- मुरलीधर शुक्ला
रलसीवानः साम्प्रदायिक सौहार्द की प्रतिमूर्त्ति मौलाना मजहरूल हक, महात्मा गाँधी के चम्पारण-महायज्ञ के प्रमुख पुरोहित ब्रजकिशोर प्रसाद और भारतीय गणतंत्र के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉ राजेन्द्र प्रसाद की धरती सीवान के सपूतों ने भी स्वयं की बलि देकर परतंत्रता की बेड़ी में जकड़ी माता भारती को बंधनमुक्त कराने में अहम भूमिका अदा की थी। पुस्तक ‘अगस्त-क्रांति ‘ में इतिहासकार श्री गर्ग ने लिखा है, सन् 1942 की अगस्त क्रांति में इस क्षेत्र में हुए शहीदों की तायदाद सर्वाधिक थी। सरकारी दस्तावेज बताते हैं कि इस दौर में यहाँ कोई 500 लोग दंडित तो 20 गोलियाँ के शिकार हुए थे।
स्वतंत्रता संग्राम के लगभग अंतिम चरण में जिन सपूतों ने यहाँ शहादत पाई थी, उनमें बुढ़ापे की दहलीज पर खड़े गंगा प्रसाद राय भी हैं जिनका तेवर जगदीशपुर के बाबू कुंवर सिंह सरीखे रहा। महात्मा गाँधी के आह्वान पर जब पूरे देश में नमक सत्याग्रह तथा चौकीदारी टैक्स का विरोध भारी ऊफान पर था गंगा प्रसाद राय की अगुवाई में बड़हुलिया के गंवई भी ‘करो या मरो’ के तेवर में कतारबंद थे जिसकी जानकारी सर्कल मेम्बर पंच ने सीवान अनुमण्डल पदाधिकारी तथा थाना प्रभारी, दरौली को दी। निपट गंवई के गुमान को प्रशासन ने एक खुली चुनौती माना और विरोध के तेवर को किसी प्रकार दबा देने का मन बना लिया।
सीवान जिले के आन्दर प्रखण्ड का ग्राम बड़हुलिया राजेन्द्र भूमि जीरादेई से महज दो मील की दूरी पर है। इसी गाँव के एक सामान्य किसान रामभरोस राय के पुत्र गंगा प्रसाद राय का जन्म सन् 1874 में हुआ था। शहीद गंगा प्रसाद राय की विधिवत् कोई शिक्षा-दीक्षा तो नहीं हुई लेकिन देशप्रेम का ज्वार उनके अन्दर जोरदार था। आजादी और गुलामी का जोड़-घटाव के गणित की समझ उनमें अच्छी थी। यही कारण था कि ‘ गाँधी की आँधी ‘ से उनका गाँव भी अछूता नहीं था। किसानी के साथ-साथ लोगों का चौपाल लगा देशधर्म का पाठ पढ़ना भी आदत में शुमार थी। वह सन् 1930 का 28 दिसम्बर था।
दरौली थाने के डुमरहर गाँव से लोगों को पीटते गोरी पलटन के घुडसवारो का काफिला जब बड़हुलिया पहुँचा लोगों में खलबली मच गई। आते ही उनलोगों ने ग्रामीणों की पिटाई शुरू कर दी। उस समय गंगा बाबू अपने भाई के साथ खेत में पटवनी कर रहे थे। पानी पटाना छोड़ वे गाँव में आए। ग्रामीणों के साथ गोरी पलटन का अत्याचार देख उनका खून खौल उठा। अपनी लाठी से उन्होंने घुडसवारो को पीटना शुरू कर दिया। साथ में गंवई भी हो गए । ग्रामीणों से घिरी पलटन ने गोली दागनी शुरू कर दी जिसमें गंगा प्रसाद राय की घटनास्थल पर ही मृत्यु हो ग ई और अक्षयवर गोंड , प्रभुलाल दूबे,सूरज राय तथा सुखराम गोंड गंभीर रूप से घायल हुए थे।
साम्प्रदायिक सौहार्द की प्रतिमूर्त्ति मौलाना मजहरूल हक, महात्मा गाँधी के चम्पारण-महायज्ञ के प्रमुख पुरोहित ब्रजकिशोर प्रसाद और भारतीय गणतंत्र के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉ राजेन्द्र प्रसाद की धरती सीवान के सपूतों ने भी स्वयं की बलि देकर परतंत्रता की बेड़ी में जकड़ी माता भारती को बंधनमुक्त कराने में अहम् भूमिका अदा की थी। पुस्तक ‘अगस्त-क्रांति ‘ में इतिहासकार श्री गर्ग ने लिखा है, सन् 1942 की अगस्त क्रांति में इस क्षेत्र में हुए शहीदों की तायदाद सर्वाधिक थी। सरकारी दस्तावेज बताते हैं कि इस दौर में यहाँ कोई 500 लोग दंडित तो 20 गोलियाँ के शिकार हुए थे।
स्वतंत्रता संग्राम के लगभग अंतिम चरण में जिन सपूतों ने यहाँ शहादत पाई थी, उनमें बूढ़ापे की दहलीज पर खड़े गंगा प्रसाद राय भी हैं जिनका तेवर जगदीशपुर के बाबू कुंवर सिंह सरीखे रहा। महात्मा गाँधी के आह्वान पर जब पूरे देश में नमक सत्याग्रह तथा चौकीदारी टैक्स का विरोध भारी ऊफान पर था गंगा प्रसाद राय की अगुवाई में बड़हुलिया के गंवई भी ‘करो या मरो’ के तेवर में कतारबंद थे जिसकी जानकारी सर्कल मेम्बर पंच ने सीवान अनुमण्डल पदाधिकारी तथा थाना प्रभारी, दरौली को दी। निपट गंवई के गुमान को प्रशासन ने एक खुली चुनौती माना और विरोध के तेवर को किसी प्रकार दबा देने का मन बना लिया। सीवान जिले के आन्दर प्रखण्ड का ग्राम बड़हुलिया राजेन्द्र भूमि जीरादेई से महज दो मील की दूरी पर है। इसी गाँव के एक सामान्य किसान रामभरोस राय के पुत्र गंगा प्रसाद राय का जन्म सन् 1874 में हुआ था। शहीद गंगा प्रसाद राय की विधिवत् कोई शिक्षा-दीक्षा तो नहीं हुई लेकिन देशप्रेम का ज्वार उनके अन्दर जोरदार था। आजादी और गुलामी का जोड़-घटाव के गणित की समझ उनमें अच्छी थी। यही कारण था कि ‘ गाँधी की आँधी ‘ से उनका गाँव भी अछूता नहीं था। किसानी के साथ-साथ लोगों का चौपाल लगा देशधर्म का पाठ पढ़ना भी आदत में शुमार थी।
सन् 1930 का 28 दिसम्बर था। दरौली थाने के डुमरहर गाँव से लोगों को पीटते गोरी पलटन के घुडसवारो का काफिला जब बड़हुलिया पहुँचा लोगों में खलबली मच गई। आते ही उनलोगों ने ग्रामीणों की पिटाई शुरू कर दी। उस समय गंगा बाबू अपने भाई के साथ खेत में पटवनी कर रहे थे। पानी पटाना छोड़ वे गाँव में आए। ग्रामीणों के साथ गोरी पलटन का अत्याचार देख उनका खून खौल उठा। अपनी लाठी से उन्होंने घुडसवारो को पीटना शुरू कर दिया। साथ में गंवई भी हो गए । ग्रामीणों से घिरी पलटन ने गोली दागनी शुरू कर दी जिसमें गंगा प्रसाद राय की घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई और अक्षयवर गोंड , प्रभुलाल दूबे,सूरज राय तथा सुखराम गोंड गंभीर रूप से घायल हुए थे।