- डी. कृष्ण राव
कोलकाता। ममता बनर्जी की चोट पर वोट मांगने की योजना पर पानी फिरता नजर आ रहा है। कहीं से उन पर हमले की पुष्टि नहीं हो रही। उल्टे ममता सवालों से घिरती जा रही है। नंदीग्राम में प्रचार के दौरान ममता बनर्जी घायल हुई थीं। इस घटना के 36 घंटा बीत जाने के बाद भी ममता बनर्जी के आरोप के मुताबिक वे चार-पांच षड्यंत्रकारी युवक पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैं, जिनकी वजह से उनके पैर में चोट आई। अब तो बंगाल में पुलिस और ममता की व्यवस्था पर ही सवाल उठ रहे हैं।
इस घटना को लेकर लोगों के अनगिनत सवाल हैं। उनमें से एक सवाल यह भी है क्या चुनाव घोषणा होने के बाद मुख्यमंत्री की सुरक्षा व्यवस्था पूरी तरह चुनाव आयोग के अधीन हो जाता है? इसका जवाब है- नहीं। मुख्यमंत्री की सुरक्षा व्यवस्था के लिए एक विशेष सीएम सिक्योरिटी डायरेक्टरेट है, जो पूरी तरह स्वतंत्र है। तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो और पार्टी की ओर से जिस षड्यंत्र की बात कही जा रही है, अगर वह सच है तो पहले सीएमएस डायरेक्टरेट की ओर से उन सुरक्षाकर्मियों से पूछताछ जरूरी है, जो उस दिन सीएम की सुरक्षा में थे। दूसरा, कहीं वे सुरक्षाकर्मी तो इस षड्यंत्र के अंग नहीं हैं, इसकी भी जांच जरूरी है। एक और सवाल जो उठ रहा है कि अगर इतना बड़ा षड्यंत्र मुख्यमंत्री के साथ हुआ है तो घटनास्थल और जिस खंभे का जिक्र किया जा रहा है, जांच के लिए उसे घेर कर क्यों नहीं रखा गया। सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगले ही दिन मुख्यमंत्री की सुरक्षा डायरेक्टरेट की ओर से घटना की री कंस्ट्रक्शन क्यों नहीं किया गया? खंभा और गाड़ी की फॉरेंसिक जांच क्यों नहीं करायी गयी।
ध्यान रहे कि ममता बनर्जी के पास जेड प्लस कैटेगरी की सुरक्षा व्यवस्था है। इसके बावजूद क्या ममता बनर्जी उस प्रोटोकॉल को फॉलो करती हैं? ममता बनर्जी पॉपुलर लीडर बनने के लिए लोगों के बीच रहना पसंद करती हैं। अक्सर देखा जाता है कि गाड़ी रोक कर वह उतर जाती हैं और लोगों से बातचीत करने लगती हैं। उसके बाद सुरक्षाकर्मी वहां पहुंचते हैं। यानी सीधे कहें तो ममता बनर्जी जेड प्लस का जो प्रोटोकॉल है, उसे फॉलो नहीं करतीं। सबसे बड़ी बात यह है कि ममता बनर्जी ने खुद मुहिम चलाई थी- सेफ ड्राइव एंड सेव लाइफ, लेकिन घटना के दिन ममता बनर्जी जिस तरह दरवाजा खोल कर लोगों को नमस्कार करते आगे बढ़ रही थीं, उससे तो यही लगता है कि खुद का बनाया हुआ नियम वह खुद ही पालन नहीं कर रही थीं।
घटना के बाद कल तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पार्थो चटर्जी और बॉबी हकीम ने दुर्घटनाग्रस्त गाड़ी को दिखाते हुए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस किया और कहा कि अगर गाड़ी रास्ते में लगाये हुए पिलर से टकरायी होती तो गाड़ी मैं निशान क्यों नहीं दिख रहे। इसे लेकर भी कई सवाल उठ रहे हैं। पहला सवाल यह कि दुर्घटना स्थल से दुर्घटनाग्रस्त गाड़ी बॉबी हकीम तक कैसे पहुंची। वह गाड़ी तो फॉरेंसिक जांच के लिए लैब में होनी चाहिए। दूसरा सवाल कि गाड़ी बुलेट प्रूफ थी। अन्य गाड़ियों से कई गुना मजबूत है। छोटे-मोटे धक्के से उसे कुछ होता ही नहीं।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि दुर्घटना के बाद से ही तृणमूल कांग्रेस के नेता घटना की जांच कराने और आरोपियों को पकड़वाने के बजाय घटना को सुनियोजित तरीके से प्रचार कर सेंटीमेंट के जरिए चुनावी प्रचार करना चाहते थे। इसीलिए वे सोशल मीडिया में ममता बनर्जी पर हमले और उनके घायल होने की तस्वीर डाल कर जोर शोर से प्रचार में जुटे हुए हैं। भाजपा भी पीछे कैसे रहती। भाजपा ने तो घटना की तस्वीर-वीडियो लोगों के सामने लाने की बात कह डाली। तृणमूल का कोई नेता यह सवाल नहीं उठा रहा कि हमला था तो हमलावर अभी तक गिरफ्तार क्यों नहीं हुए। इतनी बड़ी घटना के बाद पूर्व मेदिनीपुर के डीएम, एसपी और नंदीग्राम थाना के प्रभारी को सस्पेंड क्यों नहीं किया गया।
दरअसल इस घटना के बाद चुनावी मौसम में बंगाल में राजनीतिक नफा-नुकसान की बात तो आएगी ही। नंदीग्राम सीट से इस बार ममता बनर्जी चुनाव लड़ रही हैं। वहां ममता बनर्जी के चुनाव मैनेजर और खुद ममता बनर्जी को भी, जिन्हें लोगों का मन और चेहरा पढ़ना बखूबी आता है, पता चल गया है कि नंदीग्राम के 2,72,000 वोटरों में एक बड़े तबके में नाराजगी है। इस नाराज तबके को रिझाने के लिए ही ममता बनर्जी ने पर्चा भरने के दिन ही हरि नाम संकीर्तन से लेकर नंदीग्राम में 8 मंदिरों का दर्शन किया। इसका साफ संकेत है कि ममता बनर्जी को भी यह बात पता है कि हिन्दू वोटर नाराज हैं।
लोगों की नाराजगी का एक ताजा कारण बन गयी है ममता के घायल होने की घटना। कल जिला प्रशासन के लोग घटना की जांच करने नंदीग्राम पहुंचे थे। ग्रामीणों और युवाओं में ममता बनर्जी के खिलाफ इस बात के लिए आक्रोश था कि ममता नंदीग्राम को बदनाम कर रही हैं। एक सामान्य दुर्घटना को साजिश का रंग दे रही हैं। नंदीग्राम के लोगों को बदनाम कर रही हैं।