पटना। राजनीति में एक दूसरे की टांग खिंचाई आम बात है। कभी भाजपा तो कभी राजद, कांग्रेस और अन्य दलों के नेताओं ने नीतीश कुमार की आलोचना भले करती रही हो, लेकिन इस बात से इनकार करने के लिए विरोधियों को भी सौ बार सोचना होगा यह कहने के लिए कि नीतीश कुमार सिर्फ कुर्सी से मोहब्बत करते हैं। तकरीबन दो दशक के दौरान बिहार की कुछ ऐसी सच्चाई है, जिसे कोई खारिज नहीं कर सकता। मसलन सड़कों का जाल, 20-22 घंटे सुदूर देहाती इलाकों में बिजली की आपूर्ति, शिक्षा के प्रति बढ़ता रुझान, खासकर लड़कियों में और शराब के नाम पर आम आदमी की बर्बादी पर नियंत्रण।
नीतीश ने बिजली नियामक प्राधिकार के सूझाव के मुताबिक बिजली की कीमत तो बढ़ाई, पर सबसिडी देकर उसका बोझ उपभोक्ताओं पर बढ़ने नहीं दिया। बिजली सस्ती और पर्याप्त मिले, इसके लिए नीतीश कुमार ने एनटीपीसी के साथ समझौता कर अपने तीन पावर प्लांट उसे 33 साल की लीज परदे दिये हैं। नीतीश ने यह भी कहा है कि एनटीपीसी के उत्पादन का खर्च होगा, इसलिए और सस्ती हो सकती है बिजली।
समाज की कुरीतियों के खिलाफ नीतीश कुमार के हल्ला बोल ने भी रंग दिखाना शुरू कर दिया है। बाल विवाह के खिलाफ अब बच्चियां भी मुखर होने लगी हैं। घरों में दारू पीकर रोज उत्पात मचाने वाले पति के कोप से तो बच ही गयी हैं, घर में आर्थिक बचत भी होने लगी है। हर घर नल योजना हालांकि हर जगह अभी इसकी नींव पड़ी है, लेकिन उम्मीद है कि इसके कारगर ढंग से चालू हो जाने पर पेयजल की समस्या से निजात मिल जायेगी। खासकर उनको अधिक फायदा होगा, जिनके इलाकों में भूमिगत जल स्रोतों में खतरनाक बीमारियों के आर्सेनिक जैसे कारक पाये जा रहे हैं और कैंसर जैसी बीमारी को दावत दे रहे हैं।