PATNA : बिहार में महागठबंधन में सीएम फेस मर मची है मारामारी। वैसे सभी राजनीतिक दल अपनी चुनावी रणनीति बनाने में जुट गये हैं। जोड़-तोड़ की कोशिशें जारी हैं। इधर महागठबंधन में मुख्यमंत्री पद के लिए मारामारी चल रही है। उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी ने एक स्वर से शरद यादव को महागठबंधन का मुख्यमंत्री चेहरा बनाए जाने की वकालत की है तो दूसरी ओर राजद के युवराज तेजस्वी यादव के समर्थक हर हाल में तेजस्वी को ही मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं।
महागठबंधन की छवि अभी तक एम-वाई समीकरण पर आधारित रही है। तेजस्वी यादव आरजेडी को अब जातीय बंधनों से आजाद करना चाहते हैं। शायद यही वजह रही कि एक तरफ शरद यादव, उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी जहां बैठकर सीएम का चेहरा तय कर रहे थे, वहीं तेजस्वी यादव चुपचाप बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह के प्रपौत्र को राजद में शामिल कर रहे थे। न सिर्फ उनको दल में उन्होंने शामिल किया, बल्कि उन्हें पार्टी में बड़ा ओहदा भी दिया।
दरअसल तेजस्वी का यह मानना है कि अगर आरजेडी को एनडीए के मुकाबले खड़ा करना और आगे बढ़ाना है तो उसे एम-वाई (मुसलिम-यादव) समीकरण के दायरे से बाहर निकालना ही होगा। यह गुरु मंत्र संभव है कि लालू प्रसाद ने उन्हें दिया हो, क्योंकि 2 दिन पहले ही तेजस्वी ने रांची के रिम्स में इलाज करा रहे लालू प्रसाद से मुलाकात की थी। रांची से लौटने के बाद उन्होंने पार्टी पदाधिकारियों के नामों की घोषणा की।
एम-वाई समीकरण के वोट राजद के पारंपरिक वोटों में शुमार हैं और अगर उसे कामयाबी हासिल करनी है तो सवर्ण वोटों की ओर भी उसका झुकाव होना चाहिए। फिलहाल राजद के साथ सवर्ण वोटों के नाम पर जगदानंद सिंह और रघुवंश प्रसाद सिंह जैसे राजपूत नेता हैं। मनोज झा जैसे ब्राह्मण नेता भी हैं, लेकिन भूमिहार जाति से कोई नेता राजद के पास नहीं है। संभव है कि यही सोच कर तेजस्वी ने श्रीकृष्ण बाबू के प्रपौत्र को राजद में शामिल कराने का निर्णय लिया हो।
राजद अपनी पुरानी छवि बदलने में अगर कामयाब हो जाता है तो लड़ाई दिलचस्प होगी और नीतीश कुमार के लिए मुश्किलें पैदा हो सकती हैं। भाजपा-जदयू में सवर्ण चेहरों की कमी नहीं है। खासकर ललन सिंह जैसे कद्दावर भूमिहार नेता जेडीयू के साथ हैं। अब तेजस्वी की भी यह कोशिश है कि भूरा बाल (भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और लाला) जैसे मुहावरे को बदलकर राजद में सवर्ण समाज को भी स्थान दिया जाए। बिहार में इन दिनों जिस तरह अपराध और भ्रष्टाचार के कारण नीतीश की छवि धूमिल होने लगी है, उसमें राजद से सटे सवर्ण वोट उसी मुक्ति का मार्ग प्रदान कर सकते हैं।
भाजपा का तंज- महागठबंधन ने राजद को दिखायी औकात
उधर भाजपा में सीएम फेस को लेकर मचे घमासान पर भाजपा ने तंज किया है। महागठबंधन में छिड़े घमासान पर बोलते हुए भाजपा प्रवक्ता सह पूर्व विधायक राजीव रंजन ने कहा कि आगामी विधानसभा चुनाव से पहले ही महागठबंधन के खंड-खंड हो बिखर जाने की हमारी भविष्यवाणी अब सच साबित होने लगी है। लंबे अरसे से सियासी ठिकाना तलाश रहे शरद यादव ने आखिरकार महागठबंधन को ही ठिकाने लगा दिया।
उन्होंने तेजस्वी को यह दिखा दिया है कि राजनीतिक तजुर्बा किसे कहते हैं। शरद जी के इस दाँव से तेजस्वी को भी तगड़ा झटका लगा होगा। उन्होंने कभी सोचा भी नहीं होगा कि अभी साल भर पहले जो शरद यादव राजद के टिकट पर चुनाव लड़ने के लिए राजद से वफादारी की लंबी-चौड़ी कसमें खा रहे थे, आज वह महागठबंधन में उनके ही सिंहासन को चुनौती देने लगे हैं। इससे महागठबंधन का असली चेहरा भी एक बार फिर से लोगों के सामने खुल कर बाहर आ गया है। इससे यह साबित होता है कि इस ठगबंधन में आपसी एकता है ही नहीं। सिर्फ अपना मतलब साधने के लिए साथ जुटे, बिना जनाधार वाले ये सारे दल, थोड़ा सा फायदा दिखने भर से ही एक दूसरे के दुश्मन बन सकते हैं।
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श्री रंजन ने कहा कि महागठबंधन के दो फाड़ होने में तेजस्वी के अहंकार और अनुभवहीनता का भी काफी बड़ा योगदान है। उन्हें यह पता ही नहीं है कि वह सिर्फ राजद के युवराज हैं, इसलिए दूसरे दलों के नेताओं को अपने कार्यकर्ताओं की तरह हांकने की कोशिश उन्हीं पर भारी पड़ सकती है। तेजस्वी के अहम के कारण ही आज इनके खुद की पार्टी में भी अंदरूनी घमासान छिड़ा हुआ है। महागठबंधन के दलों की तरह ही इनके कार्यकर्ता भी अपने खुद के भविष्य के लिए आशंकित हैं। इन्हें समझ में आ गया है कि राजद-कांग्रेस के साथ रहते हुए विधायक बनना तो दूर, पंचायत के चुनाव जीतना भी मुश्किल है। महागठबंधन में जो आग लगी है, उसकी लपटें जल्द ही राजद तक पहुंचने वाली हैं और जल्द ही इनके खुद के नेता भी तेजस्वी को अकेला छोड़ इससे निकल भागेंगे।
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