- डा. राजेंद्र
एससी, एसटी बिल को लेकर आजकल देश में बहुत चर्चा हो रही है। सर्वोच्च न्यायालय की व्यवस्था को पलटते हुए मोदी सरकार ने उस कानून को मूल रूप में संसद से पास करने की तैयारी कर ली है। देश के सवर्णों, ख़ासकर ब्राह्मणों में बड़ा आक्रोश है और वे इधर-उधर कसम खाते फिर रहे हैं कि अबकी बार मोदी को उखाड़ फेंकेंगे और सपा-बसपा-कांग्रेस की सरकार बनाएँगे। उन्हें विश्वास है कि सपा-बसपा और कांग्रेस की सरकार इस कानून को बदल देगी और आरक्षण की व्यवस्था समाप्त हो जाएगी!
इन लोगों की बुद्धि पर तरस आता है। आजकल की भारतीय राजनीति अपने सबसे अधिक निर्णायक मोड़ से गुज़र रही है। आप लोग याद कीजिए (यद्यपि आपको भूलने की बीमारी लगी हुई है!) कि बिहार चुनाव से ठीक पहले संघ प्रमुख ने आरक्षण की व्यवस्था पर पुनर्विचार करने की बात कर दी थी और लालू आदि ने उसी बात को चुनाव का प्रमुख मुद्दा बना दिया और जनता को यह विश्वास दिला दिया कि बीजेपी आरक्षण विरोधी पार्टी है। नतीज़ा यह हुआ कि बिहार में भाजपा की पराजय हुई और लालू के संरक्षण में नीतीश की सरकार बनी। यह लोकतंत्र की पराजय थी।
आज स्थितियाँ पहले से भी अधिक विकट हैं। भारत की राजनीति दो ध्रुवों में विभाजित हो चुकी है। एक ओर मोदी हैं और दूसरी ओर सभी मोदी विरोधी! भारत के सारे विपक्षी दल किसी भी प्रकार से सत्ता तक पहुँचना चाहते हैं। पीएम पद के कई दावेदार हो गए हैं। ममता, मायावती, मुलायम, शरद पवार, राहुल गाँधी आदि कई लोग पीएम बनने के फेर में हैं। असली लड़ाई मायावती और मोदी में होने वाली है और दलितों के आरक्षण के मुद्दे को ही मायावती 2019 में भजाना चाहती थीं, जिसकी हवा मोदी ने निकाल दी है।
एससी-एसटी ऐक्ट को यद्यपि सुप्रीम कोर्ट ने संशोधित किया था, किंतु उसका ठीकरा भाजपा के सिर पर फोड़ने की पूरी तैयारी कर ली गई थी। भाजपा ने उस तैयारी की पूरी हवा निकाल दी है। कांशीराम को भारत रत्न देकर दलित आंदोलन की रही सही हवा भी निकालने की पूरी तैयारी की जा चुकी है। विपक्ष के पास अब कोई मुद्दा ही नहीं है, जिसके आधार पर भाजपा को 2019 में घेरा जा सके। एक अंतिम बेहयाई ईवीएम को लेकर की जाने वाली है। 17 पार्टियों ने चुनाव आयोग से मिलने का समय माँगा है, ताकि वे ईवीएम के स्थान पर बैलेट से चुनाव कराने की अपनी माँग आयोग से कर सकें।
यद्यपि यह संभव तो नहीं है क्योंकि इसके लिए कानून में संशोधन करना होगा और विपक्ष के पास इतनी संख्या नहीं है, किंतु 2019 की संभावित हार के लिए ईवीएम पर ठीकरा फोड़ने की तैयारी की जा चुकी है। 2019 में भारतीय चुनाव राष्ट्रवादी और राष्ट्रविरोधी शक्तियों के बीच होगा। भारत की जनता को अपनी ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी निभानी होगी। ऐसे अवसरों पर देश को सही दिशा दिखाने का काम ब्राह्मण समाज करता रहा है किंतु इस बार वह विवेक च्युत होकर राष्ट्रविरोधी शक्तियों को शाक्तिशाली बना रहा है।
अब जातियों में विभाजित होकर और भ्रमित होकर यदि हम निर्णय करेंगे तो भारत का नष्ट होना कोई नहीं रोक सकेगा। राष्ट्रविरोधी शक्तियाँ देश को खंड-खंड कर देंगी। असम में घुसपैठियों की पहचान के विरुद्ध जिस प्रकार के तेवर दिखाई देने लगे हैं, वे हैरान करने वाले हैं। गृहयुद्ध की धमकी दी जा रही है! देश की जनता से मैं यह कहना चाहूँगा की राष्ट्र हित की अनदेखी घातक होगी। यह समय स्वार्थ से ऊपर उठने का है।एक होने का है।राष्ट्ररक्षा का है! मोदी को भी अंततः वोट पाना है। यदि विपक्षी आरक्षण के मुद्दे पर ही मोदी को नाकाम करेंगे तो उनकी चाल कामयाब हो जाएगी। अतः इस समय मोदी के फैसलों को स्वीकार करने में ही सबका हित है। मोदीजी की राष्ट्र निष्ठा असंदिग्ध है। उनका चरित्र धवल है। वे देश की अस्मिता से कोई भी समझौता नहीं करेंगे। जनता, ख़ासकर सवर्ण तबका भ्रमित न हो।काँटे को कभी-कभी काँटे से ही निकालना पड़ता है।
जब बुआ और भतीजा सबकुछ भूलकर सत्ता के लिए एकसाथ हो सकते हैं तो हमलोग आपस में क्यों लड़ रहे हैं!? क्या मोदीजी के अतिरिक्त किसी और में आज देश को चलाने की योग्यता बची हुई है। सोचिए, आपका निर्णय भारत के भविष्य को निर्धारित करेगा।
यह भी पढ़ेंः भीष्म नारायण सिंह का जाना भोजपुरी भाषियों का बड़ा नुकसान