मुम्बई। अंधेरी की अंधेर गलियां। रात के ग्यारह बजे होंगें। मैडम स्मिता की मर्सिडीज अब तक न पहुंची थी। सेट रेडी था। कैमरे लग गए थे। लाइटें एडजस्ट की जा रही थीं। जूनियर्स भाग-भाग कर काम निपटा रहे थे। भैरवी सिगरेट का एक पॉकेट खाली कर चुका था। डेढ़ साल से फ़िल्म लटकी थी। क्लाईमेक्स शूट हो जाय तो चैन की सांस ले।
स्ट्रगलर का फोन भी जल्दी नहीं उठता। बूढ़ा बनर्जी बोला- ऐ, इन बजबजातीं गलियों में कब तक खड़ा रखेगा? भैरवी जानता था, बनर्जी भड़क गया तो फिर किसी की न सुनेगा। सिगरेट की पॉकेट बढ़ाते बोला-दादा,जस्ट फ़ॉर नेचुरल फिलिंग। तो फिर मारो फोन महारानी को। दो फिलम हिट क्या हुई,नखड़े बढ़ गए। ओफ़, दादा शुरू हो जाये तो ननस्टॉप बकता है। सो, चाय के बहाने सरक लिया। तभी मैडम स्मिता आई और सीधे मेकप भान में घुसी। भैरवी चिलाया- लाइट-रेडी ! असिसिस्टेंट करंट हो गए। एक स्क्रिप्ट ले मैडम की तरफ़ लपका।
भैरवी दौड़ा और बनर्जी के आगे हाथ जोड़ खड़ा हो गया- दादा, जैसे भी हो, नइया भवसागर पार लगा दो। बड़ी मुश्किल से हीरोइन के डेट्स मिले हैं। कल अमरीका निकल गई तो बर्बादी तय। बनर्जी की अनुभवी आंखों ने इंडस्ट्री के सारे उतार-चढ़ाव देखे थे, बोला- फ़िकर नॉट ! और कैमरे का लेंस ठीक करने लगा। शॉट की तैयारी हो गई। इसी बीच जूनियर आया और भैरवी से बोला-साब, मैडम फ़टे ब्लाउज पहनने से इनकार कर रही है। मैंने स्क्रिप्ट दिखाया, सीन का डिमांड बताया, लेकिन टस-से-मस न हुईं।
भैरवी भागा। सामने तेवर चढ़ाए स्मिता बैठी थी, बोली-भैरवी, कितना एक्सपोज करोगे? भैरवी हाथ जोड़ बोला- मैडम, स्क्रिप्ट में सिचुएशन देखा गया.. दरअसल..! स्मिता झल्ला गई- तुम्हारा जूनियर पहले ही पका चुका है। अब तुम मत पकाओ। मैं जानती हूँ- कुछ गुंडे पकड़ लेते हैं, जबरदस्ती करते हैं, अपनी अस्मत लुट जाने के भय से मैं जान लगाकर भागती हूँ और कैमरे के सामने गिरती हूँ। इसमें फटा ब्लाउज़ कहां से आ गया? भैरवी बोला- मैडम आप अकेली हैं, गुंडे पांच हैं। वे आपको पकड़ लिए हैं। आप अकेली जूझती हैं, सो ब्लाउज फट जाती है। आपकी इन्ट्री उसी फ़टी ब्लाउज में होती है। अब हम ‘सन्तोषी मां ‘ थोड़े बना रहे हैं कि..! भैरवी चुप हो गया।
ता बोली- ठीक है, बट ओनली लांग शॉट इन डिम लाइट, नो क्लोज अप, नो रिटेक। दादा को बोल दो। मैं तैयार होकर आती हूँ। और, वह मेकप लेने लगी। भैरवी सेट की तरफ भागा।
दस मिनट बीत गए, लेकिन स्मिता न आई। भैरवी ने जूनियर की तरफ़ इशारा किया, वह भेनिटी-भान की तरफ भागा और तुरत लौटकर बताया कि मैडम मोबाइल पर हैं। गनेशी सेट बॉय फुसफुसाया- बड़ी भैंस, बड़ा पेन्हाव..! दादा घुड़का- ऐ क्या बोला? नहीं दा, जम्हाई आ गई थी। पांच मिनट और निकल गए..। अचानक दूर से किरदार आता दिखा। भैरवी चिल्लाया-साइलेन्स, लाइट, साउंड, एक्शन..। शॉट लिया जाने लगा- ओह, स्मिता ने क्या शानदार इन्ट्री मारी थी ! ऐसा मेकप कि खुद की पहचान जाती रही। अंधेरी रात, तंग गलियों में बेतहाशा भागती औरत, कपड़े तार-तार, चेहरे पर साफ़ झलकती खरोंचें, ओठों से रिसता खून ..! औरत आई और धड़ाम से गिर गई, फिर हाथ जोड़ गिड़गिड़ाने लगी..भइया मेरी इज़्ज़त बचा लो, बाबूजी मैं कहीं की न रहूंगी.. वे, वे मुझे नोच लेंगें..बाबू रहम करो, उन्हें रोको..रोक लो बाबू..बा..बू मेरी ई..ज़..ज़..त..!” फिर वह बेहोश-सी हुई।
बिना रिटेक शॉट चलता रहा- ओह, कोई नहीं बचाता..सभी मुर्दे हैं, इनसे फरियाद क्या..? वह उठी और भागने लगी। गिरते-पड़ते अंधेरे में खो गई।.. भैरवी कट बोला और शॉट ओके हो गया। यूनिट के लोग वाह, वाह करने लगे। स्मिता ने क्या गज़ब एक्टिंग किया था! दादा बोला- भैरवी, आज तीस सालों से कैमरा हैंडल कर रहा हूँ, अब तक ऐसी नेचुरल एक्टिंग नहीं देखी। जा, तेरी फ़िल्म की बल्ले-बल्ले। शॉट के बाद स्मिता किसी से मिलती नहीं थी। विशेषकर ऐसे किसी एक्ट को प्ले करने के बाद उससे निकलना आसान नहीं होता सो स्मिता से बाइत्मिनान भैरवी ने यूनिट पैकप कर दी।
आज फ़िल्म रिलीज़ हुई। मायानगरी ने भाव न दिया। मुट्ठी भर दर्शक आये। भैरवी को लगा कि फ़िल्म के साथ वह भी बैठ गया। बारह साल का स्ट्रगल बेकार चला गया! लेकिन दूसरे ही दिन हाल खचाखच भर गया। फ़िल्म ने रफ़्तार पकड़ ली। कई सिनेमा हालों में लगी और देखते-देखते हिट हो गई। भैरवी के भाव बढ़े। इंडस्ट्री में जाना जाने लगा।
कोई माह भर बाद स्मिता अमरीका से लौटी। लोगों की बधाइयां मिलने लगी। सफलता का शानदार हैट्रिक..! लेकिन उसे ताज़्जुब हुआ कि उसके कई इम्पोर्टेन्ट शॉट लिए बिना फ़िल्म रिलीज़ कैसे हो गई ? हो सकता है दादा ने कोई डुप्लीकेट खड़ाकर शूट कर लिया हो..!
खैर, स्मिता के अनुरोध पर स्पेशल शो रखा गया। पूरी यूनिट फ़िल्म देखने गई। फ़िल्म कमाल की बनी थी। तारीफ़ों के पुल बांधे जाने लगे। मध्यांतर हुआ। पपकार्न चला। दादा की भविष्यवाणी सच हुई। यूनिट को कामयाबी का जश्न मनाने का पूरा हक़ मिल गया। अब अंतिम दृश्य चलने लगा- वही तंग गलियां,सुन-सान रास्ते, अस्मत बचाने भागती औरत, तार-तार कपड़े, वहशी दरिंदों से बचने के लिए गिड़गिड़ाती अबला-बचा लो बाबू,बचा लो बाबू जी..! ग्लिसरीन डाल आंसू बहानेवाले आज खुद के आंसू रोक नहीं पा रहे थे। दादा से रहा न गया, हाथ जोड़ स्मिता से बोले- तुशी ग्रेट हो बाबा! क्या नेचुरल परफार्मेंस दिया। बहोत आगे जाएगा। लेकिन स्मिता ख़ामोश ही रही। फिल्म समाप्त हुई। उसने सबों से अनुरोध किया कि सब उसके घर चाय पीकर जायें।
सभी स्मिता के फ्लैट पर आए। चाय पीते हुए स्मिता ने पूछा- मि. भैरवी, रेप सीन आपने किस डुप्लीकेट पर फिल्माया? कद-काठी और फेस मैचिंग कैसे कर लिया? वैसे जिसने भी किया, गज़ब किया! कौन बन्दी है यह? भैरवी हंसने लगा- मैडम, आप मज़ाक भी ऐसी करती हैं कि सच लगने लगता है ! भला आपके सिवा इस इंडस्ट्री में इतना नेचुरल कौन कर सकता है ? स्मिता गम्भीर हो गई। मैं मजाक नहीं कर रही। प्लीज बताओ और उस एक्स्ट्रा आर्टिस्ट से भी मिलाओ । मैं उसे गले लगाना चाहती हूं। दादा और भैरवी दोनों चौंके ! क्या कह रही हैं आप ? मैं सच कह रही हूँ। मैं तो उसी वक्त शूट छोड़ निकल गई जब घर से फोन आया। मां सीरियस थी। रात भर उनके साथ हॉस्पिटल रही। दूसरे दिन अमरीका चली गई..। जाते-जाते तुझे मेसेज भी डाला। यूनिट के सारे लोग हक्के-बक्के रह गए। भैरवी ने मेसेज बक्स देखा- स्मिता सही थी। तो फिर -‘वह कौन थी..?’ जिसने इतना नेचुरल प्ले किया ?
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पूरी रात किसी को नींद न आई। आख़िर वह कौन थी? अहले सुबह फोन की घण्टी बजी। अलसाई आंखें भैरवी ने रिसिभर उठाया। उधर दादा थे -हेलो,मैं बनर्जी बोल रहा हूँ। भैरवी, जल्दी पेपर देखो। जिस लड़की पर हम रेप शूट कर रहे थे, वह कोई आर्टिस्ट नहीं थी। सचमुच उसके पीछे गुंडे लगे थे। वह भाग रही थी। जब सामने आकर गिरी तो मैंने उसे स्मिता समझ कैमरा चार्ज कर दिया। बाबा रे बाबा, ये क्या हो गया..? और उधर से दादा की सिसकियां आने लगीं । भैरवी ने कांपती हाथों न्यूज़ पेपर उठाया -घटना सच थी। दरअसल कई दिनों के बाद उस औरत की डेड बॉडी मिली थी । पुलिस ने गुथियाँ सुलझाई- फ्लैट में काम करने वाली बाई थी वह। उस दिन काम से लौट रही थी,तभी भेड़ियों ने उसपर झपाटा मारा । वह जान बचाकर भागी। उसी जगह गिरी जहां शूटिंग चल रही थी। वह चीख़ती रही, मदद की भीख मांगती रही और शूट चलता रहा..! ओफ़..भैरवी का मन भारी हो गया। लगा-उससे कोई भारी अपराध हो गया। बुझे मन स्मिता के घर पहुंचा। सब कुछ बता दिया। स्मिता रोने लगी। न्यूज़ पेपर उस अबला की लुटती अस्मत की गवाही दे रहा था। भैरवी बोला-मैडम, अब मुम्बई छोड़ रहा हूँ। आज निकल जाऊंगा। स्मिता बोली-इसमें तेरा क्या कसूर ? भैरवी बोला- कसूर है न ! मैंने एक अबला के आंसू बेचे,उसकी तड़प बेंची और..भैरवी बच्चों की तरह बिलख-बिलख रोने लगा। काश, मैं आसुओं के फर्क को समझ पाता। स्मिता समझाते हुए बोली-भैरवी,इमोशनल न बनो, सामने तुम्हारा कैरियर है, बड़ी मुश्किल से एक हिट फिल्म का सेहरा तेरे सर बंधा है। नहीं मैडम, अब चलता हूँ, घण्टे भर बाद ट्रेन है। आप नहीं जानती, मेरी पत्नी भी एक छोटी नौकरी करती है और उसे भी घर लौटने में देर हो जाती है । और..और, अब तो मुनिया भी स्कूल जाने लगी है । फिर, भैरवी झटके से निकल गया। स्मिता की तरफ़ पलट कर नहीं देखा..।
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