भारत की सबसे बड़ी समस्या भ्रष्टाचार है। चीन भले कोरोना के कारण बदनाम हुआ है, पर भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में उससे सीखना चाहिए। भ्रष्टाचार से पूरी तरह मुक्ति पाना तो संभव नहीं, लेकिन भ्रष्टाचार के आरोपियों को सजा मिलने की दर ही बढ़ जाये तो इस पर काफी हद तक अंकुश लग सकता है। चीन से निकल कर भारत में अपना कारोबार शुरू करने की इच्छुक अमेरिकी कंपनियों की पेशकश को देखते हुए भ्रष्टाचार पर अंकुश की आवश्यकता होगी। इस पर प्रकाश डाला है वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर ने।
भारत सरकार ने एक हजार अमेरिकी कंपनियों को चीन से निकाल कर यहां आने के लिए आमंत्रित किया है। कोरोना विपत्ति की पृष्ठभूमि में चीन-अमेरिका संबंध को देखते हुए यह संभव है कि वे कंपनियां भारत आने पर गंभीरतापूर्वक विचार करें। पर, मेरी समझ से इसमें एक ही बड़ी बाधा है। वह बाधा इस देश में सरकारी भ्रष्टाचार के स्तर को लेकर है।भारत में विभिन्न सरकारी स्तरों पर भारी भ्रष्टाचार है।
केंद्र सरकार के मंत्रिमंडल स्तर पर तो आज पहले जैसा भले घोटालों-महा घोटालों का दौर नहीं है, पर उससे नीचे के स्तरों पर यहां अमेरिकी कंपनियों को भारी भ्रष्टाचार से पाला पड़ेगा। उस स्थिति में वे यहां कितने दिनों तक टिक पाएंगी? हां, यहां आ जाने पर उन्हें यदि टिकाए रखना है तो भारत सरकार को कुछ ठोस व कठोर उपाय करने होंगे।
चीन में भ्रष्टाचार के लिए फांसी की सजा का प्रावधान है। यहां भी वह प्रावधान करना पड़ेगा। अमेरिका में तरह-तरह के अपराधियों में से 93 प्रतिशत को अदालतों से सजा हो जाती है। यहां का प्रतिशत सिर्फ 46 है। वैसे उपाय यहां भी करने होंगे, ताकि सजा का प्रतिशत बढ़े।
मुझे पहले लगता था कि यदि देश का प्रधानमंत्री खुद पैसे बनाने वाला नहीं हो या अपने लोगों को पैसे न बनाने दे तो देश भर के शासन तंत्र पर उसका सकारात्मक असर पड़ेगा। पर, मोदी जी के राज में भी ऐसा नहीं हो सका। मोदी जैसा ईमानदार व लोकप्रिय नेता कोरोना संकट की पृष्ठभूमि में उपर्युक्त कड़े कदम यदि उठाए तो अधिकतर जनता उनकी वाहवाही करेगी। पर क्या वे इस देश के भ्रष्टों यानी दीमकों पर सर्जिकल स्ट्राइक करने का साहस कर पाएंगे? मोदी, किसी को बार-बार मौका नहीं मिलता। यदि निर्णायक आप कदम नहीं उठाएंगे तो फिर इस देश में शीर्ष स्तर पर महा घोटालेबाज हावी हो जाएंगे। इस नारे को सार्थक करने का माकूल समय आ गया है कि ‘मोदी है तो मुमकिन है?
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