मंगला अनुजा पत्रकारिता की अप्रतिम अध्येता, इनके बारे में जानिए

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मंगला अनुजा पत्रकारिता की अप्रतिम अध्येता हैं। साहित्य का संस्कार मंगला अनुजा को विरासत में मिला। उनके पिता श्री कृष्णहरि पचौरी साहित्यकार थे।
मंगला अनुजा पत्रकारिता की अप्रतिम अध्येता हैं। साहित्य का संस्कार मंगला अनुजा को विरासत में मिला। उनके पिता श्री कृष्णहरि पचौरी साहित्यकार थे।
मंगला अनुजा पत्रकारिता की अप्रतिम अध्येता हैं। साहित्य का संस्कार मंगला अनुजा को विरासत में मिला। उनके पिता श्री कृष्णहरि पचौरी साहित्यकार थे। मंगला अनुजा के बारे में जानने के लिएपढ़ें यह आलेख….
  • कृपाशंकर चौबे
कृपाशंकर चौबे
कृपाशंकर चौबे

माधवराव सप्रे समाचार पत्र संग्रहालय, भोपाल की निदेशक डाक्टर मंगला अनुजा को साहित्य का संस्कार विरासत में मिला। उनके पिता श्री कृष्णहरि पचौरी साहित्यकार थे इसलिए मंगला अनुजा का बचपन साहित्यिक परिवेश में बीता। पिता की तरह मंगला जी भी हिंदी-संस्कृत की शिक्षक बन गईं। पत्रकारिता की वे अप्रतिम अध्येता बी हैं। ‘स्वातंत्र्योत्तर हिंदी पत्रिकाओं में व्यंग्य’ पर शोध प्रबंध लिखनेवाली मंगला अनुजा ने हिंदी की पहली महिला संपादक हेमंत कुमारी देवी चौधरी और सुभद्राकुमारी चौहान पर मोनोग्राफ लिखा। पत्रकारिता के संदर्भ में मंगला अनुजा का अध्ययन ‘गांधी और गणेश’ चर्चित रहा है। उस शोध पत्र में मंगला जी ने महात्मा गांधी और गणेश शंकर विद्यार्थी की पत्रकारिता का तुलनात्मक अध्ययन किया था जिसे उन्होंने महात्मा गांधी के जन्म के125वें वर्ष की राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रस्तुत किया था और विद्वानों ने मुक्त कंठ से उसे सराहा था। मंगला अनुजा की एक और चर्चित किताब रही है-‘छत्तीसगढ़ः पत्रकारिता की संस्कार भूमि’।

माधवराव सप्रे समाचार पत्र संग्रहालय के संस्थापक विजय दत्त श्रीधर के सान्निध्य व साहचर्य में मंगला अनुजा ने संग्रहालय में उपलब्ध सामग्री का अध्ययन कर ‘भारतीय पत्रकारिता नींव के पत्थर’ जैसी मूल्यवान किताब लिखी जिसमें भारत में पत्रकारिता के आरंभ से 1933 तक की 31 पत्र-पत्रिकाओं का विस्तृत विवरण दर्ज है। हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, फारसी, गुजराती, मराठी और मलयालम भाषाओं की इन पत्र-पत्रिकाओं ने पत्रकारिता के इतिहास की रचना की है। पुस्तक का पहला निबंध ‘बंगाल गजट आर कलकत्ता जनरल एडवरटाइजर’ है जिसके प्रकाशन के साथ ही 29 जनवरी 1780 को भारत में पत्रकारिता का जन्म हुआ।

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जेम्स आगस्टस हिकी नामक अंग्रेज ने उस अंग्रेजी साप्ताहिक को निकाला था। उसे हिकीज गजट के नाम से जाना जाता है। ईस्ट इण्डिया कम्पनी में जहां भी अनौचित्य देखता, हिकी अपने अखबार में उसकी आलोचना करता था। उसके फलस्वरूप उसे जनरल पोस्ट ऑफिस से समाचार पत्र भेजने की सुविधा से वंचित कर दिया गया। हिकी की पत्रकारिता पर वारेन हेस्टिंग्ज का वह पहला प्रहार था। मंगला अनुजा ने लिखा है कि वह भारत में पत्रकारिता के क्षेत्र में समाचार पत्र के शासन से टकराने की पहली घटना थी। जेम्स आगस्टस हिकी ने व्यवस्था से टकराने और अभिव्यक्ति की आजादी के लिए प्रताड़ना के रूप में कीमत चुकाने का सम्मान भी हासिल किया।

मंगला अनुजा बताती हैं कि जिस कोलकाता में अंग्रेजी पत्रकारिता का जन्म हुआ, उसी शहर में उर्दू, फारसी और हिंदी पत्रकारिता का जन्म किन परिस्थितियों में हुआ। भारत में फारसी पत्रकारिता का जन्म कोलकाता में 20 अप्रैल, 1822 को ‘मिरात-उल-अखबार’ के प्रकाशन के साथ हुआ। उसे राजा राममोहन राय ने कोलकाता से निकाला था। राजा राममोहन राय ने उसके प्रकाशन की घोषणा करते हुए कहा था, “अवाम को मुत्तला किया जाता है कि इस मुल्क में बहुत से अखबार शाया होते हैं लेकिन अब तक फारसी का कोई अखबार शाया नहीं हुआ है। जिससे उन लोगों को अमूमन जो अंग्रेजी से नावाकिफ हैं और हिन्दी के रहने वालों को खुसून खबरें मालूम हो सकें, चुनांचे एडीटर ‘मिरात-उल-अखबार’ के इजरा का काम शुरू कर रहा है।” फारसी की तरह उर्दू का पहला समाचार पत्र ‘जाम-ए-जहाँनुमा’ कोलकाता से 27 मार्च 1822 को निकला। उस साप्ताहिक के सम्पादक मुंशी सदासुख मिर्जापुरी थे। संचालक हरिहर दत्त थे। 30 मई 1826 को कोलकाता से युगल किशोर शुक्ल ने हिंदुस्तानियों के हित के हेत हिंदी का पहला समाचार पत्र ‘उदन्त मार्तण्ड’ निकाला। गुजराती समाचार पत्र ‘मुम्बई समाचार’ एक जुलाई 1822 को निकला। उसके पीछे बांग्ला के प्रथम समाचार पत्र ‘समाचार दर्पण’ की प्रेरणा थी।

‘भारतीय पत्रकारिता नींव के पत्थर’ पुस्तक ने ‘टाइम्स आफ इंडिया’,‘मालवा अखबार’, ‘समाचार सुधावर्षण’, ‘उर्दू गाइड’, ‘कविवचनसुधा’, ‘अमृतबाजार पत्रिका’, ‘‘स्टेट्समैन’, ‘हिंदी प्रदीप’, ‘अवध पंच’, ‘भारत मित्र’, ‘हिंदू’, ‘केसरी’, ‘हिंदोस्थान’, ‘भारतभ्राता’, ‘मलयाल मनोरमा’, ‘हिंदी बंगवासी’, ‘श्रीवेंकटेश्वर समाचार’, ‘सरस्वती’, ‘छत्तीसगढ़ मित्र’, ‘अभ्युदय’’, ‘स्वराज’, ‘प्रताप’, ‘संदेश’, ‘कर्मवीर’, ‘आज’ और ‘विशाल भारत’ की कहानी भी प्रस्तुत करते हुए बताया है कि उन पत्र-पत्रिकाओं के ध्येय क्या थे?  तब के संपादकों की ध्येय-निष्ठा, समर्पण और मूल्यों के प्रति संकल्प कितना दढ़ था? सामाजिक सरोकारों और राष्ट्रीय लक्ष्यों के प्रति कितना समर्पण था?

मंगला अनुजा ने बरकत उल्ला विश्वविद्यालय, भोपाल से ‘भारतीय पत्रकारिता के परिप्रेक्ष्य में हिंदी की महिला पत्रकारिता’ विषय पर डी-लिट. की उपाधि प्राप्त की। उस गंभीर अध्ययन की परिणति है ‘आधी दुनिया की पूरी पत्रकारिता’ नामक पुस्तक। पुस्तक 15 अध्यायों में विभक्त है जिसमें भारत में महिला पत्रकारिता, भारतीय भाषाओं की पत्रकारिता में महिला सहभागिता, हिंदी पत्रकारिता में महिला सहभागिता, महिलाओं द्वारा संपादित पत्र-पत्रिकाएं, महिला संवाददाता, महिला स्तंभकार, स्वतंत्र महिला पत्रकार, महिला साक्षात्कारकर्ता, महिला फोटो पत्रकार शीर्षक अध्याय शामिल हैं। इस किताब पत्रकारिता में महिलाओं की सहभागिता, स्थिति और समसामयिक प्रसंगों में प्रस्तुति और उपस्थिति का मंगला अनुजा ने सम्यक आकलन किया है। यह मूल्यवान किताब महिला संपादकों-पत्रकारों की भूमिका और अवदान, उनकी उपलब्धियों और उनके संघर्ष से परिचित कराती है।

किताब बताती है कि भारतीय भाषाओं की पहली महिला पत्रकार मोक्षदायिनी देवी हैं, जिन्होंने सन् 1848 में ‘बांग्ला महिला’ नाम की पत्रिका निकाली थी। चेनम्मा तुमरि को कन्नड़, आसिफ जहां को उर्दू, तानुबाई को मराठी, रेवा राय को ओडिशी, के. रामालक्ष्मी को तेलुगू, जालु कांगा को गुजराती और कल्याणी अम्मा को मलयालम में महिला पत्रकारिता की शुरुआत करने का श्रेय जाता है। ऐनी बेसेंट  ने ‘न्यू इंडिया’ का संपादन-प्रकाशन कर न केवल अंग्रेजी पत्रकारिता को अपना कार्य क्षेत्र बनाया वरन् उन्हें भारत में पत्रकारिता की शिक्षा का सूत्रपात करने का गौरव भी प्राप्त है।

समकालीन पत्रकारिता-शिक्षा में दविंदर कौर उप्पल एक आदर्श गुरु के रूप में समादृत हैं। इसी शृंखला में एक यशस्वी नाम टैगोर परिवार की सुवर्ण कुमारी देवी का है, जिन्होंने बांग्ला पत्रिका ‘भारती’ का संपादन किया उनकी सुपुत्री सरला देवी ने भी कई वर्षों तक ‘भारती’ के संपादन का दायित्व निभाया। गुजराती में ‘स्त्री बोध’, मराठी में ‘स्त्री भूषण’, कनड़ में ‘शाला मठ’, उर्दू  में ‘तहजीब- ए-निस्वां’, तेलुगू में ‘सती हित बोधिनी’, ओडिशी में’ आशा’, तमिल में ‘गृहलक्ष्मी’ और मलयालम में ‘केरलीय सुगुण बोधिनी’ पत्रिकाओं से महिला पत्रकारिता की पुष्ट नींव पड़ी। हिंदी में महिलाओं के लिए पहली पत्रिका ‘बालाबोधिनी’ भारतेंदु हरिश्चंद्र ने सन् 1874 में काशी से निकाली। उस परंपरा को हेमंत कुमारी देवी चौधरी ने आगे बढ़ाया उन्होंने रतलाम से सन् 1888 में ‘सुगृहिणी’ मासिक पत्रिका का संपादन-प्रकाशन किया। वे हिंदी की प्रथम महिला संपादक के रूप में समादृत हैं। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में राष्ट्रीय आंदोलन को वाणी देने के लिए जिस गुप्त रेडियो ने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, उसका संचालन उषा मेहता ने किया था। महादेवी वर्मा ने ‘चाँद’ जैसी तेजस्वी पत्रिका का संपादन किया तो सुभद्रा कुमारी चौहान ने ‘नारी’ शीर्षक से पत्रिका निकाली। उसी परंपरा की एक मजबूत कड़ी सांप्रतिक काल में मृणाल पांडेय से जुड़ती है।

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