पटना। गन्ना बिहार का एक महत्वपूर्ण नगदी फसल है जो किसानों को फसल उपजाने पर नगदी संबंधी लाभ ही नहीं ,ग्रामीण क्षेत्र में प्रत्यक्ष–अप्रत्यक्ष रोजगार का भी लाभ उपलब्ध कराता है | राज्य में कृषि योग्य भूमि लगभग 76..73 लाख हेक्टेयर है जिसमें से लगभग 3 लाख हेक्टैयेर पर ईख की खेती होती है | बिहार में ईख के कुल उत्पादन में पश्चिम चंपारण ,पूर्व चंपारण और गोपालगंज का संयुक्त हिस्सा 77.7 प्रतिशत है जबकि गन्ना का कुल क्षेत्रफल में 74.7 प्रतिशत हिस्सा है | बिहार में अनुकूल कृषि –जलवायु स्थितियों के बावजूद उत्पादकता का निम्न स्तर सरकार के लिए भी चिंता का विषय है | गन्ना उत्पादन वाले क्षेत्र में मात्र 30 प्रतिशत के लगभग क्षेत्रफल में ही सिंचाई की सुविधाएं उपलब्ध है साथ ही साथ गन्ने के खेतों में बरसात के दिनों में लगातार जल जमाव मुख्यतः कम उत्पादन के लिए ज्यादा जिम्मेदार हैं | गन्ने की उत्पादकता बढ़ाने के लिए सिंचाई की समय से और सुनिश्चित उपलब्धता अत्यंत जरुरी है | इसलिए कृषि रोड मैप 3 में राज्य सरकार ने बिहार में सिंचाई क्षमता के विस्तार के लिए अनेक लक्ष्य चिन्हित किए हैं |
गन्ना उत्पादक किसानों को उनके द्वारा लगाये गए गन्ने की मापी ,गन्ना आपूर्ति के लिए कैलेंडरिंग तथा उसके मूल्य भुगतान से संबंधित सूचनायें एसएमएस के माध्यम से समय पर उपलब्ध कराने के लिए बिहार गन्ना प्रबंधन सूचना प्रणाली (BSMIS) को विकसित कर लागू किया गया है | गन्ना सर्वेक्षण नीति के तहत किसानवार लगाये गन्ने का सर्वेक्षण GPS प्रणाली के माध्यम से संपन्न कराया गया है |
घटतौली नियंत्रण के क्रम में चिनों मिलों के सभी 3 टन के तौल सेतुओं को हटाकर न्यूनतम 5 टन में परिवर्तित करते हुए उनमें लोड सेल और डिजीटाइजर लगवाने गए हैं तथा तौल के पश्चात गन्ना कृषकों को कंप्यूटराइज्ड वेइमेंट रिसीप्ट उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गयी है |
राज्य में निजी क्षेत्र के 9 एवं सार्वजनिक क्षेत्र के 2 कुल 11 चीनी मिलें कार्यरत हैं ,जिनकी समेकित पेराई क्षमता 55000 टन प्रतिदिन हैं | गत पेराई सत्र (2016-17) में राज्य के चीनी मिलों के क्षेत्र में 2.16 लाख हेक्टेयर में उत्पादित 571.93 लाख क्विंटल गन्ने का किसानों से क्रय कर पेराई की गयी एवं 52.40 लाख मेट्रिक टन चीनी का उत्पादन किया गया | किसानों द्वारा आपूरित ईख का मूल्य 1575.28 करोड़ रूपये के 99.45% भुगतान चीनी मिलों द्वारा संबंधित किसानों को किया जा चुका है | पेराई सत्र 2017-18 के लिए राज्य के चीनी मिलों के क्षेत्र में 2.43 लाख हेक्टर में ईख का आच्छादन है |
पिछले पेराई सत्र में 31 जनवरी , 2018 तक राज्य की चीनी मिलों की औसत रिकवरी 9.36 आयी है | गत वर्ष की तुलना में चालू वर्ष में रिकवरी प्रतिशत में बढ़ोत्तरी संभावित है | फरवरी 2018 तक राज्य की चीनी मिलों द्वारा कुल 385.96 लाख क्विंटल गन्ने का क्रय कर निर्धारित दर पर मूल्य 1119.68 करोड़ रूपये के विरुद्ध 704.16 करोड़ रूपये (62.89%) का भुगतान मिलों द्वारा करा दिया गया है |
ईख का उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के लिए राज्य सरकार ने कई प्रोत्साहन योजनाएं शुरू की हैं | जैसे मुख्यमंत्री गन्ना विकास योजना 16 चुनिंदा प्रजातियों में से किसी का भी प्रमाणित बिज खरीदने पर किसानों को 135 रूपये प्रति क्विंटल ( अनुसूचित जाति/जनजाति को 175 रूपये प्रति क्विंटल ) सब्सिडी देने को योजना है | यह लाभ अधिकतम 2.5 एकड़ जमीन के लिए उपलब्ध है | नई प्रजातियों का गन्ना उपजाने के लिए सब्सिडी लखनऊ स्थित भारतीय ईख अनुसन्धान संस्थान और पूसा स्थित गन्ना अनुसंधान संस्थान जैसे अनुसंधान केन्द्रों के जरिए दी जा रही है | इसके आलावा ईख उत्पादकों को पौधा सरंक्षण संबंधी रसायन वितरित करने के लिहाज से कुल खर्च या अधिकतम 2,000 रूपये प्रति हेक्टयेर व्यय पर 50 प्रतिशत की दर से सब्सिडी दी जा रही है | आधार बीज के उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करने के लिहाज से राज्य सरकार प्रति हेक्टैयेर 25,000 रूपये सब्सिडी उपलब्ध कराती है |
राज्य में कृषि विकास की अपार संभावनाओं को देखते हुए इसके विकास सी जुडी योजनाओं को जनता तक पहुँचाने के लिए तकनीकी प्रचार प्रसार की भी पर्याप्त व्यवस्था की गयी है | इस प्रसार –प्रचार का लाभ अन्य फसल के उत्पादकों के साथ साथ गन्ना उत्पादक किसान भी भरपूर ले सकते हैं | अभी राज्य के सभी जिलों में कृषि प्रौधोगिकी प्रबंधन अभिकरण (आत्मा ) और कृषि विज्ञानं केंद्र की स्थापना की गयी है | वैज्ञानिक कृषि की जानकारी से लैश प्रसार सेवा के कर्मियों की दक्ष टीम किसानों को अपने दरवाजे पर ही आधुनिक प्रौधोगिकी के बारे में जानकारी हासिल करने में मदद कर रही है | यह टीम बीज प्रबंधन ,मिट्टी की श्रेणी के अनुरूप रासायनिक उर्वरकों के उचित मिश्रण का उपयोग ,नया फसल पैटर्न अपनाने और उच्च उत्पादकता वाले बीजों के व्यापक उपयोग के लिए उत्प्रेरक का काम करती है |