ही नहीं, देश को नयी दिशा दी है। शराब बंदी से राजस्व के भारी नुकसान के बावजूद उन्होंने इसे सख्ती से लागू किया। दहेज रहित विवाह और नाबालिग शादियों पर अंकुश लगाने का अभियान चलाया है। बूढ़े मां-बाप की सेवा से मुकरने वाली संतान को सजा देने का प्रस्ताव कैबिनेट से पास कराया। इसकी काफी तारीफ भी हुई है।
बिहार में बिजली की उपलब्धता बढ़ा कर और सात निश्चय के प्रावधानों को लागू कर नीतीश ने बिहार में विकास की नयी लकीर खींच दी है। उनके कई कामों की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी तारीफ की है। सच तो यह है कि उनकी कुछ योजनाओं को केंद्र सरकार ने भी लागू किया है।