- गोपेश्वर सिंह
सोशल मीडिया पर अखबारों की यह खबर घूम रही है कि बिहार के पूर्व डीजीपी अभयानंद भूमिहार जाति के 100 निर्धन बच्चों को मुफ्त शिक्षा देंगे। ‘सुपर 30’ की तर्ज़ पर। लेकिन सुपर 30 में जाति बंधन नहीं है। यह बुनियादी फर्क होगा दोनों संस्थानों में। चकित करने वाली बात यह फर्क ही है। अभयानंद भी भूमिहार जाति से ही आते हैं। सोशल मीडिया पर घूम रहीं ऐसी खबरें चकित करती हैं!
सुपर 30 के संचालक आनंद कुमार बिहार की अति पिछड़ी जाति से आते हैं। उस जाति की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक हैसियत न के बराबर है। फिर भी उन्होंने अपने संस्थान में जाति का बंधन नहीं रखा। अभयानंद बिहार की सबसे अधिक सम्पन, शिक्षित और राजनीतिक रूप से जागरूक भूमिहार जाति से हैं। फिर भी अपनी समाज-सेवा को उन्होंने अपनी जाति तक ही सीमित कर दिया। इसमें चकित करने वाली बात यही है। जातिगत सीमा न होती तो उनके इस क़दम की मैं प्रशंसा करता।
बच्चन ने अपनी आत्मकथा में इलाहाबाद की कायस्थ पाठशाला की चर्चा की है, जहाँ उनकी प्रारंभिक शिक्षा हुई। बनारस का उदय प्रताप कॉलेज सिर्फ क्षत्रियो के लिए खोल गया था। बिहार में भूमिहारों ने भी कई कॉलेज खोले। आजादी के बाद रामलखन सिंह यादव जब नेता के रूप में उभरे तो यादव जाति के लोगों ने भी कई कालेज खोले।
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कहने का मतलब यह कि आजादी के पूर्व और उसके कुछ बाद तक वैश्यों समेत लगभग सभी साधन सम्पन्न जातियों ने शिक्षण-संस्थान खोले। तब शायद जाति के नाम पर ही समाज सेवा के लिए लोगों की उदारता दिखती थी! लेकिन अब कोई यह काम करेगा तो वह प्रशंसा का पात्र नहीं होगा। इसलिए अभयानंद के प्रयास की मैं आलोचना कर रहा हूँ।
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द्रोणाचार्य के नेतृत्व में चलनेवाले कुरु राजकुमारों के गुरुकुल में प्रतिभाशाली किंतु अकुलीन कर्ण का दाखिला न हो पाया। कर्ण के साथ हुए भेदभाव को ग़लत मानते हुए भूमिहार जाति से आनेवाले दिनकर ने ‘रश्मिरथी’ (1948) नामक खण्डकाव्य काव्य लिखा जो हिंदी का सर्वाधिक लोकप्रिय काव्य- ग्रंथ है। वह इसलिए लोकप्रिय है कि उसमें जाति-प्रथा की कठोर आलोचना है- ‘शर्माते हैं नहीं जगत में जाति पूछने वाले।’
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अभयानंद जी, सुना है पटना विश्वविद्यालय से फिजिक्स में एमएससी हैं, प्रतिभशाली हैं। आईपीएस होने पर भी उनमें समाज-सेवा का जज़्बा है। यह भी सुना है कि नौकरी में रहते हुए उन्होंने सुपर 30 में अपनी सेवाएँ दी हैं। वही आदमी अपनी प्रतिभा और सेवा सिर्फ़ अपनी जाति तक सीमित कर दे तो हमारा क्या, किसी का भी चकित होना स्वाभाविक है।
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हमारे संविधान का स्वप्न सेक्युलर और समता मूलक समाज बनाने का है। इस तरह के क़दम से भारतीय संविधान द्वारा देखे गए स्वप्न पर ग्रहण लगता है। धीरे-धीरे ही सही हमारा समाज जाति से ऊपर उठने की दिशा में अग्रसर है। इसलिए अभयानंद से आग्रह है कि अपने संस्थान का द्वार सभी जाति और धर्मों के प्रतिभशाली ‘कणों’ के लिए खोलकर अपार यश के भागी बनें!
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