अभिनेता संजय दत्त का जीवन काफी उतार-चढ़ाव वाला रहा है। उनकी जवानी के दिनों में हम उसे बड़े बाप का बिगड़ैल बेटे के रूप में देख चुके हैं। गलत संगत में रहकर उसने सिगरेट, शराब और हर तरह की ड्रग्स का सेवन कर उसने खुद को बर्बादी के कगार पर पहुंचा दिया था। इसके बाद संजय दत्त को जिंदगी की राह पर लाने में उनके पिता सुनील दत्त ने पूरी ताकत झोंक दी थी। इसका सुखद परिणाम ये निकला कि उसने रिहैब्लिटेशन क्लिनिक में रह कर खुद को ड्रग्स के चंगुल से निकाल भी लिया था।
इसके बाद एक बार फिर संजू बाबा के जीवन में भूचाल आता है। संजय दत्त का नाम मुंबई के सीरियल बम ब्लास्ट के बाद अंडरवल्र्ड से जुड़ता है। संजू आत्मरक्षा की आड़ में एके 56 रखने का संगीन अपराध भी करता है जिसकी सजा भी उसे मिलती है। वहीं संजय दत्त के घर पर आरडीएक्स से भरे ट्रक रखने की अटकल की अखबार में छपती है जो उस पर आतंकवादी का लेबल चिपका देती है।
राजकुमार हिरानी के निर्देशन में बनी संजू फिल्म संजय दत्त पर लगे आतंकवादी के लेबल को हटाने की कोशिशों के इर्दगिर्द रची गई है। इसमें रणबीर कपूर ने अपने अभिनय जीवन का अब तक की सबसे शानदार एक्टिंग की है। वे संजय दत्त की नौजवानी से लेकर अधेड़ उम्र तक पहुंचने के हर रंग को विश्वनीय ढंग से निभाने में सफल रहे हैं। फिल्म में जितने लांग शॉट हैं उनमें आप धोखा खा सकते हैं कि कहीं सचमुच संजय दत्त ही तो नहीं है। इसमें मेकअप का कमाल तो शामिल है ही लेकिन उससे भी ज्यादा रणबीर कपूर की मेहनत साफ दिखाई देती है। इस फिल्म के बाद मुझे वे अपने खानदान में राजकपूर के बाद सबसे अच्छे अभिनेता लगे।
सुनील दत्त की भूमिका में परेश रावल जमे हैं। अपने बिगड़े बेटों को सुधारने की जद्दोजहद को उन्होंने बखूबी बयान किया है। संजय दत्त के जिगरी दोस्त कमली की भूमिका विक्की कौशल ने अच्छे ढंग से निभाई है। नर्गिस की भूमिका में मनीषा कोइराला सामान्य लगी हैं। अनुष्का शर्मा भी अपने रोल के साथ न्याय करती हैं।
निर्देशक राजकुमार हिरानी की इस बात के लिए भी तारीफ की जानी चाहिए कि जो व्यक्ति खुद ये बिंदास होकर कबूल करता है कि उसके 350 महिलाओं से संबंध रहे हैं। उस आदमी की बायोपिक में सेक्स का एक भी सीन नहीं डाला गया। फिल्म में बस एक सिच्यूएशन भर दिखा कर ही काम चला लिया गया। वैसे मुझे नहीं मालूम कि इसमें सेंसर ने कैंची चलाई है या नहीं।
फिल्म को यूए की सर्टिफिकेट इसके संवादों की वजह से ही मिली होगी। खैर संजू टपोरी किस्म के लोगों की संगत में रहता था। इसलिए उसकी भाषा भी उन्हीं के जैसी करने को जस्टिफाई किया जा सकता है।
फिल्म में गाने कम डाले गए हैं यह भी प्लस प्वाइंट ही है। दो गानों में एक ही अच्छा लगा कर हर मैदान फतह। सिनेमोटोग्राफी भी अच्छी है। निर्देशक राजकुमार हिरानी व लेखक अभिजात ने कुल मिलाकर अच्छी फिल्म बनाई है।
- नवीन शर्मा