- विशद कुमार
सेल्फ क्वॉरेंटाइन में है बोकारो का एक आदिवासी गांव ! यह जान-सुन कर लोग अचरज या अनुशासन की बात भले करने लगें, पर इसके पीछे कड़वा सच छिपा है। लोगों द्वारा गांव में प्रवेश और निकास के एक रास्ते को छोड़कर सारे रास्ते बंद कर दिए गए हैं। गांव में बाहरी व अनजान लोगों का प्रवेश वर्जित है। अगर कोई गांव में जाना चाहता है तो पहले गांव की कमिटी के लोगों को जाने का कारण बताना पड़ता है। फिर उसे प्रवेश द्वार पर हाथ-पैर धोना पड़ता है। हाथ में सेनेटाइजर लेना पड़ता है, तब अंदर जाने दिया जाता है। इन तमाम ऐहतिहात पर नजर रखने के लिए 90 लोगों की एक टीम गठित की गई है। बच्चा हो या बड़ा बिना मास्क लगाए बाहर नहीं जाता है। बाहर वही लोग जाते हैं, जिन्हें दुकान वगैरह से कुछ लेना होता है। पूरा गांव लॉकडाउन का पूरा पालन कर रहा है।
उल्लेखनीय है कि 70 के दशक में जब बोकारो इस्पात संयंत्र का निर्माण हो रहा था, तब देश के कई राज्यों के लोग रोजगार की तलाश में बोकारो आए। उसी समय तत्कालीन बिहार (अब झारखंड) के चाईबासा, गुमला एवं रांची के आस-पास के क्षेत्रों से हो जनजातीय समुदाय सहित मुंडा, उरांव, खड़िया, असुर समुदाय के दर्जनों लोग भी रोजगार की तलाश में यहां आए। चूंकि आदिवासी समुदाय को जंगल और अपनी संस्कृति से विशेष लगाव होता है, वे अपनी संस्कृति व अपने समाज में बाहरी हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं करते। अत: ये लोग अपना आशियाना गरगा नदी के किनारे बसे जंगल में बनाया।
धीरे-धीरे इनके इलाके के अन्य लोग भी आते गए और बसते गए। जयपाल नगर का नामकरण जयपाल सिंह मुंडा के नाम पर किया गया, वहीं बिरसा बासा को बिरसा मुंडा के नाम पर तथा गुमला नगर को गुमला जिला से आए लोगों ने अपने क्षेत्र के नाम पर रखा। तीन पीढ़ियों के गवाह इन गांवों के लोगों के पास वोटर कार्ड व आधार कार्ड के अलावा सरकारी सुविधाओं का कोई दूसरा दस्तावेज नहीं है। जबकि आधार कार्ड के माध्यम से इनका पूरा दस्तावेज सरकार को रखने की छूट और वोट देकर सरकार बनाने की इनकी सहभागिता इनके पास जरूर है।
इन्हीं आदिवासी गांवों में एक है जयपाल नगर। 100 घरों वाले जयपाल नगर में लगभग 550 लोग बसते हैं, जिनमें 250 के आसपास वोटर हैं। बोकारो जिला मुख्यालय से मात्र 5 कि.मी. दूर इस गांव में बसते हैं आदिवासी समुदाय सहित दलित व ओबीसी के लोग। आदिवासी समुदाय के 80 फीसदी हो जनजातियों सहित मुंडा एवं संताल लोगों के बीच 5 से 7 फीसदी दलित व ओबीसी लोग रहते हैं यहां। इनके पास वोटर कार्ड व आधार कार्ड के अलावा सरकारी सुविधाओं का कोई दूसरा दस्तावेज नहीं है। इनके पास न तो राशन कार्ड है, न नरेगा कार्ड है, न आयुष्मान भारत योजना कार्ड है, न उज्ज्वला योजना के तहत गैस कनेक्शन है, न तो यहां बिजली है, न ही स्वच्छ भारत अभियान के तहत यहां शौचालय है और न ही पेयजल की कोई सुविधा इनके खाते में है। दो चापाकल हैं, जिनमें एक खराब रहता है। पूरे गांव के लोग इसी चापाकल से पीने का पानी लेते हैं। नहाने व कपड़ा वगैरह साफ करने के लिए गरगा नदी का सहारा है। विधवा पेंशन व वृद्धा पेंशन के भी हकदार ये नहीं हैं।
शिक्षा का अधिकार भी इनके बच्चों के नसीब में नहीं है। क्योंकि ये सरकारी स्कूल से भी वंचित हैं। इसी गांव के समाजसेवी व पत्रकार योगो पुर्ती द्वारा ‘आदिवासी सामाजिक संस्था’ आसस द्वारा कुछ युवाओं के सहयोग से गांवों के बच्चों को शिक्षित करने का काम किया जाता है। रोजगार के नाम पर यहां के लोग दैनिक मजदूरी पर ही आश्रित हैं।
ऐसे में कोरोना के संकट से मुक्ति के लिए किया गया लॉकडाउन में इन दिहाड़ी मजदूरों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। इनके व इनके परिवार वालों के लिए पेट भरने का संकट इन्हें काफी परेशान किए हुए है, क्योंकि इन्हें सरकारी सुविधाओं का कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में इंडियन आयल डीलर्स, बोकारो के कुमार सर्विस स्टेशन के प्रबंधक व इंडियन आयल डीलर्स बोकारो के समन्वयक कुमार अमरदीप एवं इंडियन आयल कारपोरेशन लि. बोकारो सेल एरिया के प्रबंधक एसएन रमन को जब इनकी परेशानियों की जानकारी हुई तो उन्होंने जयपाल नगर के लोगों को लॉकडाउन तक दो समय के भोजन की व्यवस्था दी है।
कुमार अमरदीप ने एक सवाल के जवाब में बताया कि वैसे तो अभी 14 मार्च तक लॉकडाउन की घोषणा है, अगर लॉकडाउन को आगे बढ़ाया जाता है तो हम इस राहत कार्य को भी आगे बढ़ाएंगे। हम इन सबको लॉकडाउन तक भोजन उपलब्ध कराएंगे। इस काम के लिए हमने गांव के ही समाजसेवी व पत्रकार योगो पुर्ती को इसकी देखरेख की जिम्मेवारी सौंपी है। इस बाबत योगो पुर्ती बताते हैं कि जबसे लॉकडाउन हुआ है, हम काफी चिंतित थे कि गांव के गरीब, रोज कमाने वाले लोगों के खाने की व्यवस्था कैसे होगी? लेकिन कुमार सर्विस स्टेशन के प्रबंधक कुमार अमरदीप ने हमें काफी राहत दी है।
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