मुसलिम वोट बंगाल में बिगाड़ सकते हैं ममता बनर्जी का खेल

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बंगाल विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद दो दिनों से हिंसा का दौर आज भी जारी रहा। इस हिंसा में अब तक भाजपा समर्थक 6 लोगों की जान जा चुकी है।
बंगाल विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद दो दिनों से हिंसा का दौर आज भी जारी रहा। इस हिंसा में अब तक भाजपा समर्थक 6 लोगों की जान जा चुकी है।
  • डी. कृष्ण राव

कोलकाता। मुसलिम वोट बंगाल में ममता बनर्जी से छिटकते नजर आ रहे हैं। यह उनकी बात में भी झलकता है। ऐसा होता है तो तृणमूल के लिए खतरनाक स्थिति होगी। अब्बास सिद्दीकी की पार्टी इंडियन सेकुलर फ्रंट व ओवैसी की एआईएमआईएम ने ममता बनर्जी की रात की नींद हराम कर दी है। ममता बनर्जी यह भलीभांति समझ रही हैं कि उनके  चुनाव जीतने का आधार मुसलमान वोट में इन दोनों पार्टियों ने सेंध लगा दी तो उसका सीधा सीधा लाभ भाजपा को मिल जाएगा।

यही कारण है कि पिछले 2 दिनों से राज्य में मुसलमान बहुल तीन जिलों- मालदा, मुर्शिदाबाद व दिनाजपुर की सभाओं में ममता चिल्ला-चिल्ला कर लोगों को समझाने की कोशिश कर रही हैं कि एक भी वोट अगर दूसरी पार्टी के खाते में गया तो भाजपा को लाभ होगा। उन्होंने लोगों से अपील की कि भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए तृणमूल को ही वोट देना होगा।

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कल बहरमपुर की सभा से ममता ने कही कि इस बार सरकार गठन के लिए मालदा और मुर्शिदाबाद से सभी सीटों पर तृणमूल के उम्मीदवारों का जीतना जरूरी है। ममता को एक खूब पता है कि उत्तर बंगाल में मुसलिम वोटरों का झुकाव कांग्रेस और सीपीएम की ओर भी है। इसीलिए भाजपा डर दिखाते हुए माकपा और कांग्रेस को उन्होंने भाजपा का एजेंट बता दिया। आज रायगंज की सभा में भी मुसलमान वोट न बंटने देने की उन्होंने अपील की।

एक बार अगर आंकड़ें की तरफ देखा जाए तो पता चलेगा कि उत्तर बंगाल के इन तीनों जिलों में मुसलिम आबादी 60% से ज्यादा है और ज्यादातर विधानसभा में मुसलमान मतदाताओं की संख्या 70 से 96 प्रतिशत है। इसके अलावा इन तीनों जिलों में उर्दू घाटी मुसलिम अर्थात एआईएमआईएम का बोलबाला दिख रहा है, जबकि दक्षिण बंगाल में अब्बास सिद्दीकी का बोलबाला है। 2019 के लोकसभा चुनाव में मुर्शिदाबाद की 22 विधानसभा सीटों में  से 16 विधानसभा सीटों पर तृणमूल कांग्रेस को भाजपा से बढ़त मिली थी। सिर्फ एक क्षेत्र में भाजपा आगे चल रही थी। दिनाजपुर की 9 सीटों में से तृणमूल कांग्रेस पांच पर, मालदा की 12 सीटों में से 2 सीटों पर आगे थी, जबकि दिनाजपुर में भाजपा 4 और मालदा में 6 सीटों पर आगे थी।

इन दोनों जिलों में लगभग सभी सीटों पर भाजपा के साथ तृणमूल की कांटे की टक्कर रही। 2019 में लोकसभा चुनाव में एआईएमआईएम व अब्बास सिद्दीकी की पार्टी चुनाव मैदान में हाजिर नहीं थे। एक बात और है, उस समय इन तीनों जिलों की देखरेख में शुभेंदु अधिकारी थे, जिनके यहां पहुंचते ही अधीर चौधरी के गढ़ में सेंध लग रही थी। इन 43 सीटों पर अगर चौतरफा लड़ाई होती है तो भाजपा बाजी मारने की स्थिति में होगी। यही बात ममता को भीतर ही भीतर सता रही है।

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ममता को यह भी पता है कि यहां का हिंदू वोट पूरी तरह एकतरफा हो चुका है। उस हिंदू वोट में सेंध लगाने के लिए कल की सभा में  मंत्रोच्चार कर खुद को सबसे बड़ा हिंदू साबित करने की ममता ने कोशिश की। यह भी कहने की कोशिश की कि भाजपा के लोग कभी काली दुर्गा और सरस्वती की पूजा नहीं की है, जबकि हम लोग युग-युग से करते आए हैं। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि उत्तर बंगाल  में मुसलमानों का जितना वोट तृणमूल से कटेगा, उसे पूरा करने के लिए हिंदू वोट में सेंध लगाने की वह कोशिश कर रही हैं।

जानते हैं, बंगाल में कहां कितने मुसलिम वोटः उत्तर दिनाजपुर- 49.9, दक्षिण दिनाजपुर- 2.6, मुर्शिदाबाद- 66.3, नदिया- 26.8, उत्तर 24 परगना- 25.8, दक्षिण 24 परगना- 35.6, हावड़ा- 26.2, हुगली- 15.8, बर्दवान- 20.7, बीरभूम- 35.1, पूर्व मेदिनीपुर- 16.6 प्रतिशत (सभी आंकड़े प्रतिशत में)।

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