- भारत यायावर
“मैं कवि हूँ, पाया है प्रकाश” नामक पंक्ति प्रसिद्ध कविता ‘सरोज-स्मृति’ में है। यह सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का आत्म कथन है। स्वयं की उद्घोषणा है। यह कहना कि मैं कवि हूं, अपने अस्तित्व की पहचान को उजागर करना है।
कवि कौन है? ब्रह्म की रचनात्मक चेतना! या सविता का विवान स्वरूप, जो स्वयं प्रज्ज्वलित होकर पूरी सृष्टि में जीवन का संचार करता है। कवि सर्जक है। लेकिन बगैर प्रकाश पाए वह क्या सृजन कर सकता है? सबसे पहले उसे अपने मन को प्रकाशित करना है। बाहरी रोशनी से वातावरण जगमगा सकता है, लेकिन मन की रोशनी तो ज्ञानदीप्त होकर ही पाई जा सकती है।
मनुष्य का कवि होना उसकी बहुत बड़ी उपलब्धि है। वह कवि होकर ही इस संसार के समानांतर एक प्रति संसार को उपस्थित करता है, जो जीवन के प्रति जागरूक और सक्रिय और संवेदनशील मनोभूमि का निर्माण करता है। संस्कृति के निर्माण में भी कवि की केन्द्रीय भूमिका होती है।
कवि का प्रकाश पाना मुश्किल है। जो ज्ञान की बंधी हुई सरणियों में विचरण करते हैं, वे सुनिर्मित रास्तों पर चलने के अभ्यस्त होने के कारण कुछ नया अर्थ और मर्म नहीं खोज पाते। अन्वेषण की प्रवृत्ति के अभाव के कारण प्रभावशाली रचना और मौलिक संकल्पनाओं का अभाव उनकी अभिव्यक्ति को एकरस बनाता है।
मुक्तिबोध की कविता “अंधेरे में” अभिव्यक्ति की खोज में भटकने वाले काव्य यात्री के भयानक तनाव और खतरनाक परिस्थितियों से जूझने की कसमसाहट को लेकर चलने वाली कवि की प्रकाशगामी चेतना को प्रकट करती है।
निराला ने “वह तोड़ती पत्थर” कविता में लिखा है- देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर! भीषण गर्मी में एक अकेली औरत को पत्थर तोड़ती हुई पहली बार निराला ने ही क्यों देखा? निराला भी अकेले हैं। दूसरा कोई कवि नहीं! यह निराला की अपनी खोज है। भीतर से प्रकाशमान कवि की यह दुर्लभ दृष्टि है। वह नए जीवन सत्य और तथ्य को प्राप्त करने के लिए निरंतर भटकते रहता है। न जाने कहां मिल जाए वह अभिव्यक्ति का परम रूप!
जो रचनाकार किसी पार्टी और झंडे को पकड़ कर नारे लगाते रहते हैं, उनको तो बैठे-बिठाए लिखने का मसाला मिल जाता है। इसीलिए अन्वेषण की प्रक्रिया उनमें नहीं होती। कोल्हू के बैल की तरह आंखों पर पट्टी बांध कर वे एक ही जगह गोलाकार घूमते रहते हैं। वे दृष्टि के बन्दी होते हैं। कवि वह है, जिसने अपने ज्ञान का प्रकाश पाया है। जिसकी अपनी दृष्टि है। जो अभिव्यक्ति के अपने नित नवीन माध्यमों का निर्माण करता है। विश्व मानवता के कल्याण के लिए जिसका हृदय उद्वेलित रहता है। वह स्वयंभू होकर भी सदाशयी होता है।
लेखक से संपर्कः यशवंत नगर, हजारीबाग- 825301, झारखंड, मोबाइल : 6207264847