पुण्यतिथि पर विशेष
- नवीन शर्मा
आरडी बर्मन उन रेयर बेटों में शामिल हैं, जो महान पिता की कामयाबी के बरगद तले रहने के बाद भी संगीतकार के रूप में अपनी स्वतंत्र पहचान बनाने में कामयाब रहे। सचिन देव बर्मन जहां परंपरागत भारतीय रागों व संगीत पर आधारित धुनों की रचना करते थे, वहीं उनका प्रतिभावान पुत्र पंचम पश्चिमी और हिंदुस्तानी संगीत में तालमेल बैठा कर एक नई तरह का संगीत लेकर आया। उनका संगीत नई पीढी को बहुत पसंद आया। एसडी बर्मन नामी संगीतकार थे और उनके घर संगीत जगत के बड़े-बड़े दिग्गजों का आना-जाना लगा रहता था। उनकी महफिलें जमती थीं और छोटे राहुल भी उसमें गुपचुप हिस्सा लिया करते थे। संगीत का जादू बचपन से छा गया था।
अशोक कुमार‘ ने दिया पंचम नाम
अशोक कुमार ने एक बार बालक राहुल से भी सुर लगाने को कहा था। राहुल सुर लगाते समय सा-रे-ग-म से लेकर जब ‘प’ पर आते, तो अंटक जाया करते थे। इसी बात को लेकर हंसी-मजाक में उनका नामकरण हो गया- पंचम। पंचम बढ़िया माउथआर्गन बजाते थे। लक्ष्मीकांत प्यारेलाल राजश्री प्रोडक्शन की ‘दोस्ती’ फिल्म में संगीत दे रहे थे। उन्हें माउथआर्गन बजाने वाले की जरूरत थी। वे चाहते थे कि पंचम यह काम करें, लेकिन उनसे कैसे कहें। वे एक प्रसिद्ध संगीतकार के बेटे थे। जब यह बात पंचम को पता चली तो वे फौरन राजी हो गए।
उनकी पहली फिल्म (संगीतकार के रूप में) गुरुदत्त की फिल्म ‘गौरी’ थी। दो गाने रिकॉर्ड हुए, लेकिन फिल्म अधूरी रह गयी। महमूद से पंचम की अच्छी दोस्ती थी। महमूद ने पंचम से वादा किया था कि वे स्वतंत्र संगीतकार के रूप में उन्हें जरूर अवसर देंगे। ‘छोटे नवाब’ के जरिये महमूद ने अपना वादा निभाया।
संगीत विशेषज्ञ पंकज राग ने अपनी पुस्तक धुनों की यात्रा में लिखा है कि अपने पिता की कई फिल्मों की धुनें उन्होंने रची थी। परदे पर नाम तो सचिन-दा का गया था। नवकेतन की फिल्म ‘फंटूश’ का मशहूर गीत ‘आँखों में क्या जी? रूपहला बादल’ और ‘अरे यार मेरी तुम भी हो गज़ब’ की धुनें पंचम ने कंपोज की थीं। फिल्म सोलवां साल का माउथ ऑर्गन और उसकी धुन पर थिरकता गाना ‘है अपना दिल तो आवारा’ पंचम की कलाकारी का परिणाम था।
जब एसडी ‘आराधना’ का संगीत तैयार कर रहे थे, तब काफी बीमार थे। आरडी ने कुशलता से उनका काम संभाला और इस फिल्म की अधिकतर धुनें उन्होंने ही तैयार की। पंचम को पहली बड़ी सफलता तीसरी मंजिल फिल्म से मिली। आरडी ने सबसे पहले ‘तीसरी मंजिल’ में इलेक्ट्रिक ऑर्गन का प्रयोग कर श्रोताओं को चौंकाया। गीत था- ‘ओ हसीना जुल्फों वाली’। इसके बाद आरडी को बड़ी सफलता मिली ‘अमर प्रेम’ से। ‘चिंगारी कोई भड़के’ और ‘कुछ तो लोग कहेंगे’ जैसे यादगार गीत देकर उन्होंने साबित किया कि वे भी प्रतिभाशाली हैं।
साठ-सत्तर के दशक की लगभग हर हिन्दी फिल्मों में कैबरे डांस हुआ करता था। इसके लिए उस दौर की राहुल देव ने अपने संगीत के जरिये कैबरे को नई पहचान देकर उसे दर्शनीय के साथ श्रवणीय भी बनाया। फिल्म कारवां (1971) का कैबरे गीत ‘पिया तू अब तो आ जा’ (आशा-आरडी) इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। फिल्म जीवन साथी (1972) का गीत ‘आओ ना, गले लगा लो ना’ में उन्होंने आशा की आवाज का मादक व उत्तेजक उपयोग किया है। आशा से कैबरे सांग गवा कर उनकी आवाज का नशीला जादू जगाने में आरडी पूरी तरह कामयाब रहे हैं। चंद और उदाहरण हैं- तेरी-मेरी यारी बड़ी पुरानी (चरित्रहीन/1974)/ आज की रात कोई आने को है… (अनामिका/1973)/ आज की रात, रात भर जागेंगे (जागीर/1984)। इतना ही नहीं आरडी ने लता मंगेशकर जैसी कोमल और मधुर आवाज से भी कैबरे-गीत गवा कर श्रोताओं को चकित किया है। जैसे- शराबी, शराबी मेरा नाम हो गया… (चंदन का पलना)/ हां जी हां, मैंने शराब पी है (सीता और गीता)।
किशोर कुमार और आशा भोसले आरडी के पसंदीदा गायक-गायिका रहे हैं, यह बात सब जानते हैं। उन्होंने मुकेश से कम गवाया, मगर जितना भी गवाया, वह लोकप्रिय हुआ है। सबसे अधिक राज कपूर की फिल्म ‘धरम करम’ (1976) रही। ‘इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल’ गीत की धुन पहली बार सुन कर राजकपूर ने फाइनल कर दी थी। इसकी लोकप्रियता इस बात से पता चलती है कि यह बिनाका गीतमाला के सालाना प्रोग्राम में दूसरी पायदान पर बजा था। ‘कटी पतंग’ (1970) के गीत ‘जिस गली में तेरा घर ना हो बालमा’ पर जाकर ठहरा था। इसी तरह फिल्म ‘फिर कब मिलोगी’ का स्पेनिश धुन पर आधारित यह गीत ‘कहीं करती होगी वो मेरा इंतजार’ ऐसा गीत है, जो आज भी बेहद लोकप्रिय है। इसी तरह का एक और गीत सुहानी चांदनी रातें हमें सोने नहीं देती (मुक्ति/1977) है।
सीढ़ियों पर बैठ कर लता ने गाना गाया
अपनी पहली फिल्म में ‘घर आजा घिर आए बदरा’ गीत आरडी लता मंगेशकर से गवाना चाहते थे और लता इसके लिए राजी हो गईं। आरडी चाहते थे कि लता उनके घर आकर रिहर्सल करें। लता धर्मसंकट में फँस गईं क्योंकि उस समय उनका कुछ कारणों से आरडी के पिता एसडी बर्मन से विवाद चल रहा था। लता उनके घर नहीं जाना चाहती थीं। लता ने आरडी के सामने शर्त रखी कि वे जरूर आएँगी, लेकिन घर के अंदर पैर नहीं रखेंगी। मजबूरन आरडी अपने घर के आगे की सीढि़यों पर हारमोनियम बजाते थे और लता गीत गाती थीं। पूरी रिहर्सल उन्होंने ऐसे ही की।
आरडी को संगीत में प्रयोग करने का बेहद शौक था। नई तकनीक को भी वे बेहद पसंद करते थे। उन्होंने विदेश यात्राएँ कर संगीत संयोजन का अध्ययन किया। सत्ताईस ट्रैक की रिकॉर्डिंग के बारे में जाना। इलेक्ट्रॉनिक वाद्ययंत्रों का प्रयोग किया। कंघी और कई फालतू समझी जाने वाली चीजों का उपयोग उन्होंने अपने संगीत में किया। भारतीय संगीत के साथ पाश्चात्य संगीत का उन्होंने भरपूर उपयोग किया।
आरडी द्वारा संगीतबद्ध की गई फिल्में ‘तीसरी मंजिल’ और ‘यादों की बारात’ ने धूम मचा दी। राजेश खन्ना को सुपर सितारा बनाने में भी आरडी बर्मन का अहम योगदान है। राजेश खन्ना, किशोर कुमार और आरडी बर्मन की तिकड़ी ने 70 के दशक में धूम मचा दी थी। आरडी का संगीत युवा वर्ग को बेहद पसंद आया। उनके संगीत में बेफिक्री, जोश, ऊर्जा और मधुरता है, जिसे युवाओं ने पसंद किया। ‘दम मारो दम’ जैसी धुन उन्होंने उस दौर में बनाकर तहलका मचा दिया था। जब राजेश खन्ना का सितारा अस्त हुआ तो आरडी ने अमिताभ के लिए यादगार धुनें बनाईं। आरडी का संगीत आज का युवा भी सुनता है। समय का उनके संगीत पर कोई असर नहीं हुआ। पुराने गानों को रीमिक्स कर आज पेश किया जाता है, उनमें आरडी द्वारा संगीतबद्ध गीत ही सबसे अधिक होते हैं।
ऐसा नहीं है कि आरडी ने धूम-धड़ाके वाली धुनें ही बनाईं। गीतकार गुलजार के साथ आरडी एक अलग ही संगीतकार के रूप में नजर आते हैं। ‘आँधी’ फिल्म का तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा तो नहीं, इस मोड़ से जाते हैं कुछ सुस्त कदम रस्ते कुछ तेज कदम राहे और तुम आ गए हो तो नूर आ गया है गीत इस जोड़ी की बेहतरीन पेशकश है। इसी तरह किनारा’, ‘परिचय’, ‘खुशबू’ के गीत भी यादगार हैं। ‘इजाजत’, का मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है तो बेमिसाल गीत है। ‘लिबास’ फिल्म के गीत सुन लगता ही नहीं कि ये वही आरडी हैं, जिन्होंने ‘दम मारो दम’ जैसा गाना बनाया है।
पहली पत्नी रीता से तलाक, आशा से विवाह
पंचम की पहली पत्नी रीता को जब तलाक देने की नौबत आई, तो उसने भारी रकम मुआवजे के रूप में मांगी। साथ ही तीन लाख रुपये ब्लैक-मनी के रूप में मांगे। रातोंरात कलकत्ता का 15, क्रास हाउस बेचा गया। ब्लौकमनी देने के लिए पंचम के पास एक लाख रुपये थे। दो लाख आशा भोसले से लिए गए। इस तरह रीता से पीछा छूटा और अगली शादी के दरवाजे खुले।
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आरडी बर्मन के बारे में कहा जाता है कि वे समय से आगे के संगीतकार थे। उन्होंने अपने संगीत में वे प्रयोग कर दिखाए थे, जो आज के संगीतकार कर रहे हैं। आरडी का यह दुर्भाग्य रहा कि उनके समय में फिल्मों में एक्शन हावी हो गया था और संगीत के लिए ज्यादा गुंजाइश नहीं थी। अपने अंतिम समय में उन्होंने ‘1942 ए लव स्टोरी’ में यादगार संगीत देकर यह साबित किया था कि उनकी प्रतिभा का सही दोहन फिल्म जगत नहीं कर पाया। 4 जनवरी 1994 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कहा, लेकिन दुनिया को गुनगुनाने लायक ढेर सारे गीत वे दे गए। उन्हें सनम तेरी कसम (1982), मासूम (1983), 1942 : ए लव स्टोरी (1994) के लिए फिल्म फेअर अवॉर्ड्स भी मिले थे।
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