सुषमा स्वराज 1977 में हरियाणा सरकार में मंत्री पद का कामकाज संभालने से पहले जेपी (जयप्रकाश नारायण) का आशीर्वाद लेने पटना आई थीं। उस प्रकरण को आज (14 फरवरी) उनके जन्मदिन पर वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर ने याद किया है।
- सुरेंद्र किशोर
पटना रेलवे जंक्शन स्टेशन पर सुषमा स्वराज ने मुझे देखते ही कहा था कि ‘‘बड़ौदा डायनामाइट केस के एफ.आई.आर. में कई जगह आपका नाम आया है।’’ याद रहे कि आपातकाल में उस केस के सिलसिले में मुझे भी सी.बी.आई. बेचैनी से खोज रही थी। पर, मैं फरार हो गया था। मैं मेघालय में अपने रिश्तेदार के यहां छिपकर रहता था। पकड़ा नहीं जा सका।
पटना जंक्शन पर ही सुषमा जी से मेरी पहली मुलाकात थी। हालांकि उससे पहले मुजफ्फरपुर में जार्ज फर्नांडीस के चुनाव प्रचार में उनके ओजस्वी व प्रभावशाली भाषण मैंने सुने थे। उनके पति स्वराज कौशल मुझे जार्ज फर्नांडीस के जरिए पहले से जानते थे। वे भी समाजवादी आंदोलन में जार्ज के साथ थे।
बड़ौदा डायनामाइट केस के, जिसके जार्ज फर्नांडीस मुख्य आरोपित थे, स्वराज दंपत्ति वकील थे। उन दिनों डायनामाइट केस के आरोपी का वकील बनना भी बहुत साहस की बात थी। हरियाणा में मंत्री बनने के बाद सुषमा जेपी का आशीर्वाद लेने पटना आई थीं। तब तक मैं दैनिक ‘आज’ का संवाददाता बन गया था। स्वराज कौशल ने मुझे दिल्ली से फोन किया कि ‘‘आप जेपी से हमारी मुलाकात तय करा दीजिए। मंत्री पद का कार्य भार संभालने से पहले सुषमा जेपी का आशीर्वाद लेना चाहती हैं।’’
मैंने जेपी के यहां से समय ले लिया। स्वराज दंपत्ति नियत समय पर ट्रेन से पटना पहुंचे। हम तीन जन उन्हें रिसिव करने के लिए स्टेशन पर गए थे। छायाकार कृष्ण मुरारी किशन, मेरे मित्र व अंग्रेजी दैनिक ‘सर्चलाइट’ के संवाददाता लव कुमार मिश्र और मैं। हमलोग जेपी के आवास कदम कुआं पहुंचे। वहां प्रारंभिक दिक्कत के बाद दंपत्ति की जेपी से मुलाकात हो गई।
दरअसल जेपी के निजी सचिव सच्चिदानंद, जो जेपी के स्वास्थ्य का बहुत ध्यान रखते थे, इस जिद पर अड़े थे कि जेपी से आशीर्वाद लेने सिर्फ सुषमा ऊपर-यानी चरखा समिति की पहली मंजिल पर जेपी के पास जाएंगी। मुझे उन्हें इस बात पर सच्चिदा बाबू को राजी करने में काफी समय लग गया कि कम से कम उनके साथ स्वराज कौशल को भी ऊपर जाने दीजिए। हम भले न जाएं। खैर,यह तो यूं ही प्रसंगवश कह दिया।
सुषमा स्वराज उत्कृष्ट वक्ता व समझदार नेत्री थीं। गत साल जब उनका असमय निधन हुआ तो उनके अनेक राजनीतिक विरोधियों को भी दुख हुआ। वह केंद्रीय मंत्री रह चुकी थीं। लोकसभा में प्रतिपक्ष की नेता थीं। नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय राजनीतिक पटल पर आ जाने से पहले तक सुषमा जी को प्रधानमंत्री मटेरियल माना जाता था।
हरियाणा सरकार में भी उनकी तेजस्विता-योग्यता देखते हुए उन्हें आठ विभाग मिले थे। बाद में पता चला था कि ओम प्रकाश चैटाला के अलग ढंग के व्यवहार को देखते हुए सुषमा जी का राज्य की राजनीति से जल्द ही मन उचट गया। वैसे भी हरियाणा सुषमा जी के लिए छोटी जगह थी।
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