मलिकाइन के आइल पातीः का बरखा जब कृषि सुखानी

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पावं लागीं मलिकार

राउर पाती के बाट जोहत आंख सिरा गइल। अइसन जनि करीं, मलिकार। रउरा त जनबे करीले कि सूतत-उठत रउरे चेहरा दिमाग में नाचत रहेला। नन्हको रउरे नाम जबत रहेले सन। बड़का त अब होशियार हो गइल बा। काल्ह पूछत रहुवे- ए माई, बाबूजी कहिया आयेब। उहां का घरे आवे में एतना देरा काहें करीले। हमनी के इयाद उहां का ना अवे का। तूं त कहत रहलू कि सावन में आवे के कहले बानी। तनी पूछ के बताव कि उहां के आयेब कि फेरू देरी क देब।

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बूझ जाईं मलिकार कि हमरा त कठुआ मार दिहलस ई सून के। जानत बानी, ऊ काहें खातिर राउर इंतजार करत बा। ओकरा के केहू बतवले बा कि अरब जाये के पासपोट तोर बाबूजी चाहीं त जल्दी बन जाई। गांव-जवार के ओकर कई गो संघतिया अरब कमाये चल गइले सन। जवन पांड़े बाबा कहत रहनी हां कि आपन माटी छोड़ के दोसरा देस में काहें खातिर कमाये के। उहों के मन पलट गइल। नतिया के उहां के पासपोट बनवा दिहनी आ एक लाख रुपिया लगा के ओकरा के अरब भेज दिहनी। दू महीना हो गइल ओकरा गइले। काल्ह ओकरा लग से 50 हजार के डराफ डाक से आइल त पांड़े बाबा सतनारायन बाबा के कथा रोप दिहनी। सावन के सतमी के होई। मय गांव के उहां के भोज पर नेवतले बानी।

जब से उहां के नतिया अरब गइल बा, आपन बड़का चौबीसो घंटा एही बतकही में रहत बा कि कइसे उहो चल जाव। एक दिन कहतो रहे कि ए माई, बाबू जी त अब बूढ़ भइनी। कहिया ले उहां के जांगर ठेंठायेब। अब हमहू कमा के उहां के मदद करे लायक हो गइल बानी माई। जानतानी मलिकार, ओकर बात सुन के आंख भर गइल। बाली उमिर के लड़िका एतना सोचे लागल।

हम कहनी कि ए बाबू, काहें एतना परेशान बाड़। तोहार बाबूजी त जिनिगी भर एही जा नू कमइनी आ तोहरा लोगन के कवनो चीज के कमी ना होखे दिहनी। तूहूं एही जा कमइह। काहे खातिर बाहर जाये के। जान तानी मलिकार, ऊ का कहलस। सुन के रउरो चिहा जायेब। कहे लागल- एइजा कुछऊ नइखे होखे के। केतना खर्चा क के माई-बाप बाल-बच्चा के पढ़ावत बा लोग। इंजीनियरी-मनेजरी के पढ़ाई क के लोग घरे बइठल बा, भा दस-पंद्रह हजार के नौकरी करत बा लोग। रोजी-रोजगार केहू के मिलते नइखे। मोदी जी त ई कह दिहले बाड़े कि पकउड़ी बेच लोगिन। अब तेहीं बताव माई कि पढ़-लिख के चाय-पकौड़ी बेचल जाई। सभे बेचही लागी त खाई-खरीदी की।

चलीं, हमहू कवन बतकही ले के बइठ गइनी। गांव-जवार के बतकही त भइबे ना कइल। बरखा त ना जाने कवना देस में चल गइल बा। धान के बीया बोरिंग चला के लोग गिरा लिहले रहल हा, बाकिर बरखा ना भइला से रोपनी हो पाई कि ना, कहल मुसकिल बा। खेती के खरच त रउरा जाते बानी। खाद, पानी आ बीया के महंगाई त बड़ले बा, मजूरो नइखन मिलत। सब पंजाब ध लिहले बाड़े सन। उमस आ गरमी से लोग के तबाही अउरी बढ़ गइल। सावनो अब शुरू होखे वाला बा।

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आपन धेयान राखेब। उमिर भइल। खाये-पीये में परहेज करेब। दवा-दारू नागा मत करब। रउरा भुलक्कड़ हईं, एही से कहे के परत बा।

राउरे

मलिकाइन

 

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