- सुरेंद्र किशोर
मोरारजी देसाई सीएम से पीएम तक रहे, पर अपने लिए कोई मकान तक नहीं बनवाया। अंतिम दिनों में वे किराए के मकान में थे। कोई संपत्ति खड़ी नहीं की। जबकि वे 1952 में ही बंबई प्रांत के मुख्यमंत्री बन गए थे। बाद में वे केंद्र में मंत्री, उप प्रधानमंत्री और अंततः प्रधानमंत्री बने। 29 फरवरी को 1896 में जन्मे मोरारजी देसाई का 10 अप्रैल 1995 को निधन हो गया था।
मोरारजी देसाई में खूबियां अधिक थीं
जिस नेता में खूबियां अधिक और कमियां कम हों, उन्हें समय-समय पर याद करना ही चाहिए। मोरारजी देसाई वैसे नेताओं में प्रमुख थे। मोरारजी देसाई अपने कठोर संयम के कारण करीब सौ साल जिए। आज मैं असमय बीमार होते कुछ करीबी लोगों से यदाकदा पूछता हूं। आप खानपान में संयम क्यों नहीं बरतते? वे तुरंत जवाब दे देते हैं- ‘‘क्या करें, मेरा जाब ही ऐसा है कि संयम नहीं निभ पाता।’’ दरअसल यह चटपटा खाने-पीने का बहाना है! क्या कोई जाब प्रधानमंत्री के जाब से भी अधिक व्यस्तता वाला हो सकता है? मैं नहीं मानता-जानता !
देसाई का आत्मानुशासन बेजोड़ था
यदि मोरारजी देसाई राजनीति की भाग-दौड़ वाली जिंदगी में भी करीब सौ साल का जीवन प्राप्त कर सके थे तो यह उनके आत्मानुशासन का ही परिणाम था। प्रधानमंत्री रहे मोरारजी भाई जैसा अब कोई नहीं। आप उनकी राजनीतिक, आर्थिक या किन्हीं अन्य नीतियों से असहमत हो सकते हैं। पर, आप उनके निजी जीवन के कठोर अनुशासन से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते।
दंगे को ले अंग्रेज कलक्टर से मतभेद
देसाई अपने जीवन के प्रारंभिक काल में डिप्टी कलक्टर थे। गुजरात के गोधरा में तैनात थे। तब अंग्रेज कलक्टर ने उन पर दबाव डाला कि वे दंगाइयों को निर्दोष बताते हुए रपट दें। मोरारजी ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। उस पर अंग्रेज शासक से उनका मतभेद शुरू हो गया। अंततः गांधी जी (माहात्मा गांधी) के आहवान पर देसाई ने 1930 में नौकरी छोड़ दी। स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े।
मोरारजी की अपनी लक्ष्मण रेखाएं थीं
राजनीतिक जीवन में भी मोरारजी भाई की अपनी तय की हुई लक्ष्मण रेखाएं थीं। उनसे वे आमतौर पर कभी नहीं डिगते थे। यह सब राजनीति में अब दुर्लभ है। मोरारजी देसाई ने अपने लिए कोई मकान तक नहीं बनवाया। अंतिम दिनों में वे किराए के मकान में थे। कोई संपत्ति खड़ी नहीं की, जबकि वे 1952 में ही बंबई प्रांत के मुख्यमंत्री बन गए थे। बाद में वे केंद्र में मंत्री, उप प्रधानमंत्री और अंततः प्रधानमंत्री बने।
मोराजी रूटीन के हिसाब से चलते थे
मोरारजी प्रातः 4 बजे जग जाते थे। रात में नौ बजे सो जाते थे। पर, वे कहते थे कि सोने और तैयार होने के समय को छोड़ कर उनका सारा समय लोगों का था। चार बजे प्रातः से लेकर सात बजे सुबह तक का समय उनका अपना होता था। उस समय वे किसी तरह का व्यवधान नहीं होने देते थे। इस बीच वे नित्य क्रिया से निवृत होकर टहलते थे। मन ही मन गीता का पाठ करते थे। वे नौ बजे रात के बाद किसी भी हालत में जगे नहीं रहते थे। वे जब प्रधानमंत्री थे और 1979 में उनकी सरकार गिरने लगी तो भी उन्होंने नौ बजे रात के बाद जगने से मना कर दिया। जबकि, सरकार बचाने के उपाय पर विचार करने के लिए रात में उनसे उनके कुछ प्रमुख राजनीतिक सहयोगी विचार विमर्श करना चाहते थे। पर सहयोगी निराश ही हुए। यानी मोरारजी एक बार जो कुछ तय कर लेते थे, उस बात पर घाटा उठा कर भी अमल करते थे। उनकी विश्वसनीयता का सबसे बड़ा आधार यही था।
अब मोरारजी भाई के भोजन जान लीजिए
मोरारजी भाई के भोजन में गाय का दूध, मक्खन, फल, नारियल पानी, शहद, अखरोट, उबले आलू, खजूर, गुड़-मक्के की बनी मिठाई शामिल थे। सब चीज लेने के समय तय थे। उसमें कोई व्यवधान नहीं हो सकता था। वे कहते थे कि शाम में फल नहीं लेना चाहिए। क्योंकि आयुर्वेद में यह मना किया गया है। काश! मोरारजी का कोई जोड़ा राजनीति में आज भी होता।