पटना। देश की राजनीति सिर्फ स्वार्थ की राजनीति तक सीमित रह गई है। देश के लिए कोई भी राजनीतिक दल या नेता आज कोई काम नहीं करता। सभी स्वार्थ साधने में लगे हैं। यह कहना है भारतीय मित्र पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष धनेश्वर महतो का। उन्होंने उदाहरण देकर बताया कि लालू जी जब रेल मंत्री थे, उस अवधि में लालू जी ने सांसदों के वेतन बढ़ाने का एक प्रस्ताव दिया। एक मिनट भी नहीं लगा, पूरी संसद ने सुर में सुर मिला कर उस विधेयक को पास कर दिया। न सत्ताधारी दल ने इसका विरोध किया और न विपक्षी किसी दल ने ही। इसलिए मामला उनके निजी स्वार्थ से जुड़ा था।
इसी तरह भाजपा को लगा कि एससी-एसटी एक्ट सुप्रीम कोर्ट का गलत डिसीजन था। एससी-एसटी के लोग रोड पर उतरे। भाजपा को जब यह लगा कि यह वर्ग अब भाजपा से खफा हो जाएगा तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटते हुए भाजपानीत केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश लाकर उसे बहाल कर दिया।
पुराने कानून को लेकर सवर्ण गुस्से में आ गये तो पांच राज्यों के चुनाव में भाजपा की हार हो गई। भाजपा को एहसास हुआ कि अगड़ी जाति के लोगों (सवर्णों) का वोट भाजपा से खिसक रहा है तो भाजपा ने एक अध्यादेश लाकर 10 प्रतिशत आरक्षण आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को देने का निर्णय ले लिया। उसका स्वागत सभी राजनीतिक दलों ने किया। किसी भी पार्टी ने विरोध नहीं किया, उल्टे उस अध्यादेश को पारित कराने में सबने मत दे दिया। मात्र 3 वोट ही विरोध में गिरे, जबकि 326 पक्ष में आये। ऐसा हर दल ने इसलिए किया, क्योंकि वे सवर्णों की अहमियत समझते थे।
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सच कहें तो गरीब, किसान या आम जनता के हितों से किसी भी दल को कोई लेना-देना नहीं है। वे वही तरीके अपनाते हैं, जिससे उनका हित सधे, भले ही आम जनता को फायदा न मिले। आज तक भारत के इतिहास में कोई भी राजनीतिक दल सवर्ण आरक्षण के प्रस्ताव को इतनी अफरातफरी में कभी पास नहीं करा पाया। कई सालों तक कई बिल लटके रहते हैं। चर्चा होती रहती है, लेकिन वह बिल पास नहीं होता है। इसलिए कि वह किसी राजनीतिक दल के नफा-नुकसान से जुड़ा हुआ नहीं होता है। भारतीय मित्र पार्टी ऐसी राजनीति की घोर निंदा करती है, जिसमें आम आदमी के मुद्दे गौड़ हो जायें और दलीय या निजी स्वार्थ हावी हों।
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