- जरूरी संसाधन तक नहीं दिए रिपोर्टर-कैमरामैन को
- ट्रांसफर कर नौकरी छोड़ने का बना रहे हैं ये दबाव
मीडिया हाउस प्रधानमंत्री की अपील के बाद भी संवेदना नहीं दिखा रहे। तकरीबन सभी मीडिया हाउस (अपवाद छोड़ कर) संवेदना नहीं दिखा रहे। छंटनी की योजना पर काम चल रहा है। मुंबई में बड़ी संख्या में पत्रकारों के कोरोना पॉजिटिव पाए जाने के बाद पूरे पत्रकारिता जगत में डर का माहौल है। पत्रकारों ने इससे पहले भी जटिल समय में रिपोर्टिंग की है। जैसे संसद पर हमले के समय की रिपोर्टिंग या कारगिल हमले जैसे समय में रिपोर्टिंग या आतंकी हमले के समय रिपोर्टिंग। इस बार की रिपोर्टिंग अलग है। ज्यादातर मीडिया हाउस ने अपने रिपोर्टरों से कह रखा है कि ऑफिस आने की कोई जरूरत नहीं है और जहां हैं वहीं से मोबाइल द्वारा ही रिपोर्ट भेज दें। ऐसा कहकर संपादकों ने अपना पल्ला एक तरह से झाड़ लिया है। इसको पल्ला झाड़ना इसलिए कहा जाएगा कि न तो सेनेटाइजर की कोई व्यवस्था इन्होंने रिपोर्टरों के लिए की और न ही बेहतर मास्क की। नतीजा रिपोर्टर या तो अपनी जेब से इसका इंतजाम कर रहे हैं या ठीक से नहीं कर रहे हैं।
सब्जी वाले से कम खतरनाक नहीं हैं रिपोर्टर
कई स्थानों पर यह दिखा कि सब्जी वालों से कोरोना फैला। पत्रकार कई वैसे आयोजनों में करवेज करने जा रहे हैं जहां जरूररमंदों को भोजन आदि दिए जा रहे हैं। कुछ मीडिया हाउस तो अपने रिपोर्टरों से अस्पतालों की लाइव रिपोर्टिग करा रहे हैं। अस्पतालों में जाकर लाइव रिपोर्टिंग करना खतरनाक है। कारण यह कि ज्यादातर डॉक्टरों की तरह रिपोर्टर सतर्क नहीं रहते और बचाव का ठीक इंतजाम इनके पास नहीं है। जिन्हें हेल्थ रिपोर्टिंग का अनुभव नहीं है वैसे किसी भी बीट के रिपोर्टर को अस्पतालों की लाइव रिपोर्टिंग में लगा दिया जा रहा है। इससे कम्युनिटी में कोरोना के फैलने का खतरा उत्पन्न हो गया है।
सच यह है कि रिपोर्टर अगर संक्रमित हो जाएं तो ऑफिस में संपादक या डेस्क के कर्मी इसकी चपेट में न आ जाएं इसलिए रिपोर्टरों को मना कर दिया गया है कि वे जहां हैं वहीं से खबर भेजें। रिपोर्टरों से किया जा रहा यह व्यवहार उनके पूरे परिवार के साथ खिलवाड़ है। खुद बचे रहें और रिपोर्टर जान जोखिम में डालते रहें।
रिपोर्टरों के साथ दिक्कत यह है कि वे जिस तरह आवाज बुलंद कर मजेठिया की सिफारिश लागू करने की मांग नहीं कर सकते, उसी तरह रिपोर्टिंग के लिए तमाम तरह की सहूलियतों की मांग नहीं कर सकते। उनको मालूम है कि उनका मैनेजमेंट नाराज हो जाएगा। सारे रिपोर्टर चुपचाप किसी तरह काम कर रहे हैं। इस विपदा के समय में भी मीडिया कर्मियों को घर तक छोड़ने की व्यवस्था नहीं है। सभी पत्रकारों का हेल्थ इंश्योरेंस भी नहीं है। ज्यादा सवाल उठाएंगे तो कोरोना संकट को आर्थिक संकट बताकर इनको हटा दिया जाएगा । रिजाइन नहीं करेंगे तो सुदूर इलाके में ट्रांसफर कर दिया जाएगा। यानी कुल मिलाकर मुंह पर जाब लगाकार नौकरी बचाने में लगे हैं पत्रकार। कुछ मीडिया हाउस ने तो साफ-साफ एलान कर दिया है कि उनके कर्मियों की सैलरी आने वाले तीन-चार महीनों तक 10-15 परसेंट कम करके दी जाएगी। कइयों को नौकरी से हटाने की बात भी की जा रही है। महंगाई बढ़ रही है और ऐसे समय में सालाना इंक्रीमेंट मार्च के बाद होना था लेकिन ज्यादातर मीडिया हाउस इंक्रीमेंट क्या देंगे उल्टे नौकरी पर तलवार लटका रहे हैं।
देश के दर्जन भर अखबार ऐसे हैं जहां या को कम सैलरी दी जा रही है या कर्मियों को किसी तरह से कम करन का मन बना रहे हैं। बहुत संभव है कि कुछ मीडिय हाउस अपनी दुकान बंद कर दें और फिर दूसरे नाम से खोल लें। ऐसा करके वे एक तीर से कई शिकार करने का इरादा बना रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने साफ-साफ कहा कि संवेदना दिखाएं, किसी को नौकरी से नहीं हटाएं। लेकिन एक मीडिया हाउस तो इस कोरोना काल में भी ट्रांसफर के तहत राज्य से बाहर हजारों किमी. दूर जाने का दबाव बना रह हैं। यह हटाने की प्रक्रिया नहीं है तो और क्या है। कल के दिन कहेंगे आपने कंपनी के ट्रांसफर नियम का पालन नहीं किया इसलिए टर्मिनेट किया जा रहा है।
पत्रकारों के सामने बहुत विकट स्थिति है। वे कोरोना से ज्यादा अपने मीडिया हाउस की संवेदनहीनता से मारे जाने के लिए अभिशप्त हो रहे हैं जहां वे पिछले कई माह से काम कर रहे हैं। देवास से खबर आ रही है कि वहां कई पत्रकारों को क्वरंटाइन किया गया है। एक अखबार के पत्रकार सहित हॉकर व अऩ्य सहयोगियों को क्वारंटाइन करना पड़ा है।
यह भी पढ़ेंः नरेंद्र मोदी का सही कदम, सांसद फंड से राजनीति में शुचिता असंभव
मीडिया कर्मियों के साथ दिक्कत है कि यह समाज का ऐसा तबका है जो दुनिया का दर्द आप तक पहुंचाता है पर अपना दर्द नहीं लिख पाता या नहीं दिखा पाता। कई मीडिया हाउस में रिपोर्टिंग के लिए अपनी बाइक खरीदनी होती है और हर दिन सौ-दो सौ का पेट्रोल वेतन के पैसे से भराना पड़ता है। बाइक खराब हुई, पंचर हुई तो अपने खर्चे से उस दुरुस्त कराना पड़ता है। पत्थर चले या गोली चले पहला खतरा इन्हीं रिपोर्टर या कैमरामैन पर मंडराता है।
यह भी पढ़ेंः जयप्रकाश नारायण ने जब रेणु से साहित्यिक सहयोग मांगा
मीडिया हाउस के लिए ये इंतजाम बेहद जरूरी हैं
रिपोर्टरों और कैमरामैन के लिए मीडिया हाउस को खास इंतजाम करने की जरूरत है।
- उन्हें अच्छे मास्क पूरे परिवार के लिए उपलब्ध कराए जाएं।
- उन्हें पर्याप्त मात्रा में सेनेटाइजर उपलब्ध कराए जाएं। इतना कि उनके घर के लोग भी इस्तेमाल कर सकें।
- नहाने का साबुन और कपड़े धोने का सर्फ दिया जाए। ऐसा इसलिए कि वे रात में दो बजे भी घर लौट रहे हैं तो पहने हुए सारे कपड़े धोते हैं और नहाते हैं फिर खाना खाते हैं। उनके सामने चुनौती घर के बच्चों, बुजुर्गों सभी को बचाकर रखने की भी होती है।
- करोना काल में किसी भी रिपोर्टर का ट्रांसफर नहीं किया जाए। अगर किया गया है तो उसे यथास्थिति में रखा जाए। इस समय में हटाने या ट्रांसफर कर हटाने का कार्य अखबार का अमानवीय चेहरा होगा। इसलिए इस पर तत्काल रोक लगाई जानी चाहिए। प्रधानमंत्री सेल को इस पर कड़ी निगरानी रखनी चाहिए। मीडिया हाउस ही जब उनकी अपील नहीं सुनेंगे तो अराजकता फैल जाएगी।
- रिपोर्टर व कैमरामैन को चाहिए कि वे कोरोना से जुड़े सामान्य नियम का पालन करें। जैसे कि किसी से हरगिज हाथ न मिलाएं, एक मीटर की दूरी बनाए रखें, मास्क लगा कर रिपोर्टिंग करें और हर घंटे हाथ साबुन से धोया करें। ग्लबस का प्रयोग करें। रिपोर्टिंग से घर लौटें तो कपड़े गर्म पानी से धोएं। साबुन लगाकर जरूर नहाएं।
- मीडिया हाउस को हॉकरों पर भी खास ध्यान देना चाहिए। यह ठीक है कि आप उनकी फोटो छापकर उनका मनोबल बढ़ाते हैं कि इस समय में भी वे जाबांजी का परिचय दे रह हैं। इस तरह से छापने से ज्यादा जरूरी है कि आप इस पर नजर रखें तो वे नियमों का पालन करें। जहां-तहां साइकिल खड़ी न करें, मास्क लगाएं, सेनेटाइजर का इस्तेमाल करें। अखबार की ओर से प्रचारित किया जा रहा है कि उसस कोरोना नहीं फैलता। जब सब्जी वाले से फैल सकता है तो हॉकर से क्यों नहीं फैल सकता। हॉकर से अखबार में इंफेक्शन फैलेग और अखबार जहां-जहां जाएगा वहां वहां वायरस उत्पात मचाएगा।
- इसलिए मीडिया हाउस से जुड़े हर व्यक्ति के स्वास्थ की नियमित जांच जरूरी है। सरकारी स्तर पर इनकी हर दिन नियमित जांच की व्यवस्था होनी चाहिए।
- देर रात तक काम करने वाले मीडियाकर्मियों को घर तक छोड़ने की व्यवस्था संस्थानों को करानी चाहिए।
राज्यों के मुख्यमंत्रियों को ठोस पहल करनी चाहिए
इन सबों के बीच छत्तीसगढ़ सरकार ने राज्य में पत्रकारों के रिटायरमेंट की उम्र 62 साल तय की हैा वहां श्रम विभाग ने यह आदेश पारित किया है। इसक पालन करने का निर्देश सभी संस्थानों को दिया गया है। वहां श्रम विभाग केसचिव सोनमणि बोरा ने मीडिया हाउस को भेजे गए निर्देश में कहा है कि आपके संस्थानों में छत्तीसगढ़ औद्योगिक नियोजन स्थायी आदेश अधिनियम 1961 के प्रावधान प्रभावशील हैं। इसी तरह के आदेश बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली जैसी सरकारें भी जारी कर सकती हैं। नीतीश कुमार, योगी आदित्यनाथ, शिवराज सिंह चौहान, हेमंत सोरोन, अरविंद केजरीवाल को प्रधानमंत्री की संवेदना को कागज पर उतारना चाहिए।
- प्रणय
यह भी पढ़ेंः सोनिया गांधी विज्ञापन बंद करने की बात कह फंस गयीं