बिहार या बिहारियों से लोगों को चिढ़ है। वे भूल जाते हैं- साहित्य, स्वतंत्रता संग्राम, किसी शहर-देश को बसाने-संवारने में मेहनत का लोहा बिहारी मनवाते रहे हैं।फिर भी दूसरे राज्यों को लोग बिहारी जमात को हिकारत की नजर से देखते हैं। बिहार की खासियत के बारे में विस्तार से बता रहे हैं वरिष्ठ साहित्यकार ज्योतिष जोशी। आप भी पढ़ेंः
- ज्योतिष जोशी
बिहार हमेशा ही इस देश की आंख की किरकिरी रहा है। यह किसी को पता नहीं क्यों बर्दाश्त नहीं होता। आज़ादी की पहली लड़ाई 1857 के पहले 1764 में इसी बिहार के हुस्सेपुर के राजा फतेहबहादुर शाही ने अंग्रेजों के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध किया। ऐतिहासिक साक्ष्य के बावजूद उसका इतिहास में कहीं कोई जिक्र नहीं। आज़ादी के संघर्ष में बिहार ने सबसे अधिक बलिदान दिया।
राजेन्द्र प्रसाद को राष्ट्रपति पद और राष्ट्रीय प्रतीकों में चक्रवर्ती अशोक के प्रतीकों को शामिल कर राष्ट्रीय धर्म पूरा कर लिया गया। आज़ादी के बाद हर स्तर पर केंद्रीय शासन से बिहार को उपेक्षा मिली। बिहार के अभागे और स्वार्थी नेता भी रहे, जिन्होंने इस प्रदेश को चारागाह बनाया। पर बौद्धिक चतुराई का भी इस प्रदेश ने सामना किया। आचार्य शुक्ल जैसे मूर्धन्य आलोचक देवकीनन्दन खत्री का गुणगान करते हुए भी उनको बनारस का बता बैठे, मुजफ्फरपुर कहने में संकोच हुआ।
विद्यापति न भक्ति के कवि माने गए न रीति के। रेणु, बेनीपुरी, शिवपूजन सहाय जैसे असंख्य नाम उपेक्षा के शिकार रहे। इसके कुछ उदाहरण और हैं, जिन्हें छुपाया जाता है कि वे बिहार से हैं। शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय को कितने लोग जानते हैं कि वे बिहार के भागलपुर के थे? कितनों को मालूम है कि मूर्धन्य चित्रकार नन्दलाल बोस की जन्मभूमि बिहार है। शंखो चौधुरी जैसे मूर्तिकार की धरती बिहार है तो उस्ताद बिस्मिल्लाह खान बनारस के नहीं, बिहार के भोजपुर इलाके से रहे। सीता, जनक, वाल्मीकि, मंडन, बाणभट्ट, आर्यभट्ट, बुद्ध, महावीर, अशोक, चन्द्रगुप्त, चाणक्य, विद्यापति, नागार्जुन, रेणु, बेनीपुरी, भिखारी,दिनकर, शिवपूजन सहाय, नलिन विलोचन शर्मा, जयप्रकाश, राधिकारमण प्रसाद सिंह जैसों की धरती क्या आपसे अपने गर्वोन्नत भाल का प्रमाण पत्र चाहती है कि आप इतने खिन्न हुए जाते हैं?
मोहनदास करमचंद गांधी को इसी धरती ने अपने मस्तक का चंदन बनाया और गांधी को अपने होने का अर्थ मिला। क्या यह आपसे यह पूछें? क्या यह पूछें कि आपने अपनी नालंदा कहाँ छुपा रखी है? और राजगीर, पाटलिपुत्र क्या क्या कहें।
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पर माटी उर्वर है बिहार की, जो दबाए नहीं दबती। प्रवास पर रहते, अथक मिहनत करते यह लोग जहां जाते हैं, उस धरती को अपनी मिहनत से संवारते हैं। फिजी, सूरीनाम, मॉरीशस, त्रिनिदाद आदि देश बिहार के लोगों की श्रमशीलता के उदाहरण हैं। मुंबई, सूरत, कोलकाता, दिल्ली जैसे नगर मेहनतकश बिहारियों से ही आबाद हैं। बिहारी छात्र हर राज्य के छात्रों से अव्वल रहते हैं तो अपनी प्रतिभा और मिहनत से। आज प्रशासन, न्याय, पुलिस, चिकित्सा, अखबार और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में अगर बिहार के लोग अव्वल हैं तो अपनी मिहनत और प्रतिभा से हैं।
आज का समकालीन साहित्य हो या कला, नाटक हो या संगीत, नृत्य हो या सृजन के दूसरे क्षेत्र, बिहार के युवा देश के हर हिस्से में रहते हुए कीर्तिमान बना रहे हैं। यह अपनी मिहनत और प्रतिभा से वे पा रहे हैं। किसी की कृपा उन्हें नहीं मिली। यह सब जानते हैं कि किसी भी दूसरे राज्य के व्यक्ति के मुकाबले बिहार के व्यक्ति को अधिक मिहनत करनी पड़ती है और कोई उसे आसानी से स्वीकार नहीं करता। उन पर चिढ़ने या व्यंग्य की जरूरत नहीं है। जरूरत अपने अपने क्षेत्रों में विकास की राह बनाने की है। कभी भारत के गौरव रहे इस भूभाग से इतनी परेशानी क्यों है? बिहार के होने की भयावह यंत्रणा हमने भी झेली है और उस हर व्यक्ति ने झेली है जो अपनी माटी छोड़कर बाहर आया। यह सब सुन देख वेदना होती है।
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