- वीर विनोद छाबड़ा
मधुबाला से दिलीप कुमार का इश्क़ हिंदुस्तान भर में चर्चा का विषय था। वह भी क्या दौर था, जब दोनों की जोड़ी परफेक्ट मानी जाती थी। पर, जोड़ी टूट गयी। नज़र लग गयी किसी दिलजले की। 1956 में दिलीप कुमार-मधुबाला का रोमांस बीआर चोपड़ा की ‘नया दौर’ के अदालती पचड़े में फंसा। और एक दर्द भरे अफ़साने के नोट पर ख़त्म हो गया। इसमें मधु के विलेन अब्बू अताउल्लाह खां का भी बड़ा हाथ रहा। उन्हें मालूम था कि बेटी यूसुफ उर्फ दिलीप कुमार के प्यार में इतना गुम हो जाएगी कि सबको भूल जायेगी। उसकी कमाई पर पल रहा दर्जन भर बंदों का परिवार भूखों मर जाएगा। इस तरह मधु को यूसुफ़ से दूर रखना उनकी मजबूरी थी।
इधर यूसुफ तो वैजयंतीमाला के आगोश में चले गए, लेकिन उधर मधुबाला तन्हा रह गयीं। वह यह बेवफ़ाई बर्दाश्त नहीं कर पायी। तबीयत भी नासाज़ रहने लगी। ज़िंदगी में मधु ने कई हादसे झेले थे। 1954 में मद्रास में ‘बहुत दिन हुए’ की शूटिंग के दौरान खून की उल्टी हुई थी। लंबे आराम और मुकम्मल चेक-अप की सलाह की उन्होंने परवाह न की। ‘मुगल-ए-आज़म’ की शूटिंग के दौरान भी उसकी तबीयत कई बार बिगड़ी। मगर इसके बावजूद वह हाथ में खंजर लेकर शहंशाह अकबर को चैलेंज करती रहीं- प्यार किया तो डरना क्या… तो कभी भारी-भारी लोहे की जंजीरों में जकड़ी हुई शिकायत करती दिखीं- मोहब्बत की झूठी कहानी पे रोये…। नासाज़ तबियत के मद्देनज़र उन्हें ऐसे सीन नहीं करने चाहिए थे। लेकिन सीन में जान फूंकने की गरज़ से वो ऐसा करती रहीं। ऐसा करके शायद वो खुद को साहेब से मुख़ातिब पातीं थीं। मानों यूसुफ़ को संदेशा भी दे रही होतीं थीं- मैं अब भी तुम्हारी हूं।
यूसुफ भी शायद लौट आते, अगर बीच में मधु के अब्बू न खड़े होते। मधु खुद भी तो अपनी की कमाई पर पल रहे भरे-पूरे ख़ानदान को नहीं छोड़ सकती थीं। ऐसे में वो करतीं भी तो क्या? आख़िरकार साहेब को दिल से निकालने का दर्द भरा फैसला किया। उन्होंने 1960 में किशोर कुमार से शादी कर ली।
किशोर से शादी करने की कई वज़हें भी थीं। मधु उसके साथ चलती का नाम गाड़ी, झुमरू, हाफ टिकट आदि कई हिट फिल्में कर चुकी थी। किशोर कई बार उसे शादी का पैगाम दे चुके थे। कहते थे, मर जाऊंगा। मधु को हंसाने के लिए उसके सामने पागलों जैसी हरकतें करते। मधु को लगा कि किशोर उसे हंसाते रहेंगे। उसे ग़मों से दूर ले जाएंगे। मगर इसके बावजूद वह असमंजस्य में रही कि क्या वह किशोर को ठीक से समझती है? लेकिन यह तो तय था कि वह किशोर से मोहब्बत नहीं करती थीं। उन्हें यह भी शक़ रहा कि किशोर उसे वाकई चाहते भी हैं या नहीं, और अगर चाहते भी हैं तो कितना? दरअसल यह किशोर की दूसरी शादी थी।
इस शादी से मधु के अब्बू खुश नहीं हुए। मगर उनके पास इस रिश्ते को कुबूल करने के सिवा दूसरा रास्ता भी नहीं था। उन्हें डर था कि कहीं मधु विद्रोह न कर दे। डिप्रेशन में न चली जाये। मगर उनके लिए बड़ी ख़ुशी की बात यह थी कि मधु यूसुफ की न हुई। अगर वह दिलीप कुमार की हो जाती तो सबको भूल जाती।
किशोर को मधु की बीमारी मालूम थी। मगर इसकी गंभीरता को नहीं समझा। मर्ज़ बढ़ता देख वे मधु को चेक-अप के लिये लंदन ले गए। डॉक्टर ने दिल दहलाने वाली ख़बर दी। मधु के दिल में एक बड़ा सुराख़ है और बाकी जिंदगी ज्यादा से ज्यादा दस साल तक। हाय, क्या से क्या हो गया? किशोर का दिल टूट गया। उन्होंने खुद को फ़िल्मी काम में डुबो लिया। अब मधु के नसीब में सिर्फ़ मौत का इंतज़ार करना बदा था। किशोर को काम से फुर्सत नहीं थी कि हर वक़्त मधु से चिपके रहें। और ऐसे ही मुकाम पर मधु को उस प्रेमी की शिद्दत से ज़रूरत थी, जो उसको उससे से भी ज्यादा बेपनाह मोहब्बत करता हो। आह! वो दिलीप कुमार ही हो सकते थे। काश, वो एक बार अब्बू से सॉरी बोल देते। सारे गिले-शिकवे जाते रहते। शहनाइयां बज उठती। मगर अब बहुत देर हो चुकी थी।
मधु मायके आ गयी। यों भी ससुराल में उसे कभी प्यार नहीं मिला। किशोर पद्रह-बीस दिन में एक-आध बार थोड़ी देर के लिए आकर मिल लेते। इस दरम्यान 44 साल के दिलीप कुमार ने अपने से आधी उम्र की सायरा बानो से ब्याह रचा लिया। मधु ने सुना तो जी धक्क हो उठा। यकीनन वो कतई खुश नहीं हो सकती थीं। जो शख्स उसका होना चाहिए था, वह किसी और के आगोश में चला गया था। उनके मुंह से इतना ही निकला- वो मेरे नसीब में ही नहीं थे।
आखिरकार 23 फरवरी, 1969को दोज़ख भरी जिंदगी से मधु छुटकारा पा गयीं। किशोर बाहर जाते-जाते रुक गए। बताया जाता है कि मधु की ख्वाहिश के मुताबिक उनके जिस्म के साथ उनकी पर्सनल डायरी भी दफ़न कर दी गयी। अगर यह सच है तो यक़ीनन इसमें उन्होंने उस शख्स का ज़िक्र बार-बार किया होगा, जिससे उसने दिल की गहराइयों से बेपनाह मोहब्बत की, जाने कितनी रातें तड़प-तड़प कर जागते हुए उसकी याद में गुज़ारीं, जिसका विछोह वो बर्दाश्त नहीं कर पायीं और खुद को तकलीफ़ देती रही। वो अपने अब्बू की सलामती की दुआएं करती रहीं होंगी, जो ये नही समझ पाया कि आखिर अपने प्यारे परिवार को छोड़कर कैसे वो परायी हो जाती, जो सिर्फ उसी की कमायी पर ज़िंदा था। मधु ने इन हालात को कैसे और किन लफ़्जों में बयां किया होगा? इसे कोई नहीं जान पाया। सब मिट्टी हो गया मधु के जिस्म के साथ ही। फ़ना हो गया। इतने दिलकश और खूबसूरत जिस्म की मल्लिका का भरी जवानी में रुख़्सत हो जाना यकीनन बड़ा दर्दनाक मंज़र था।
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मधु की इस फानी दुनिया से रुखसती उनके लाखों चाहने वालों के लिए किसी हादसे से कम नहीं रहा होगा। उन्होंने बामुश्किल झेला होगा। वो इसलिये भी चली गयी कि नियति को मंजूर नहीं था कि वो कभी बूढ़ी हों और उन्हें बूढ़ी देख कर उसके चाहने वालों के दिल टूटें।
मधु ने चाहा था कि जब वो आख़िरी सांस ले तो दिलीप कुमार उर्फ साहेब उस दिन उसके पास न हों। इसलिए कि उसे जाते हुए देखना वो बर्दाश्त नहीं कर पायेंगे। इत्तिफ़ाक़ से दिलीप कुमार उस दिन बंबई से बाहर थे। वो मद्रास में शूटिंग कर रहे थे। खबर हुई तो दौड़े चले आये। मगर देर हो चुकी थी। उनकी प्यारी मधु दफ़न हो चुकी थीं। अपनी जान से भी ज्यादा उन्हें चाहने वाली मधु की कब्र पर वो सिर्फ अक़ीदत के फूल ही चढ़ा सके। उस दिन उन्होंने भी ज़रूर सोचा होगा कि काश वो ही दो कदम आग बढ़ लेते। अत्ताउल्लाह खान को सिर्फ ‘सॉरी’ ही तो बोलना था। ज़ुबां तो नहीं घिस जाती। मधु इतनी तकलीफ में तो न विदा लेतीं। ये नामुराद दिल भी बड़ी अजीब शै है। नाजुक इतना कि ज़रा-ज़रा सी बात पर टूट जाये और ज़िद्दी इतना कि पत्थर से भी कहीं ज्यादा सख्त हो जाये।
मधु ने तकरीबन 70 फिल्मों में काम किया। इसमें से सिर्फ 15 ही हिट हुईं। ज्यादा से ज्यादा फिल्में साइन करके परिवार के लिये ढेर सारा पैसा कमाना ही उनका एकमात्र मक़सद रहा। इसलिये वो कैसी भी फिल्म हो, फौरन करने के लिये तैयार रहीं। हालांकि उसमें टेलेंट की कोई कमी नहीं रही। मुगले आज़म, हावड़ा ब्रिज, चलती का नाम गाड़ी, मिस्टर एंड मिसेज़ 55, जाली नोट, महल, तराना आदि फिल्में इस सच को पुख्ता करती हैं।
एक मशहूर पत्रकार ने उसके बारे में कहा था कि मधु की खूबसूरती के सामने उनके टेलेंट को कभी इज़्ज़त नहीं मिली। हालीवुड के मशहूर फिल्मकार फ्रेंक कोपरा ने भी मधुबाला की खूबसूरती पर फ़िदा होकर उनमें दिलचस्पी दिखायी। परंतु अब्बू अताउल्लाह ने बेटी को सात समंदर पार भेजने से मना कर दिया। दरअसल उन्हें बेटी के बीमार दिल का हाल मालूम था। अमेरिका की मशहूर पत्रिका ‘थियेटर आर्टस’ ने अपने अगस्त, 1952 के अंक में मधुबाला को खास जगह दी थी। मशहूर पत्रकार बीके करंजिया ने कहा था कि उन्होंने जब पहली मर्तबा मधु को देखा तो देर तक पलकें बंद नहीं कर पाये। इतनी नायाब खूबसूरती की कल्पना कभी खुशनुमा सपने में भी नहीं की थी। वो कुदरत का नायाब बुत थीं। मधु को भारतीय सिनेमा की वीनस कहा गया। सुना है उसकी कब्र को पलट दिया गया है, ताकि उस जगह कोई दूसरा लेट सके। बेशक खूबसूरती का पर्याय मधु का जिस्म मिट्टी हो चुका है, लेकिन फिज़ा में उनके होने का अहसास सदियों तक बाकी रहेगा।
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