बिहार में विपक्ष बेरोजगार, बदलाव की बात करने वाले हुए गायब

0
168
पश्चिम बंगाल में होने जा रहे विधानसभा चुणाव में ममता बनर्जी के लिए बीजेपी से बड़ी चुनौती पीके उर्फ प्रशांत किशोर हैं।
पश्चिम बंगाल में होने जा रहे विधानसभा चुणाव में ममता बनर्जी के लिए बीजेपी से बड़ी चुनौती पीके उर्फ प्रशांत किशोर हैं।

पटना। बिहार में विपक्ष बेरोजगार हो गया है। इन दिनों गायब हो गये हैं बदलाव की बात करने वाले पीके, पुष्पम प्रिया, चिराग और तेजस्वी जैसे शूरमा व स्यंभू नेता भी। पीके के नाम से मशहूर न प्रशांत किशोर का कहीं पता है तो रातोंरात बिहार की मुख्यमंत्री बनने का सपना देखने वाली पुष्पम प्रिया चौधरी की कहीं चर्चा है। चिराग तले तो अंधेरा ही कायम हो गया है। मसलन नीतीश कुमार की सरकार के खिलाफ मुद्दों की तलाश में बिहार में हाल तक भटकते रहे लोक जनशक्ति पार्टी के नेता चिराग पासवान भी अदृश्य हैं। राजद नेता तेजस्वी यादव ने तो खामोशी ही ओढ़ ली है।

कोविड-19 यानी कोरोना वायरस की महामारी ने हालात ऐसे पैदा कर दिये हैं कि विपक्ष इन दिनों बेरोजगार हो क्या है। सत्ता पक्ष अपने काम में व्यस्त है। महामारी के रूप में उभरी  कोरोना वायरस की बीमारी से निपटने में सरकार मशगूल है। वह अपने अंदाज में काम कर रही है। विपक्ष के पास फिलवक्त शायद ही कोई मुद्दा दिख रहा है, जिसे आधार बना कर वह सत्ताधारी दल पर हमला कर सके। सरकार को कठघरे में खड़ा कर सके।

- Advertisement -

बात बिहार की करने वाले प्रशांत किशोर उर्फ पीके कभी कभार ट्विटर पर ही नजर आ रहे हैं। हालांकि ट्विट कर भी वे हंसी के ही पात्र बन रहे। प्रशांत किशोर ने बिहार में विकास को मुद्दा बनाकर नीतीश कुमार को घेरने की जो कोशिश शुरू की थी। लेकिन कोरोना ने उन्हें भी बेरोजगार कर दिया है। फिलवक्त उनकी बोलती बंद है। कोरोना के कहर से परेशान प्रवासी जब अपने गृह राज्य बिहार लौट रहे हैं तो स्वास्थ्य कारणों से सरकार ने उन्हें क्वेंरेंटाइन में रखने का फैसला किया है। ऐसे ही एक दऋश्य को प्रशांत किशोर ने ट्विट के जरिए वीडियो के माध्यम से दिखाने की कोशिश की है, यह कहते हुए कि सरकार ने अपने घर में ही लोगों का ऐसा हाल बना रखा है। यह ट्विट उन्होंने कोरोना वायरस के भय से गांव लौट रहे बिहारियों की दुर्दशा दर्शाने के लिए किया, लेकिन यह उन पर उल्टा ही पड़ गया। क्वेरेंटाइन की वजह से सरकार ने इस तरह का फैसला किया है। इसे किसी भी तरह गैरवाजिब नहीं ठहराया जा सकता। यानी इसे लेकर प्रशांत किशोर ने अपनी किरकिरी करा दी है।

बिहार को विकास की पटरी पर सरपट दौड़ाने का ख्वाब पाले अखबारों में बड़े इश्तेहारों के जरिये रातोंरात चर्चा में आई पुष्पम प्रिया चौधरी तो इस कदर नदारद हैं कि कुछ दिनों बाद लोग उनका नाम भी भूल जायें तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। बिहार के कोने-कोने में जाकर नीतीश सरकार की नाकामी तलाशने और उजागर करने वाले चिराग पासवान का भी इनदिनों कोई बयान नहीं आ रहा। कोई भी यह सहज अनुमान लगा सकता है कि बिहार को बदलने के लिए हाल तक बेताब दिख रहे ये चेहरे संकट के समय किस काम के हैं।

यह भी पढ़ेंः बिहार के लोग, जो बाहर फंसे हुए हैं, उनकी परेशानियों दूर करें

लोक जनशक्ति पार्टी के चिराग पासवान पिछले कुछ दिनों से बिहार में घूम-घूम कर नीतीश सरकार की विफलताओं को इस कदर उजागर करने में लगे थे, जैसे उनकी पार्टी एनडीए का हिस्सा न हो और वे विपक्ष के नेता हों। सबको पता है कि नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार में एनडीए की सरकार है और उस एनडीए का एक हिस्सा लोक जनशक्ति पार्टी भी है। लेकिन स्वास्थ्य सेवा में कमजोरी गिनाने, नियोजित शिक्षकों की हड़ताल को समर्थन देने और दारोगा अभ्यर्थियों के मामले को तूल देने की उनकी कोशिश इस तरह थी कि लग ही नहीं रहा था कि वे उसी एनडीए के एक घटक दल के नेता हैं, जिसकी बिहार में सरकार है।

बहरहाल कोविड-19 यानी कोरोना वायरस की महामारी ने इन सभी नेताओं को सीन से ही गायब कर दिया है। इनके पास आलोचना के मुद्दे ही फिलहाल नहीं बचे है। वास्तव में जो कुछ भी करना है, वह सरकार के स्तर पर होना है और विपक्ष में होते हुए भी किसी को कुछ करना है तो उसे सरकार के साथ ही मिलकर करना है। संकट की इस घड़ी में सहयोग और सहभागिता के सिवा दूसरे किसी बिंदु पर किसी भी नेता का बोलना लोगों को नागवार लग सकता है। संभव है, ये स्वयंभू नेता इस तथ्य को समझ रहे हों और फिलहाल परिदृश्य से बाहर रहने में ही अपनी भलाई देख रहे हों।

यह भी पढ़ेंः फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ सार्वजनिक उपस्थिति के कलाकार थे

- Advertisement -