पांव लागी मलिकार। पाती पठावे में तनी देर-सबेर हो गइल हा, एकरा खातिर मन में कवनो बाउर बात जनि सोचब। हमार बड़की माई जबले जीयली, हमनी पर खिसियास त एगो कहाउत जरूर कहस- चिरई के जान जाव लड़िका खेलवना। ओह घरी त लरिकाईं रहे मलिकार, एह से खीसा-परतोख भा कथा-कहाउत के कवनो माने समझ में ना आवे, बाकिर बड़ भइला पर बुझाये लागल कि बूढ़-पुरनिया बाबा-इया, बड़की माई-बड़का बाबूजी भा नाना-नानी खाली मन मनसायन खातिर कुछ ना कहे लोग। ओकरा पीछे बड़हन सनेस रहत रहे। बाद में हमरो समझ में आ गइल कि केहू दुख में होखे आ ओह मौका पर केहू ओकर मजाक उड़ावे त एही के कहल जाला- चिरई के जान जाव लड़िका खेलवना।
अब बूझ जाईं मलिकार कि बिहार में वोट होखे जाता। पांड़े बाबा काल्ह कहत रहुवीं कि तीसरका महीना में वोट होखे वाला बा। रउरा त जनबे करीले कि उहां के रोज भोरे-भोरे कई गो खबर कागज बांची ले। ओकरा बाद जे दुआर पर आवेला, ओकरा के खबरिया कुल के बड़ा नीक ढंग से समझाई ले। उहां के कहत रहुवीं कि देस के हालत खराब बा। सरकार के आमदनी त घटले बा, देस के आमदनी भी घट गइल बा। कवन दूना एगो जीडीपी के बतकही करत रहुवीं। कहत कहुवीं कि माइनस में चल गइल बा। अइसन हालत कबो ना भइल रहल हा। रोजी-रोजगार त लोग के चलिए गइल बा, दउरी-दोकान सब बंद पड़ल बाड़ी सन। कल-कारखाना में सामान बनते नइखे। एही से ई गत भइल बा।
पहिले त हमरा ई माथा में ढुबे ना कउवे मलिकार कि ई जीडीपी घटला के माने का होला आ माइनस माने का होला। हमरा मन में ई जाने के बात रहुवे, बाकिर रउरा त जनबे करीले मलिकार कि पांड़े बाबा के सोझा आज ले खड़ा ना भइनी त पूछ कइसे सकीले। ई कहीं कि ओही बेरा बलेसर आ गउवन आ ऊ हमरा मन के बात पांड़े बाबा से पूछ दिहुवन। मोटामोटी हां के समझा दीहवीं। उहां के कहत रहुवीं कि खेती से आमदनी, कल-कारखाना से आमदनी आ दउरी-दोकान से जवन आमदनी होला, एह कुली के मिला के देखल जाला कि काल्ह ले जेतना आमद रहे, ओइमे कमी भइल कि बेसी भइल। अबकी बेर कोरना बेमारी के कारन सब काम-धाम पांच-छह महीना से बंद बा। दू करोड़ से बेसी लोग के त चाकरी चल गइल। एही से जीडीपी घट गइल बा। उहां के घटल ना, रसातल में चल गइल बा कहत रहुवीं।
बलेसर पुछुवन कि ए बाबा, कबले अइसन हाल रही, त पांड़े बाबा साफ कहुवीं कि बेकारी त बढ़त रही। आमदनी घटत रही, खटनी बढ़ जाई। फेर सब समझा के बतउवीं कि सरकार अप जोजना बनावत बिया कि पचार बरिस से बेसी उमिर वाला लोग के सरकारी नौकतरी चल जाई। रेल, जहाज आ जेतना सरकारी कारखाना रहली हा सन सरकार ओकरा के हमरा-तोहरा अइसन आदमी के बेच दीं, जे ओकरा के चलाई अपना ढंग से। एकर माने साफ बा कि अब सरकारी नोकरी गइल। पराइवेट में लोग के नोकरी करे के परी। पराइवेट में त सभे जाने ला कि मालिक जब मन करी, जेकरा के हटावे के हटा दी। जबले जांगर में जोर रही, खटाई, कमजोर होते बहरी के राह देखा दी। सरकार के थोर-ढेर नोकरी रहबो करिहे सन त उहो कम पइसा पर ठीका पर होइहें सन।
पांड़े बाबा कहुवीं- सुनला ना बलेसर, बड़का मोदी जी का कहले ओह दिन रेडिअवा पर। खेलौना घरे-घरे बनाव लोगिन। एक बेर सत इहो कहले रहले कि जीये वाला त पकौड़ी छान के आपन जीवन काट सकेला। आपना काम आ आपन खरच अब अपने से जोगाड़े-करे के परी। एही के मोदी जी आत्मनिर्भर भारत कहतारे।
ई सुन के हमरा मन में एगो सवाल खदबदात रहुवे कि जब देश के ई हाल बा। ऊपर से बाढ़, बेमारी माथा पर सवार बा त बिहार में वोट के एतना हड़बड़ी काहें बा। नीतीश बाबू कहतारे कि केहूं गतिया वोट टाइम पर हो जाव। ओने सुने में आवता कि रामजी के मंदिर बनावे में अरबों-खरबों रुपिया खरच होखे वाला बा। जब देस के लगे पइसे नइखे त ई कुल काम तनी टार देबे के चाहीं। एने लोग के जान जाता आ ई लोग के वोटे सूझत बा। जनता के सेवा खातिर एमएलए-एमपी चुनाला, पबलिक के परेशान करे खातिर ना नू। इहे देख के बड़की माई के कहाउत आज इयाद पर गइल हा मलिकार- चिरई के जान जाव, लड़िका खेलवना।
इहवां सब ठीक बा। बरखा-बूनी होता। बाढ़ से धान त बरबादे हो गइल बा। थोर-ढेर मकई भइल बा। एगो बात भुला गइनी हां बतावल मलिकार, संवरेजी के सतन सिंह के बड़का दमदा फंसरी लगा के मर गइल। अइसना कई गो कांड भइल बा। अगिला पाती में बाकी बात बतायेब। रउरा जोगा के रहेब।
रउरे, मलिकाइन