लालू यादव जल्द रिहा होंगे, झारखंड में पूरी हो रहीं औपचारिकताएं !

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सीएजी की रिपोर्ट के हवाले से चारा घोटाले की सूचनाएं खबर बनती थी। बचपन के दिनों में अक्सर सुनते थे कि सांढ़ स्कूटर पर ढोये गये। तब आश्चर्य होता था।
सीएजी की रिपोर्ट के हवाले से चारा घोटाले की सूचनाएं खबर बनती थी। बचपन के दिनों में अक्सर सुनते थे कि सांढ़ स्कूटर पर ढोये गये। तब आश्चर्य होता था।

रांची। लालू यादव जल्द ही रिहा हो जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर उन्हें पैरोल पर रिहा किये जाने का पैसला हफ्ते भर में झारखंड सरकार ले सकती है। झारखंड सरकार इसकी औपचारिकताएं पूरी करने में लगी है। इसे पूरा होने में हफ्ते भर का वक्त लग सकता है। इस बीच रांची के अस्पताल रिम्स में इलाज के लिए पेइंग वार्ड में भर्ती लालू को दूसरी जगह शिफ्ट करने की तैयारी चल रह8 है। इसलिए पेइंग वार्ड के बगल में कोरोना मरीजों के लिए आइसोलेशन वार्ड है। यह अलग बात है कि लालू के पैरोल की अवधि लंबी नहीं होगी, फिर भी अनुमान लगाया जाता है कि कोरोनावायरस के संक्रमण को देखते हुए उन्हें तीन-चार महीने की जमानत मिल जाएगी।

दरअसल उन्हें रिहा करने की स्थिति इसलिए बनी कि 23 मार्च 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने सुओ मोटो निर्णय लेते हुए कोविड-19 के मद्देनजर राज्य सरकारों को यह आदेश दिया कि वैसे बंदियों को पैरोल पर रिहा किया जाये, जो सजायाफ्ता हों या अंडरट्रायल। सात साल की सजा वालों को पैरोल पर रिहा करने का सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट आदेश था।

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सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए तीन सदस्यों की एक कमेटी बनाने का सुझाव राज्य सरकारों को दिया। इनमें एक राज्य सरकार के गृह विभाग के प्रिंसिपल सेक्रेट्री होंगे, दूसरे लीगल सर्विसेज अथॉरिटी के चेयरमैन (न्यायिक सेवा) और जेल आईजी या जहां डायरेक्टर हों, उनमें से कोई एक होगा। 3 सदस्यों वाली यह कमेटी वैसे बंदियों की शिनाख्त करेगी, जिन्हें पैरोल पर रिहा किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि जब तक कोविड-19 का संक्रमण है और लाक डाउन जारी है, तब तक कोर्ट में किसी अभियुक्त की भौतिक उपस्थिति अनिवार्य नहीं है। सुनवाई वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए होगी।

झारखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के आलोक में कमेटी बनाई और कमेटी ने अपनी रिपोर्ट भी सौंप दी है। कमेटी को सिर्फ एक मुद्दे पर आपत्ति है कि लालू यादव को अलग-अलग मामलों में 14 साल की सजा हुई है। सजा उन पर आर्थिक अपराध के मामलों में हुई है। इसीलिए उनको पैरोल पर रिहा करने से पहले राज्य सरकार ने सीधे फैसला लेने के बजाय महाधिवक्ता से राय मांगी है।

लालू प्रसाद के पैरोल पर रिहा होने की राह बिहार सरकार ने आसान कर दी है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट के पैरोल पर बंदियों के रिहा करने के आदेश के खिलाफ बिहार सरकार ने मॉडिफिकेशन के लिए सुप्रीम कोर्ट में एप्रोच किया। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसका आदेश कंपलसरी नहीं है, ऑप्शनल है। 13 अप्रैल 2020 को आए सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से यह साफ हो गया कि राज्य सरकार जिसे चाहे, उसे छोड़ सकती है। पॉना हाईकोर्ट के क्रिमिनल मामलों के जानकार वरीय अधिवक्ता योगेश चंद्र शर्मा का कहना है कि अब अगर झारखंड सरकार लालू को रिहा करने का फैसला लेती है तो इसमें कोई वैधानिक अड़चन आड़े नहीं आएगी।

यह सर्वविदित है कि राष्ट्रीय जनता दल झारखंड की सरकार में सहयोगी है। झारखंड सरकार में आरजेडी का एक मंत्री भी है। इसलिए लालू यादव के प्रति सरकार का सॉफ्टकॉर्नर स्वाभाविक है। समझा जाता है कि राज्य सरकार किसी को अपने फैसले पर अंगुली उठाने का अवसर नहीं देना चाहती है। इसीलिए उसने महाधिवक्ता से इस मुद्दे पर राय मांगी है। यानी महाधिवक्ता की राय औपचारिकता भर है। माना जाता है कि हफ्ते भर में महाधिवक्ता से राय लेने की औपचारिकता भी पूरी हो जाएगी और अगले हफ्ते के आरंभ में लालू को पैरोल पर रिहा कर दिया जाएगा।

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