लेखक सआदत हसन मंटोः ठंडा गोश्त जैसी कहानियों के बदनाम लेखक

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पुण्यतिथि पर संस्मरण

  • नवीन शर्मा

सआदत हसन मंटो (11 मई 1912-18 जनवरी 1955) उर्दू लेखक थे, जो अपनी लघु कथाओं- बू, खोल दो, ठंडा गोश्त और चर्चित टोबा टेकसिंह के लिए प्रसिद्ध हुए। कहानीकार होने के साथ-साथ वे फिल्म और रेडियो पटकथा लेखक और पत्रकार भी थे। अपने छोटे से जीवनकाल में उन्होंने 22 लघु कथा संग्रह, एक उपन्यास, रेडियो नाटक के पांच संग्रह, रचनाओं के तीन संग्रह और व्यक्तिगत रेखाचित्र के दो संग्रह प्रकाशित किए। बू, खोल दो, ठंडा गोश्त और चर्चित टोबा टेकसिंह जैसी कहानियों के लेखक सआदत हसन मंटो ने रोज कहानियां लिखीं, ताकि घर चलाने के लिए पैसे का बंदोबस्त हो सके। इन कहानियों के लिए वह काफी बदनाम भी हुए। उन्हें कई बार जेल की यात्राएं करनी पड़ीं। कभी पाकिस्तान तो कभी भारत की जेलों के वे मेहमान बने।

उनकी कहानियों में अश्लीलता के आरोप की वजह से मंटो को छह बार अदालत जाना पड़ा था, जिसमें से तीन बार पाकिस्तान बनने से पहले और बनने के बाद, लेकिन एक बार भी मामला साबित नहीं हो पाया। इनके कुछ कार्यों का दूसरी भाषाओं में भी अनुवाद किया गया है। उनकी कहानी- काली सलवार पर- बनी फिल्म किसे नहीं पसंद आयी होगी।:

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मंटो अपने बारे में कहते हैं कि मेरे जीवन की सबसे बड़ी घटना मेरा जन्म था। मैं पंजाब के एक अज्ञात गांव ‘समराला’ में पैदा हुआ। अगर किसी को मेरी जन्मतिथि में दिलचस्पी हो सकती है तो वह मेरी मां थी, जो अब जीवित नहीं है। दूसरी घटना साल 1931 में हुई, जब मैंने पंजाब यूनिवर्सिटी से दसवीं की परीक्षा लगातार तीन साल फेल होने के बाद पास की। तीसरी घटना वह थी, जब मैंने साल 1939 में शादी की, लेकिन यह घटना दुर्घटना नहीं थी और अब तक नहीं है। और भी बहुत-सी घटनाएं हुईं, लेकिन उनसे मुझे नहीं दूसरों को कष्ट पहुंचा। जैसे मेरा कलम उठाना एक बहुत बड़ी घटना थी, जिससे ‘शिष्ट’ लेखकों को भी दुख हुआ और ‘शिष्ट’ पाठकों को भी।

अभिनेत्री व निर्देशक नंदिता दास ने उर्दू के लेखक सआदत हसन मंटो पर मंटो नाम से बायोपिक बना कर साहसिक काम किया है। मंटो में उर्दू लेखक सआदत हसन मंटो के जीवन और तत्कालीन समाज की नीम के पत्ते जैसी कड़वी सच्चाई को एकदम हूबहू सामने रखने रखने वाली उनकी बेबाक कहानियों को आपस में पिरोया गया है।

मंटो की कहानी देश विभाजन से पहले और उसके बाद की है। मंटो की मुंबई की जिंदगी, और विभाजन के बाद उनका लाहौर चले जाना फिल्म का प्रमुख विषय है। विभाजन ने मंटो की जिंदगी पर भी काफी गहरा असर डाला। कुछ हद तक ऐसा ही जैसे किसी पौधे को उसकी जड़ों से उखाड़ कर फेंक दिया जाए। मंटो को मुंबई शहर से बेतहाशा  मुहब्बत थी। विभाजन के बाद मंटो को मजबूर होकर लाहौर (पाकिस्तान) जाना पड़ा था।

नवाजुद्दीन सिद्दीकी मंटो की भूमिका में जंचे हैं। उन्होंने मंटो की बेबाकी और बेबसी दोनों को बढ़िया तरीके से बयां किया है। मंटो की कुछ कहानियों पर अश्लीलता के आरोप भी लगे थे। इनको लेकर उनपर मुकदमे भी हुए थे। फिल्म में ‘खोल दो’, ‘ठंडा गोश्त’ और ‘टोबा टेक सिंह’ जैसी कहानियों को मंटो की जिंदगी के साथ-साथ दिखाया गया है। मंटो की मनोदशा और उनकी बीवी सफिया (रसिका दुग्गल) के साथ उनके संबंध को भी दिखाया गया है।  अत्यधिक शराब पीने के कारण मंटो के स्वास्थ के गिरते जाने और खराब आर्थिक दशा के बाद भी अपने दोस्त से भी पैसे ना लेने के मंटो के स्वाभिमानी व्यक्तिक्व की खासियत भी दिखाई गई है।

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मंटो एक अलग मिजाज के लेखक थे। जैसे एक मजदूर रोज मजदूरी कर अपना पेट भरता है, ठीक वैसे ही मंटो भी हर रोज कहानियां लिखने की मजदूरी करते थे। वे लगभग हर रोज एक कहानी लिखकर उसे बेचकर उससे  मिले पैसे से घर का खर्च और शराब सिगरेट का खर्च बमुश्किल निकाल पाते थे।

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मंटो इसलिए खास हो जाते हैं क्योकि वे हिंदू मुस्लिम के खांचे में नहीं फंसते हैं। उनकी कहानी ठंडा गोस्त में जहां वहशी पात्र एक सिख है तो दूसरी कहानी खोल दो में सकीना नाम की लड़की से उसी के समुदाय के दरिंदे सामूहिक दुष्कर्म करते हैं। टोबा टेक सिंह तो बेमिसाल कहानी है देश विभाजन के दंश का इतना जबर्दस्त वर्णन किसी और कहानी में बमुश्किल दिखता है। इस कहानी में बिटविन दी साइंस कई बातें छिपी हैं।

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मंटो समाज की त्रासदी को उसके पूरे नंगेपन से उजागर करते हैं, ताकि पाठक पूरी सच्चाई से वाकिफ हो जाएं। मंटो की खुद का जीवन भी त्रासदी ही था। महज 42 साल की उम्र में शराब उनको काल के गाल में धकेल देती है। खैर मंटो इस मामले में खुशकिस्मत कहे जा सकते हैं कि वे  शायद पहले लेखक हैं जिन पर फिल्म बनी है।

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