राहत पैकेज में कितनी राहत! समझने के लिए इसे पढ़ लीजिए

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राहत पैकेज में कितनी राहत! लाक डाउन-3 के अंत समय में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 5.94 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज-2 का ब्यौरा पेश किया। इसे विस्तार से समझा रहे वरिष्ठ पत्रकार श्याम किशोर चौबे
राहत पैकेज में कितनी राहत! लाक डाउन-3 के अंत समय में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 5.94 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज-2 का ब्यौरा पेश किया। इसे विस्तार से समझा रहे वरिष्ठ पत्रकार श्याम किशोर चौबे
  • श्याम किशोर चौबे

राहत पैकेज में कितनी राहत! लाक डाउन-3 के अंत समय में 13 मई को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 5.94 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज-2 का ब्यौरा पेश किया। राहत पैकेज का ब्यौरा यह सोचने को विवश कर दिया कि इस राहत पैकेज में कितनी राहत है? इससे एक दिन पहले पांचवीं बार टीवी पर नमूदार होकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जो खुद को प्रधान सेवक कहलाना पसंद करते हैं, ने कोरोना काल में बीस लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा कर उम्मीद की थी कि लोग ताली-थाली बजाएंगे। उसके भी काफी पहले मार्च में ही केंद्र सरकार 6.94 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज-1 की घोषणा कर चुकी थी। प्रधानमंत्री ने जब 12 मई की रात अपने संबोधन में कई मर्तबा बीस लाख करोड़, बीस लाख करोड़ उचारा तो बहुतेरे लोगों को लगा कि कल यानी 13 मई को निर्मला सीतारमण जी इतनी ही राशि का हिसाब देंगी। सोशल मीडिया पर अनेक लोगों ने बीस लाख करोड़ के नाम ताली-थाली बजानी भी शुरू कर दी थी, लेकिन बुधवार को भेद खुला कि प्रधान सेवक जी ने कुल जमा जोड़कर कहा था। इस हिसाब से राहत पैकेज-3 का इंतजार किया जाना चाहिए, क्योंकि अबतक दो चरणों में 12.88 हजार करोड़ ही सामने आया है। अब इस सवाल पर विचार किया जाना जरूरी है कि राहत पैकेज-2 से आम अवाम को क्या मिलना है?

सबसे पहले यह समझना आवश्यक है कि राहत पैकेज-2 फिस्कल पैकेज नहीं है। यानी इसमें सरकार के बजट से कुछ आना-जाना नहीं है। यह पूरी तरह से मोनेटरी पैकेज है, जो लाभुक समूह या लाभुक पर निर्भर करता है कि वह अपनी जेब की हैसियत देखकर इसे ले या न ले। सारा खेल लेनदार और बैंकों के बीच होना है। सरकार ने रास्ता तैयार कर दिया है। यह ठीक वैसे ही है, जैसे बीमार के लिए दवा पहली आवश्यकता है और खुराक दूसरी प्राथमिकता। बजटीय पैकेज ही दवा होती है, जबकि इस तरह का मोनेटरी पैकेज खुराक की श्रेणी में आता है। सरकार की मंशा इतनी जरूर है कि हर जगह लिक्विडिटी बढ़े, ताकि ठंडा और मंदा पड़ा बाजार गर्म हो सके। इस पैकेज में सरकार ने एमएसएमई, बिजली कंपनियों, एनबीएफसी-एचएफसी-एमएफआई और इपीएफ पर फोकस किया है।

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जहां तक एमएसएमई का सवाल है, एक बड़ा निर्णय यह जरूर लिया गया है कि सौ करोड़ तक की इकाइयों को इसके दायरे में ले आया गया है। कोरोना काल में दम तोड़ चुकीं या दम तोड़ रहीं इन इकाइयों को सांस लेने तक की स्थिति बहाल करने के लिए तीन लाख सत्तर हजार करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है। इन इकाइयों को बैंकों से कर्ज लेने के लिए कोई गिरवी नहीं रखनी है और चार साल के अंदर कर्ज चुकाना होगा, जिसमें से पहले साल में कोई अदायगी नहीं करने की छूट होगी। सरकार की सोच शायद यही है कि कर्ज की राशि से कर्मियों की तन्ख्वाह और इस्टैबलिसमेंट के किराये का भुगतान कर लेंगे। जब ये काम शुरू कर देंगे तो मांग आएगी और इस प्रकार रोजगार भी बढ़ेगा। एमएसएमई के साथ एक शाश्वत सवाल जुड़ा हुआ है कि ये हमेशा चैलेंज में रहती हैं। ऐसी अधिकतर इकाइयां क्राइसिस में रहती हैं। कोरोना काल में अचानक आई बंदी से इनके धन का प्रवाह ही टूट गया है। कहने की बात नहीं कि मंदी पर छाई कोरोना मंदी देश को लंबी मंदी के दौर में ले जा चुकी है। ऐसे में एमएसएमई उत्पादों की बाजार में कितनी मांग होगी, यह कहना मुश्किल है। संबंधित कंपनियां कर्ज की बदौलत अपने उत्पादों के बाजार के प्रति कितनी आश्वस्त हो पाती हैं, यह उनको ही विचारना है और तब बैंक का रुख करना है। सवाल यह भी है कि सरकार ने एमएसएमई के लिए बैंकों की ब्याज दर भी नहीं तय की है और सवाल यह भी है कि एक साल के मोनेटोरियम पर बैंक अपना बैलेंस शीट कैसे बनाएंगे। यह सेक्टर कर्ज, नहीं तो कम से कम ब्याज माफी की उम्मीद लगाये बैठा था, बदले में उसे एक बार पुनः कर्ज का दिखाया गया रास्ता उनको उबार लेगा या गले की फांस बनेगा, यह उनकी समझदारी पर निर्भर करेगा।

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सरकार ने राहत पैकेज में बिजली कंपनियों के लिए 90 हजार करोड़ रुपये की व्यवस्था दी है। जानकारी के अनुसार देश की बिजली कंपनियां 94 हजार करोड़ के कर्ज पर चल रही हैं। इस लिहाज से 90 हजार करोड़ बहुत बड़ी राहत है। पहले से ही कर्ज के बोझ से अपनी कमर तोड़ चुकीं इन कंपनियों की कोरोना काल में हालत और अधिक खस्ता हो चुकी है। इनके मुख्य उपभोक्ता उद्योगों में लाक डाउन के कारण इस दौरान ये डोमेस्टिक फीडरों को ही फीड करती रहीं। ये सरकार द्वारा दिए गए इमर्जेंसी बेलआउट को डोमेस्टिक फीडर के भरोसे किस हद तक संभाल पाएंगी, यह देखने वाली बात होगी। बेशक, सरकार ने इस मामले में क्राइसिस मैनेजमेंट किया है, नहीं तो बुरी तरह हांफ रहीं खासकर पावर जेनरेशन वाली कंपनियां हाथ खड़े कर देतीं और हमारा-आपका घर अंधेरे में समाने को विवश हो जाता। बिजली कंपनियों को कर्ज लेकर दिये गये जीवन दान का परिणाम अंततः संबंधित राज्य सरकारों को भुगतना होगा, क्योंकि इनके कर्ज की गारंटी राज्य सरकारें ही देंगी। यह कर्ज अंततः राज्य सरकारों के बजट में जा बैठेगा। केंद्र सरकार ने इसके पहले ‘उदय’ के तहत पावर सेक्टर के घाटे को बांड में बदला था। अब नई तरकीब का भविष्य इसी बात पर निर्भर करेगा कि उद्योग प्रक्षेत्र कितनी खपत बढ़ा पाता है। यदि उधर की मांग कम हुई, जिसकी उम्मीद अधिक है, तो लगातार घाटे का सौदा साबित हो रहीं बिजली कंपनियां किस हद तक सांस ले पाएंगी, यह भविष्य के हाथों में है।

एनबीएफसी आदि-इत्यादि के लिए सरकार ने राहत पैकेज-2 में 75 हजार करोड़ की व्यवस्था बनाई है। दरअसल शैडो बैंकिंग में संलग्न इस प्रकार की कंपनियों का बड़ा हिस्सा कर्ज लेने लायक है भी या नहीं, यह कहना जोखिमभरी बात होगी। जिन कंपनियों को बैंक अब कर्ज देने लायक भी नहीं मानते, उनकी गारंटी सरकार ले रही है। कहीं ऐसा न हो कि ये बेहद खतरनाक निर्णय साबित हो। इस सेक्टर में निश्चय ही कुछ बजाज फाइनांस,  एलआईसी हाउसिंग फाइनांस, पीएनबी हाउसिंग फाइनांस, महिंद्रा फाइनांस, इंडिया बुल्स जैसी कुछेक अच्छी कंपनियां भी हैं लेकिन बहुतेरियों की क्रेडिट रिपोर्ट बेहद खराब रही है। ऐसी कंपनियां मंदी की साइकिल में समाकर कर्ज अदा करने की गुंजाइश की स्थिति में भी नहीं पाई गईं थीं। बाजार में खराब साखवाली ऐसी कंपनियां राहती पैकेज से अपनी साख कैसे कायम कर पाएंगी?

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कुछ यही हाल रीयल सेक्टर का भी है। यह सेक्टर हमेशा हैप्पी डेज का सेक्टर रहा है, जबकि लंबे अरसे से यह उनके नसीब से दूर जा चुका है। इस सेक्टर के समक्ष दिक्कत डिमांड की है। इनका दो तरह का काम है। एक तो रेजीडेंसियल और दूसरा कमर्शियल। रेजीडेंसियल रीयल इस्टेट का बाजार पहले से ही गिरा हुआ है। इनके पास बहुत सारा निर्माण अनसोल्ड पड़ा हुआ है। कमर्शियल साइड में मंदी की इस तेज रफ्तार नये निर्माण की बस उम्मीद ही की जा सकती है, हाल-फिलहाल में विश्वास कतई नहीं। जब पूरा बाजार क्राइसिस झेलने को विवश है तो बड़े माल और शो रूम और सिनेमा हाल का निर्माण कौन कराएगा? बेशक, सरकार ने सदेच्छा से इनके लिए भी राहत का इंतजाम कर दिया है, लेकिन एक सवाल तो है ही कि जो पहले से कर्ज अदा करने की स्थिति में नहीं हैं, वे नया कर्ज लेकर कौन सा तीर मार लेंगे?

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राहत पैकेज में टीडीएस और टीसीएस में टेंपररी ही सही, 25 प्रतिशत कटौती का सरकारी फरमान उसको ही नुकसान पहुंचाएगा। इससे प्रोफेशनल्स को लाभ मिलेगा। इसके साथ ही कंट्रेक्चुअल सिस्टम को भी राहत मिलेगी। लेकिन यह सारा कुछ अर्थव्यवस्था के पहिए पर निर्भर करेगा कि वह कैसी गति पकड़ता है और कितनी तेज चल पाता है। इस मद में 50 हजार करोड़ की व्यवस्था है।

इसी तरह राहत पैकेज में वित्त मंत्री ने इपीएफ मद में सरकार ने तीन महीने तक नियोक्ताओं को जो दो प्रतिशत कम जमा करने की छूट दी है, उससे सुरक्षित नौकरी कर रहे लोगों के हाथों में थोड़ा अधिक पैसा जरूर आएगा। इसके पहले सरकार ने इस मद में जो छूट दी थी, उस दौर में व्यापक पैमाने पर विदड्रावल हो चुका है। सरकार ने इस छूट से 6,750 करोड़ रुपये की लिक्विडिटी बढ़ने की उम्मीद जताई है। सवाल यह है कि निजी क्षेत्र में काम कर रहे 80-85 प्रतिशत लेबरफोर्स को इपीएफओ से नियोक्ताओं ने जोड़ा ही नहीं है, उनका तो हाल वैसा ही रहेगा, जैसा आज है।

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कुल मिलाजुलाकर सरकार ने लांग टर्म मेजर्स पर काम किया है लेकिन बैंकों के लिए गंभीर चिंता की बात है। वे तो अभी तक राहत पैकेज-1 पर ही पूरी तरह से अमल नहीं कर पाये हैं। अब क्या बैंक इतने बड़े क्रेडिट पुश के लिए तैयार हैं? वे यदि मन मसोस कर ऐसा करते भी हैं तो जमाकर्ताओं को अंततः नुकसान ही होना है। ब्याज दर शून्य की ओर बढ़ रही है। बहरहाल, मंदी के दौर में कोरोना क्राइसिस से उबरने के लिए सरकार द्वारा दी गई यह खुराक अर्थव्यवस्था को कितनी गति दे पाएगी या सांस लेने तक जिंदा रखेगी, यह देखने वाली बात होगी। हालांकि वित्त मंत्री ने सारी व्यवस्था खुद मानिटर करने का आश्वासन दिया है, लेकिन महादेशनुमा इस देश में हर सिद्धांत में अपवाद ढूंढकर उसका दुरुपयोग करने की परंपरा पुरानी है। बहुत संभव है कि सरकार के दिमाग में एक पुरानी कहावत- ‘भूख न जाने जूठा भात, प्रीति न जाने जात-कुजात। प्यास न जाने धोबी घाट, नींद न जाने टूटी खाट।।’ – भी रही होगी। लेकिन जिन कंपनियों को कर्ज की आजादी दी गई है, वे भी तो अपनी हैसियत एक बार जरूर देखेंगी अन्यथा बेहिसाब कर्ज लेकर घी पीने वाले माल्या, नीरव आदि भी इसी देश का इतिहास और वर्तमान भी हैं।

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