- राजेश श्रीवास्तव
मॉरीशस में हुए मेरे दोनों व्याख्यानों में मैंने रामकथा को गलत तरह से प्रचारित किये जाने का विरोध किया। संसार के बहुत से लोग रामायण से सामान्यतः रामचरित मानस का ही अर्थ निकालते हैं। ऐसा मॉरीशस के बारे में भी हो तो कोई आश्चर्य नहीं है। किन्तु मैं चौंक गया, जब जाना कि वहां के लोग रामचरित मानस (जिसे वे रामायण ही कहते हैं) को भोजपुरी में लिखा हुआ बताते हैं।
मॉरीशस के विद्यार्थियों को सिखाया जाता है कि भोजपुरी एक संस्कृति है, जिसमें रामायण लिखी गयी और यह भी कि भोजपुरी हिंदी की माता है। भोजपुरी की कोख से ही हिंदी का जन्म हुआ है।
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भारत में मॉरीशस के उच्चायुक्त श्री जगदीश्वर गोवर्धन ने जब अपने व्याख्यान में यह कहा कि रामायण भोजपुरी में लिखी गयी है तो मुझसे रहा नहीं गया और प्रोटोकाल तोड़कर मैंने विरोध किया। इस पर वे यह कहते दिखे कि हाँ अवधी में लिखी है, किन्तु रामायण की संस्कृति भोजपुरी है।
मेरी असहमति ने तनिक बहस का रूप भी लिया। प्रवासी साहित्य के सम्पादक हमारे मित्र राकेश पांडेय ने भी इस बात पर कड़ी आपत्ति व्यक्त की, किन्तु इससे कोई हल नहीं निकला। भोजपुरी प्रेम में मॉरीशस के लोग भारतीय संस्कृति को मनचाहे ढंग से व्याख्यायित करें यह ठीक नहीं। डॉ. अलका धनपत, राज हीरामन, रामदेव धुरंधर, अंजलि चिंतामणि, गुलशन सुखलाल, विनय गुदारी, डॉ विनोद बाला अरुण, श्री राजेंद्र अरुण, श्री यन्तुदेव बुधु आदि मित्रों से मेरा आग्रह है कि इस प्रकार के विरोधाभास को प्रचलन से रोकें। अवधी और भोजपुरी हिंदी की बोलिया हैं। दोनों का ही अपना सांस्कृतिक आधार है। इसे एक नहीं कहा जा सकता।
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और भी बहुत सी बातें हैं, जिसे मैं लिखित रूप में मॉरीशस में भारत के उच्चायुक्त श्री अभय ठाकुर जी और माननीया सुषमा स्वराज, विदेश मंत्री, भारत को प्रेषित कर रहा हूँ। (एफबी वाल से)