‘हिन्दोस्थान’ अखबार में हिन्दी, उर्दू और अंग्रेजी खबरें एक साथ

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‘हिन्दोस्थान’ अखबार में हिन्दी, उर्दू और अंग्रेजी खबरें साथ छपती थीं। यह अभिनव प्रयोग था। हिन्दी से शुरू होकर बाद में यह बदलाव देखने को मिला।
‘हिन्दोस्थान’ अखबार में हिन्दी, उर्दू और अंग्रेजी खबरें साथ छपती थीं। यह अभिनव प्रयोग था। हिन्दी से शुरू होकर बाद में यह बदलाव देखने को मिला।

‘हिन्दोस्थान’ अखबार में हिन्दी, उर्दू और अंग्रेजी खबरें साथ छपती थीं। यह अभिनव प्रयोग था। हिन्दी से शुरू होकर बाद में यह बदलाव देखने को मिला। इस अखबार के बारे में विस्तार से बता रहे हैं प्रोफेसर कृपाशंकर चौबे

उत्तर उन्नीसवीं शताब्दी के प्रमुख समाचार पत्र ‘हिन्दोस्थान’ के आरंभिक अंक मुझे डॉ. श्रीरमण मिश्र के सौजन्य से पढ़ने को मिले। इस अखबार के हिंदी व अंग्रेजी संस्करण की पांच फाइलें स्वामी सहजानंद सरस्वती संग्रहालय में सुरक्षित हैं। प्रतापगढ़ के राजा रामपाल सिंह ने लंदन से त्रैमासिक ‘हिन्दोस्थान’ का प्रकाशन अगस्त 1883 में किया था।

आरंभ में ‘हिन्दोस्थान’ का प्रकाशन अंग्रेजी व हिन्दी में हुआ। बाद में एक कालम में उर्दू, दूसरे में अंग्रेजी और तीसरे में हिन्दी में सामग्री प्रस्तुत की जाने लगी। 1884 में वह साप्ताहिक हो गया। 1885 में ‘हिन्दोस्थान’ कालाकांकर (प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश) स्थानांतरित हो गया। दैनिक ‘हिन्दोस्थान’ एक नवम्बर 1885 को कालाकांकर से राजा रामपाल सिंह के संरक्षण में निकला। इस अखबार का ध्येयवाक्य प्रसिद्ध अंग्रेजी कविता की दो पंक्तियों को बनाया गया थाः

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Hear him, ye senates! hear this truth sublime,

He who allows oppression shares the crime!

अर्थात् ‘‘सभासदो! सुनो, वह क्या कहता है? इस परम सत्य को सुनो। वह भी अपराधी है जो होने देता है अत्याचार।’’ कविता की इन दो पंक्तियों के ऊपर संस्कृत भाषा में ‘हिन्दोस्थान’ समाचार पत्र का सिद्धान्त वाक्य सूक्ति के रूप में छपता था- ‘सत्यश्रमाभ्यांसकलार्थ सिद्धिः’

‘हिन्दोस्थान’ ने हिन्दी तथा भारत के पारम्परिक सांस्कृतिक मूल्यों की सुरक्षा एक जागरूक प्रहरी की भांति की। ‘हिन्दोस्थान’ की भाषा (हिंदी) का एक उदाहरण देखिए-“हिन्दोस्थान के निवासियों के लिए दुर्भिक्ष, सूखा, अग्निकोप, अनावृष्टि और बूड़ा अत्यन्त ही हानिकारक आपत्तियाँ हैं, दुर्भिक्ष और सूखा कितनों से भीख मँगाता है और कितनों को गृहहीन करके जीविका के लिये देश परदेश पर्यटन कराता है, ग्रीष्म ऋतु में अग्नि प्रकोप से कितने घर जल जाते हैं, और गृह की कितनी मूल्यवान सामग्रियां नष्ट हो जाती हैं। इसी प्रकार से बूड़ा भी यहाँ वालों के लिए बहुत ही क्षतिदायक होता है, मध्य भारत वर्ष और मध्यप्रदेश के समान पहाड़ी और जंगली भागों में जबकि पहाड़ी नदियां जल प्रवाह से उमड़ आती हैं तो उनके किनारे पर के ग्रामीणों की दशा करुणोत्पादक होती है, सारा गांव जलमय दिखाई देता है और झुण्ड के झुण्ड मनुष्य अपने-अपने घरों को छोड़कर उन स्थानों में चले जाते हैं जहाँ पर बूड़ा नहीं आता होता है।”

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