शिवहर। शिक्षा मंत्री हड़ताली शिक्षकों से बिना किसी निर्णय के काम पर लौटने की अपील कर उनका अपमान कर रहे हैं। लेकिन वे नहीं झुकेंगे। यह कहना है हड़ताली शिक्षकों का। सहायक शिक्षक को राज्यकर्मी का दर्जा एवं पुराने शिक्षकों की भाँति वेतनमान व समान सेवाशर्त को लेकर विगत 17 फरवरी से ही नियोजित शिक्षकों की हड़ताल जारी है।
हड़ताल में बिहार के तमाम सरकारी विद्यालयों के शिक्षक शामिल हैं। आंकड़ों के मुताबिक़ यह बिहार की अबतक की सबसे सघन और व्यापक भागीदारीवाली शिक्षक हड़ताल है। इस बीच कोरोना महामारी के दस्तक ने हड़ताली शिक्षकों के सामने नई चुनौतियाँ खड़ी की हैं। बावजूद इसके, वे आपदा के मद्देनजर अपने सामाजिक दायित्व का पालन करते हुए लोगों के बीच गये और जागरूकता अभियान संचालित किया। यथासंभव मास्क, सेनेटाइजर, ग्लब्स वगैरह भी बांटे।
लॉकडाउन का पालन करते हुए शिक्षकों ने बार-बार सरकार से शिक्षकों के मसले पर सहानुभूतिपूर्वक निर्णय लेने का आग्रह किया। लेकिन सरकार ने तमाम विभागीय कामकाज में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने वाले अपने नियोजित शिक्षकों की मांगों को नजरअंदाज करते हुए उनका वेतन बंद कर दिया। धमकी तथा दमन का सिलसिला सरकार ने जारी रखा है। इस बीच शिक्षा मंत्री ने बिना शर्त हड़ताली शिक्षकों से काम पर वापस लौटने की अपील की है।
शिक्षकों ने शिक्षा मंत्री की अपील को बेतुका करार दिया है कि शिक्षक आन्दोलन खत्म कर दें। सरकार की संवेदनहीन चुप्पी के खिलाफ बिहार राज्य शिक्षक संघर्ष समन्वय समिति ने आज संविधान और भारतीय गणराज्य के निर्माता बाबा साहब डा. भीमराव आंबेडकर की जयंती के मौके पर कोरोना एवं नियोजनवाद को मिटाने का संकल्प लिया। लॉकडाउन के बीच अपने-अपने घरों में बाबा साहब के चित्रों पर माल्यार्पण करते हुए हड़ताली शिक्षकों ने प्रदेश भर में संविधान की प्रस्तावना एवं आंदोलन के संकल्पपत्र का पाठ किया।
इसके ही शिक्षकों ने संघर्ष के दौरान शहीद होनेवाले शिक्षकों को भी श्रधांजलि दी। टीईटी- एसटीईटी उत्तीर्ण नियोजित शिक्षक संघ (गोपगुट) के जिलाध्यक्ष सह बिहार राज्य शिक्षक संघर्ष समन्वय समिति शिवहर के अध्यक्ष मंडल के सदस्य चितरंजन कुमार ने कहा कि शिक्षक समाज की लड़ाई अब सम्मान के संघर्ष में तब्दील हो चुकी है। उनके सामने संघर्ष को जारी रखने के अलावा कोई विकल्प नही है। अगर सरकार को यह लगता है कि शिक्षक थक कर हार मान लेंगे तो यह सरकार की अब तक की सबसे बड़ी राजनीतिक भूल साबित होगी।
उन्होंने कहा कि दर्जनों शिक्षकों की जान ले चुकी भेदभाव व शोषण की सरकारी नीति कोरोना वायरस से कम घातक नहीं है। हड़ताल के दौरान अब तक 47 से भी अधिक शिक्षकों का असामयिक निधन हो चुका है। तक़रीबन 30 हजार से भी अधिक शिक्षक, बर्खास्तगी निलंबन और प्राथमिकी जैसी कारवाई का शिकार हुए हैं। उनकी कुर्बानी के लिए जिम्मेदार सरकार कोरोना के नाम पर ब्लेम गेम करना बंद करे। अगर सरकार में शिक्षकों के प्रति रत्तीभर भी संवेदना है तो उसे शिक्षा के अधिकार कानून का अनुपालन सुनिश्चित करते हुए हड़ताली शिक्षकों के मसले पर सकारात्मक निर्णय लेनी चाहिए।
अपने जायज संवैधानिक श्रमिक हकों के लिए संघर्षरत शिक्षकों का तिरस्कार नीतीश सरकार के सामाजिक न्याय और गुड गवर्नेंस की पोल भी खोल रहा है। वहीं संगठन के जिला महासचिव रवीन्द्र नाथ सुमन, जिला उपाध्यक्ष रंजीत ठाकुर जिला कार्यकारिणी के सदस्य प्रेमशंकर सिंह, देवेन्द्र ठाकुर, दीपक कुमार, आलोक सुमन, गुंजन पांडेय बबलू कुमार तथा संतोष कुमार ने संयुक्त रूप से कहा कि कोरोना आपदा के दौर में भी सरकार की शिक्षकों के प्रति बेरूखी, बदला लेने की भावना और शिक्षक-कर्मचारी विरोधी चेहरा उनके चुप्पी साधने से बेपर्द होता दिख रहा है।
हड़ताली शिक्षक कोरोना के खिलाफ सरकार के पहलकदमियों के प्रति अपनी एकजुटता व्यक्त कर चुके हैं, लेकिन सरकार उनके प्रति शत्रुगत रुख अख्तियार किये हुए है। साथ ही शिक्षक नेताओं ने यह भी कहा कि वाजिब वेतन से वंचित करना नियोजित शिक्षकों को उनकी मानवीय गरिमा से बहिष्कृत करने जैसा है। शिक्षकों में इस सरकारी रवैये से गहरी नाराजगी है। जब तक सरकार हड़ताली शिक्षकों के मसले पर संवेदनशीलता के साथ ठोस पहल नहीं करती है, तब तक शिक्षक हड़ताल में बने रहेंगे।
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