- विशद कुमार
रांची। सरना धर्म कोड को लेकर देश भर के आदिवासियों का जुटान 18 फरवरी को दिल्ली के जंतर मंतर पर होगा। जनगणना में लरना धर्म कोड जोड़ना मुख्य मांग है। 2021 की जनगणना को लेकर देश के ट्राइबल समुदाय सरना धर्म कोड के लिए आंदोलनरत हैं। झारखंड में संघ व भाजपा के लोग आदिवासियों के बीच इस प्रचार में लगे हैं कि 2021 की जनगणना प्रपत्र में वे हिन्दू धर्म लिखवाएं। अंग्रेजी शासन काल में ट्राइबल्स के लिए ट्राइबल रिलीजन कोड था, जिसे ट्राइबल समुदाय के लोग आदिवासी धर्म भी लिखवाते थे। आजादी के बाद 1951 में इसे खत्म कर दिया गया।
राष्ट्रीय आदिवासी-इंडीजीनस धर्म समंवय समिति का संयोजक अरविंद उरांव बताते हैं कि 80 के दशक में तत्कालीन सांसद कार्तिक उरांव ने आदिवासियों के लिए अलग धर्म आदि धर्म की वकालत की थी, मगर तत्कालीन केंद्र सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया। बाद में उक्त मांग को लेकर भाषाविद्, समाजशास्त्री, आदिवासी बुद्धिजीवी और साहित्यकार रामदयाल मुंडा ने आगे बढ़ाया, लेकिन केंद्र सरकार ने पुन: ध्यान नहीं दिया। 2001 में आदिवासीयों ने एक नारा शुरू किया- ‘सरना नहीं तो जनगणना नहीं’।
अब 2021 में होने वाली जनगणना को लेकर देश के सभी राज्यों के ट्राइबल समुदाय के लोग सरना धर्म कोड की मांग को लेकर आगामी 18 फरवरी 2020 को दिल्ली के जंतर मंतर पर एक दिवसीय धरना प्रदर्शन करेंगे। अरविंद उरांव बताते हैं कि जो लोग दिल्ली आने में अक्षम होंगे, वे अपने अपने राज्यों के राजभवन के सामने एक दिवसीय धरना-प्रदर्शन करेंगे। उक्त कार्यक्रम की सफलता के लिए देश के सभी आदिवासी पूरी तैयारी में लगे हैं।
कार्यक्रम के बाबत अरविंद उरांव बताते हैं कि आगामी जनगणना का समय आ चुका है, अप्रैल 2020 से सितम्बर 31 तक मकान सूचीकरण एवं मकान गणना अनुसूची शुरू होने वाली है एवं 9 फरवरी 2021 से 28 फरवरी 2021 तक जनगणना होगी। इसलिए हम सभी आदिवासी भाइयों से विनम्रता पूर्वक निवेदन करते हैं आर-पार की लड़ाई के लिए भारी से भारी संख्या में दिल्ली के जंतर मंतर पर उपस्थित होकर अपने अस्तित्व, आस्था एवं पहचान को बनाए रखने के लिए आगे आएं। समिति का कहना है कि यदि जो व्यक्ति किसी कारणवश दिल्ली नहीं पहुंच पा रहे हों तो वे अपने राज्य के राजभवन के समक्ष धरना-प्रदर्शन में जरूर शामिल हों। ‘राष्ट्रीय आदिवासी-इंडीजीनस धर्म समन्वय समिति, भारत, द्वारा संपूर्ण भारत देश के सभी ट्राइल समुदाय को कोआर्डीनेट किया जा रहा है।
सभी राज्यों में बैठक, सभा एवं सेमिनार लगातार किया जा रहा है। देश के सभी समाजिक संगठनों, समाजिक अगुवाओं, लेखक-लेखिकाओं, छात्र-छात्राओं, बुद्धिजीवी वर्ग सहित राज्यस्तरीय तथा राष्ट्रीय नेताओं को भी बुलाया जा रहा है। 18 फरवरी 2020 को एक ही दिन एक ही समय में दिल्ली के जंतर मंतर के साथ-साथ सभी राज्यों के राजभवन के समक्ष धरना-प्रदर्शन किया जाएगा। यह मांग तब तक जारी रहेगी, जब तक हमें जनगणना प्रपत्र में ट्राइबल्स के अलग धर्म कॉलम नहीं मिल जाता है। बता दें कि ट्राइबल्स धर्म कोड की मांग को लेकर 2014 से ही देश के राज्यों में अपने अपने तरीके से आंदोलन और सेमिनार शरू किए गए, जो लगातार जारी है। अरविंद उरांव बताते हैं कि लगभग 800 प्रकार के आदिवासी/ जनजातियों का लगभग 83 प्रकार के धर्म हैं।
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झारखंड की रहने वाली सुनीता उरांव बताती हैं कि मैं सरना धर्म को मानती हूँ, हम आदिवासी प्रकृति को पूजते हैं, हम आदिवासियों की यह मान्यता है कि प्रकृति है, तभी जीवन है, और हम आदिवासी सरना धर्म को मानते हैं। आदिवासियों के पास अपना सरना धर्म होते हुए भी सरना धर्म को पहचान सरकार से नहीं मिली है। जनगणना में भी सरना कोड नहीं होने के कारण हमें दूसरे धर्म के कॉलम में भरने को मजबूर किया जाता है, जिसके कारण दिन प्रतिदिन सरना आदिवासियों की जनसंख्या का विलय होता जा रहा है।
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वे कहती हैं कि आशंका है कि एक दिन सरना लोगों का अस्तित्व ही खत्म हो जायेगा, क्योंकि सरकार ने हम सरना आदिवासियों को सरना लिखने तक का विकल्प दिया ही नहीं हैं। आज भी झारखण्ड के 90 लाख के करीब सरना आदिवासियों के पास अपने धर्म को सरकारी दस्तावेजों में लिखने की कोई जगह नहीं मिली है। 2021 में देश की अगली जनगणना होगी, हमारे हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन भाई-बहनों के पास अपना धर्म कोड होगा पर हमारे पास अपना धर्म कोड नहीं है।
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