- नवीन शर्मा
लेखक निर्देशक अनुभव सिन्हा की फिल्म मुल्क बहुत ही तीखे व कड़वे सवालों को उठाने और इनका सामना करने का साहस दिखाती है। इसके साथ ही इन सवालों के पुख्ता जवाब भी देती है। इसका मूल मुद्दा हमारे देश में मुस्लमानों की स्थिति और उनके बारे में बनी धारणाओं परशेप्शन के बारे में है। अनुभव सिन्हा मुस्लमानों के बारे में बनी हर आम धारणाओं के बारे में बेबाकी से बात करते हैं। खासकर इस्लाम के नाम पर आतंकवाद ही इसका कोर ईश्यू है।
यह कहानी बनारस के एक खुशहाल मुसलमान परिवार की है। इस परिवार का मुखिया वकील मुराद अली मोहम्मद(ऋषि कपूर) हिंदू पड़ोसियों के साथ मिलजुल कर रहता है। कहानी में टर्निंग पॉइंट तब आता है, जब अली मोहम्मद का भतीजा शाहिद( प्रतीक बब्बर) इस्लाम के नाम पर आतंक फैलानेवाले आतंकी महफूज आलम व उसके साथियों के बहकावे मे आ जाता है। वह एक बस को बम से उड़ाता है जिसमें निर्दोष लोग मारे जाता़े हैं। इस घटना के बाद पूरे परिवार को आतंकवादी मान लिया जाता है। इससे परिवार की जिंदगी रातों-रात बदल जाती है। शाहिद के पिता बिलाल (मनोज पाहवा) को भी साजिशकर्ता मानकर गिरफ्तार किया जाता है। सम्मानित वकील मुराद अली मोहम्मद को भी आरोपी बनाया जाता है।
इसके बाद जब मामला कोर्ट में जाता है तो पूरे परिवार को ही आतंकवादी साबित करने के लिए सरकारी वकील संतोष आनंद (आशुतोष राणा) आम धारणाओं पर आधारित तरह-तरह की दलीलें देते हैं।आशुतोष इस भूमिका में जान डाल देते हैं। पुलिस अफसर दानिश जावेद (रजत कपूर) ने ही जानबूझकर शाहिद को जिंदा पकड़ने के बजाय एनकाउंटर किया था। इसके बाद मुराद अली मोहम्मद खुद व अपने परिवार को निर्दोष साबित करने और अपने खोए हुए सम्मान को दोबारा पाने की जद्दोजहद करते हैं। वे खुद ये केस लड़ना शुरू करते हैं पर जब उनको भी अभियुक्त बना दिया जाता है तो वे ये जिम्मेदारी अपनी वकील बहु आरती मोहम्मद को सौंपते हैं। आरती इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाते हुए। इस परिवार को बाइज्जत बरी कराती है।
वकील बनी तापसी जब आतंकवाद के शक में आरोपी बनाए गए मुसलमान चरित्र मुराद अली से पूछती है, ‘एक आम देशप्रेमी कैसे फर्क साबित करेगा दाढ़ी वाले मुराद अली मोहम्मद में और उस दाढ़ीवाले टेरेरिस्ट में? कि आप एक अच्छे मुसलमान हैं, आतंकवादी नहीं? आप देश के प्रति अपने प्रेम को कैसे साबित करेंगे?’ तो मुराद ही नहीं बल्कि दर्शक भी सोचने को मजबूर हो जानते हैं।ड अनुभव फिल्म में हम (हिंदू) और वो (मुसलमान) के बीच के विभाजन की रेखाओं की ओर ध्यान आकर्षित करके आज के धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य पर करारा प्रहार करते हैं। वे मुस्लमानों के बारे में बनी हर तरह की धारणाओं व समस्याओं जैसे ज्यादा शादियों, ज्यादा बच्चों व कम एडुकेशन की बात उठाते हैं। इस्लाम के नाम पर आतंकवाद को गलत ठहरा कर उसके बुरे नतीजे मुठभेड़ में मारे जाने को दिखाते हैं।
अनुभव सिन्हा ने बहुत बढ़िया कहानी रची है। उनकी तारीफ इसलिए भी होनी चाहिए कि उनके पास ऐसा गंभीर फिल्में बनाने का कोई तजुर्बा नहीं था। उन्होंने सिर्फ प्यार मोहब्बत वाली सामान्य फिल्में बनाई थीं। वे आरती मोहम्मद के जरिए एक सवाल उठाते हैं जब आरती का मुस्लमान पति उनके बच्चे के जन्म से पहले ही उसका धर्म तय करना चाहता है। इसी बात पर दोनों अलगाव तक पहुंच जाते हैं। इसके बाद भी आरती इस परिवार की बहु होने के नाते सभी का सम्मान बचाने के लिए कोर्ट में लड़ती है। तापसी पन्नू आशुतोष राणा जैसे मझे हुए अभिनेता को कड़ी टक्कर देतीं हैं।
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इस फिल्म की सबसे बड़ी उपलब्धि ऋषि कपूर की जबर्दस्त अदाकारी है वे अपनी अभिनय यात्रा का सबसे नायाब नमूना पेश करते हैं। फिल्म में किरदारों का तानाबाना बहुत मेहनत से बुना गया है। आरती हिंदू परिवार से है और उसने मर्जी से मुस्लमान से शादी की थी पर उसके लिए मानवता मित्र के लिए प्रेम ज्यादा मायने रखता है। sspको भी जानबूझकर मुस्लिम किरदार बनाया गया है।
कलाकारों का चयन एकदम परफेक्ट है.। जबरन गाने नहीं ठूसे गए सिर्फ दो ही गाने हैं। नाना गुप्ता को एक लंबे अर्से के बाद देख ना अच्छा लगा। संवाद सटीक और पावरफूल हैं। कुल मिला कर ये बेहतरीन फिल्म है। ये फिल्म हंसल मेहता के शाहिद के टक्कर की है।
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