- मिथिलेश कुमार सिंह
नयी दिल्ली। वर्ष 2019 में होने वाला लोकसभा चुनाव सबसे ज्यादा भाजपा के लिए भारी पड़ रहा है। उसके तमाम टोटके फेल होते नजर आ रहे हैं। हिन्दुत्व को मुद्दा बनाने की उसकी कोशिश पर तीन राज्यों के चुनाव परिणामों ने पानी फेर दिया है। राम मंदिर का ब्रह्मास्त्र उसके तरकश में था, लेकिन सहयोगी दलों ने उसके इस्तेमाल पर बंदिश लगा दी है। राम मंदिर बनाने की भाजपा के भीतर और उससे सहानुभूति रखने वाले साधु-संतों के साथ कट्टर हिन्दूवादी संगठनों की मांग और दूसरी तरफ सहयोगी दल जदयू और लोजपा के तल्ख तेवर को देखते हुए किसी को भी भाजपा की सांप-छछुंदर की स्थिति समझने में कोई मुश्किल नहीं होगी।
भाजपा के सांसद लगातार केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर दबाव बना रहे हैं कि मंदिर मुद्दे पर कोर्ट के फैसले का इंतजार किये बगैर सरकार को अध्यादेश लाना चाहिए। भाजपा से अमूमन सहानुभूति रखने वाले शिवसेना के उद्धव ठाकरे लगातार इसके लिए दौरे कर रहे हैं। संतों का समागम अपनी जगह है। दूसरी ओर बिहार में भाजपा के दमदार सहयोगी जनता दल यूनाइटेड के नेता नीतीश कुमार और लोक जनशक्ति पार्टी के नेता द्वय राम विलास पासवान व उनके बेटे चिराग पासवान साफ-साफ धमाकाने के स्वर में बोल रहे कि राम मंदिर का मुद्दा कोर्ट के फैसले से या आम सहमति से सुलझाना चाहिए। उनकी तल्खी इसी से साफ हो जाती है कि लोजपा नेता राम विलास पासवान ने स्पष्ट कह दिया कि मंदिर का मुद्दा भाजपा का हो सकता है, लेकिन एनडीए का नहीं।
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भाजपा की हालत सांप-छछुंदर की हो गयी है। इनकी सुने या उनकी माने। भाजपा के पास अपनी उपलब्धियां गिनाने के लिए जो मुद्दे हैं, उससे जनता संतुष्ट नहीं है। यह हालिया तीन राज्यों के विधानसभा के चुनाव परिणाम से साफ हो गया है। सरकार के सुधार और विकास के कदमों से लोग खुद को परेशान पा रहे हैं। कई कारणों से भाजपा के परंपरागत वोटों में छीजन की स्थिति पैदा हो गयी है। न व्यवसायी वर्ग खुश है और न सवर्ण। व्यवसायी जीएसटी से परेशान हैं तो सवर्ण एससी-एसटी ऐक्ट पर सरकार के रुख से। किसानों के तल्ख तेवर तो दिल्ली में दिख चुके हैं। हिन्दुत्व जगाने का भाजपा का नुस्खा पहले ही फेल हो चुका है।
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उधर विपक्ष लगातार गोलबंद हो रहा है। बिहार में राजद की अगुवाई में गोलबंदी हो रही है तो उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा के गठबंधन की कोशिशें चल रही हैं। ममता बनर्जी और दक्षिण भारत के सूबे पहले से ही भाजपा से खार खाये हुए हैं। कुल मिला कर भाजपा इस हाल में पहुंच चुकी है कि वह अपने नुस्खे आजमाने में भी सौ बार सोचेगी। मसलन उसका ब्रह्मास्त्र धरा का धरा रह जाने की उम्मीद है। सुप्रीम कोर्ट राम मंदिर मुद्दे पर सुनवाई के लिए 4 जनवरी से तैयार है, लेकिन उसका फलाफल अगर मंदिर बनाने के रूप में आ भी गया (जो संभव नहीं दिखता), तब भी भाजपा इसका श्रेय नहीं ले पायेगी।
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