महात्मा गांधी की हत्या पर कपूर कमीशन की रिपोर्ट कहां गई!

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अग्रेजी हुकूमत खत्म हो गयी। भारत को अपने ढंगा से सजने-संवरने और अपने नियम-कानून से देश चलाने का अवसर मिल गया। लेकिन हम उसी लीक पर चलते रहे।
अग्रेजी हुकूमत खत्म हो गयी। भारत को अपने ढंगा से सजने-संवरने और अपने नियम-कानून से देश चलाने का अवसर मिल गया। लेकिन हम उसी लीक पर चलते रहे।
वरिष्ठ IPS अरविन्द पाण्डेय
वरिष्ठ IPS अरविन्द पाण्डेय

महात्मा गांधी की शहादत दिवस (30 जनवरी) पर वरिष्ठ IPS अरविन्द पाण्डेय ने हत्या के कारणों की जांच के लिए गठित कपूर कमीशन की चर्चा की है।गांधी जी की हत्या के 17 वर्षों बाद कपूर कमीशन गठित किया गया, जिसको जांच करना था कि गांधी जी की हत्या के पूर्व उन्हें पर्याप्त सुरक्षा न दिए जाने के लिए जिम्मेदार कौन था तथा इस हत्या का षड्यंत्र कैसे किया गया।

कपूर कमीशन की रिपोर्ट पर आज तक कोई कार्रवाई नहीं की गई, यह भी एक आश्चर्य का विषय है। 30 जनवरी 1948 को गांधी जी की हत्या हुई। उसके बाद उसका पुलिस-अनुसंधान कराया गया, जिसमें नाथूराम गोड्से सहित छह लोगों को हत्या और षड्यंत्र का आरोपी मानते हुए दो लोगों को मृत्युदंड दिया गया और 4 को आजीवन कारावास।

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इस हत्या के प्रकरण में यह महत्वपूर्ण है कि 30 जनवरी 1948 को हत्या किए जाने के 10 दिन पूर्व अर्थात 20 जनवरी 1948 को गांधी जी की हत्या का प्रयास मदनलाल पाहवा और 2 अन्य लोगों ने किया था। पाहवा की गिरफ्तारी भी 20 जनवरी को ही हो गई थी। पुलिस को उसने गांधी जी की हत्या के षड्यंत्र में सम्मिलित अनेक व्यक्तियों के नाम बताये थे, किंतु 20 जनवरी से 30 जनवरी के अंतराल में न तो गांधीजी की सुरक्षा मजबूत की गई और न ही उन सभी व्यक्तियों को गिरफ्तार करके गांधीजी की हत्या के षड्यंत्र करने वालों को सामने लाया गया, जिनके नाम मदनलाल पहवा ने हत्या के पहले ही पुलिस को बता दिये थे। सामान्य रूप से जब प्रशासनिक और अपराध संबंधी मामले को राजनीतिक मामला बनाकर सोचा जाने लगता है और जनता के सामने लाया जाता है, तब अपराध  के वास्तविक तथ्य छुप जाते हैं।

आश्चर्य का विषय है कि जब नाथूराम की गोली से घायल होकर गांधी जी गिर गए, तब उन्हें तुरंत अस्पताल नहीं पहुंचाया गया, बल्कि काफी देर तक बिरला हाउस में ही रखा गया।

कपूर कमीशन की रिपोर्ट पर आजतक वास्तविक कार्रवाई नहीं हो पाई- यह भी आश्चर्य का विषय है। कपूर कमीशन के सामने जयप्रकाश नारायण जैसे व्यक्तियों ने भी अपना बयान दर्ज कराया था और कमीशन के सामने अनेक ऐसे तथ्य थे, जिससे यह साबित होता था कि गांधीजी की पर्याप्त सुरक्षा नहीं की गई थी और इसी कारण उनकी सरलतापूर्वक हत्या कर दी गई।

वीर सावरकर और कुछ सामाजिक संगठनों को गांधी जी की हत्या से आज तक जोड़ने का साक्ष्य-विहीन विकृत प्रयास किया जाता है। वह इसीलिए, क्योंकि कपूर कमीशन की रिपोर्ट आज तक  आम लोगों के सामने नहीं आ पाई है। यह रिपोर्ट सामने आते ही यह स्पष्ट हो जाएगा कि गांधीजी की हत्या करने वालों को आसानी इसीलिए हुई, क्योंकि उस समय की महाराष्ट्र सरकार और भारत सरकार को सूचना मिलने के बावजूद न तो षड्यंत्रकारियों को  समय पर गिरफ्तार किया गया, न ही गांधी जी की पर्याप्त सुरक्षा सुनिश्चित की गई। जबकि हत्या के षड्यंत्र का पता उस समय के सारे महत्वपूर्ण लोगों को और पुलिस को हत्या के कुछ दिन पूर्व ही चल चुका था।

यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि गांधी जी की हत्या के समय भारत के गवर्नर जेनरल माउंट बेटन ही थे और पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपए दिलाने के सवाल पर जवाहर लाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल से गांधी जी के मतभेद सार्वजनिक हो चुके थे।

महत्वपूर्ण व्यक्तियों की हत्या के प्रयास या उनकी हत्या किए जाने के बाद सभी पक्षों पर जांच अवश्य की जानी चाहिए और भविष्य में इस तरह की घटनाएं घटित न हों, इसका भी उपाय किया जाना चाहिए। यह आशंका की जा सकती है कि आने वाले कुछ समय में गांधी जी की हत्या आसान बनाने वालों को और उन्हें पर्याप्त सुरक्षा न देने के लिए जिम्मेदार लोगों की पहचान किसी नए आयोग द्वारा की जाएगी और इतिहास में फैलाए जा रहे गांधी जी की हत्या से संबंधित मिथ्या प्रवाद को समाप्त किया जा सकेगा।

जिन लोगों ने गांधी जी की हत्या की थी, उन्हें न्यायालय द्वारा दंडित किया जा चुका है, किंतु जिन लोगों ने षड्यंत्र का पता रहते हुए भी कोई कार्यवाही नहीं की, उनके नाम तक का पता आज की पीढ़ी को नहीं है। जबकि गांधी जी की  हत्या के सभी तथ्यों को जानना प्रत्येक भारतीय का अधिकार है।

इतिहास-निर्माता अक्सर ऐतिहासिक गलतियाँ भी करते हैं। और मेरी दृष्टि में महात्मा गांधी की एक ही ऐतिहासिक गलती थी कि जब मदन लाल पहवा ने 20 जनवरी 1948 को बिरला हाउस पर गांधी को लक्ष्य कर बम चलाया था और उसके बाद प्रधानमंत्री श्री नेहरू और गृह मंत्री सरदार पटेल ने गांधी जी से निवेदन किया कि वे बिरला हाउस और उनकी सुरक्षा का उचित प्रबंध करने की अनुमति चाहते हैं, तब भी महात्मा जी ने उन दोनों के प्रस्ताव को अस्वीकृत कर दिया और कोई भी सुरक्षा प्रबंध करने से मना कर दिया। उसके पूर्व भी महात्मा जी अपनी किसी भी प्रकार की सुरक्षा किए जाने के विरुद्ध रहे थे।

परिणाम हुआ कि 30 जनवरी अर्थात बम चलने के सिर्फ 10 दिन बाद नाथूराम ने गांधी जी की ह्त्या कर दी। बाद में मदनलाल पहवा को भी महात्मा गांधी की ह्त्या के मामले में आजीवन कारावास का दंड मिला था। सुरक्षा एक तकनीकी विषय है और इसका प्रबंधन इसके विशेषज्ञों के ऊपर छोड़ दिया जाना चाहिए।

हमने कई ऐसे रत्न खोये हैं, जिन्होंने अपनी सुरक्षा में तकनीकी विशेषज्ञों की सलाह की उपेक्षा की या ऐसे विशेषज्ञों द्वारा लिए गए निर्णयों को क्रियान्वित नहीं होने दिया। इनमें इंदिरा गांधी  भी एक थीं, जिन्हें हत्यारे, सुरक्षा विशेषज्ञों की सलाह की उपेक्षा किये जाने के कारण ही मार सके थे। गांधी जी के असामयिक स्वर्ग-गमन से भारत में ग्राम-स्वराज्य का स्वप्न साकार नहीं हो पाया। यदि वे रहते तो अपने अनशन के शस्त्र का प्रयोग कर ऐसा करा ही लेते।

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