प्रियंका गांधी की एंट्री से भाजपा में खलबली, मगर महागठबंधन में चुप्पी

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  • राणा अमरेश सिंह

नयी दिल्ली। उत्तर-पूर्वी भारत समेत बिहार में सर्द मौसम के बीच राजनीतिक तूफान ने दस्तक दी है। कांग्रेस ने प्रियंका गांधी को महासचिव बना कर पूर्वी उत्तर प्रदेश की कमान सौंपी है। अक्सर करिश्माई फेस सियासी गणित को उलट-पुलट करने का हौसला रखता है। इसलिए कांग्रेस विरोधी सियासी दलों में एक अंडर प्रेसर दिख रहा है। चूंकि प्रियंका गांधी का व्यक्तित्व करिश्माई है। इसलिए उनके प्रभाव क्षेत्र से बिहार को महफूज रखना संभव नहीं लगता। वैसे पूर्वी उत्तर प्रदेश में ही पीएम मोदी और गृहमंत्री राजनाथ सिंह का चुनाव क्षेत्र है। वहीं, इसी क्षेत्र में सीएम योगी आदित्यनाथ का गढ़ गोरखनाथ भी पड़ता है। फिलहल तो प्रियंका गांधी को अपनी गतिविधियां शुरू करने में दस दिनों की देरी है, लेकिन भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं में खलबली अभी से ही मची हुई है। वहीं महागठबंधन के सहयोगियों में रहस्यमय चुप्पी है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रियंका की एंट्री को वंशवादी सियासत कहा तो लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने कहा कि प्रियंका का सक्रिय होना साबित करता है कि राहुल अपनी असफलता को स्वीकार चुके हैं। इसी तरह का बयान भाजपा प्रवक्ता संविद पात्रा ने भी दिया है। बिहार मंत्रिमंडल के विनोद नारायण झा ने कह दिया कि सुंदर चेहरा देख कर कोई वोट नहीं देगा। सुशील मोदी ने भी कहा कि चेहरा मिल जाने से कोई किसी की तरह नहीं होता। प्रियंका का चेहरा भले ही इंदिरा गांधी से मिलता है, लेकिन उनमें जो खूबियां थीं, प्रियंका में उसकी उम्मीद नहीं की जा सकती। सवाल उठता है कि प्रियंका के कांग्रेस में सक्रिय होने से भाजपा में इतनी बेचैनी क्यों है। क्या सच में भाजपा घबरायी हुई है।

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बीजेपी की सहयोगी शिवसेना ने कांग्रेस के इस फैसले को मास्टरस्ट्रोक बताया है और प्रियंका गांधी की तुलना उनकी दादी इंदिरा गांधी से की है। शिवसेना प्रवक्ता मनीषा कांयदे ने कहा, जब वोटर आगामी लोकसभा चुनाव में वोट करने जाएगा, तो उसे प्रियंका में इंदिरा गांधी की छवि नजर आएगी। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के लिए यह बड़ी बात है। पार्टी को इसका फायदा भी जरूर मिलेगा। हालांकि भाजपा की ही सहयोगी रिपब्लिकन पार्टी के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री आठवले ने कांग्रेस के इस फैसले से ज्यादा फर्क न पड़ने की बात कह कर मन को शांत किया है।

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योग गुरु बाबा रामदेव ने इसे कांग्रेस का अंदरुनी मामला बताया, लेकिन दोटूक बीजेपी को चेता भी दिया। रामदेव उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में एक कार्यक्रम में भाग लेने गए थे। जेडीयू के उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने इसे भारतीय राजनीति में सबसे लंबा इंतजार वाला फैसला बताया।

प्रियंका गांधी के लिए कितनी बड़ी चुनौती?

प्रियंका गांधी को जिस पूर्वी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी दी गई है, उसी पूर्वी यूपी से ही भाजपा के तमाम दिग्गज मैदान में उतरते हैं। वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सांसद हैं, गोरखपुर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का इलाका है तो वहीं, प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र पांडेय चंदौली से सांसद हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश की बात करें तो इस क्षेत्र में 21 जिले हैं, जिनमें लोकसभा की 26 और विधानसभा की 130 सीटें हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश भोजपुरी भाषी बेल्ट है, जो रायबरेली से शुरू होकर बिहार के गोपालगंज तक पसरा हुआ है। प्रियंका गांधी को प्रचार के दौरान भोजपुरी भाषा में बातचीत करते सुना जाता है, जो भोजपुरी भाषी वोटरों को खासा प्रभावित कर सकता है।

आधार वोट को पुनर्जीवित करना बड़ी चुनौती

आज की तारीख में कांग्रेस को अपने आधार वोट बैंक को फिर से जीवित करना बड़ी चुनौती है, प्रियंका-राहुल के पिता राजीव गांधी की चिता के साथ जलते देखा गया था। के चूंकि राजीव गांधी के बाद उत्तर भारत की सामान्य जातियों के वोटर भाजपा में शिफ्ट कर गये और कांग्रेस के दूसरे आधार वोट बैंक दलित को कांशीराम ने हाथी दिखा कर खींच लिया। वहीं मुसलमान, जो भाजपा विरोधी सियासी दल को वोट देने की नीति व नीयत रखते हैं, वे भाजपा विरोधी क्षेत्रीय दलों के साथ हो गये।

मंडल आयोग ने भारतीय सियासत में जातीय गोलबंदी कर दी। इन 25-30 वर्षों में सभी जातियों ने अपने-अपने जातीय नेता चुन लिये हैं। यादव के नेता मुलायम सिंह यादव और लालू यादव, तो दलित की मायावती। इसके अलावा  कुशवाहा, कुर्मी, राजभर, लोध जैसी कई दर्जन जातियों के अपने नेता और उनके अपने दल हैं।

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वोटों के वर्गीकरण से जूझना प्रियंका के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी। हां, किसानों की दुर्दशा पर प्रियंका सहानुभूति देकर गणित हल कर सकती हैं। नौजवान का एक बड़ा वर्ग उनकी ओर आकर्षित तो जरूर होगा, मगर जाति-बिरादरी से कितना ऊपर उठ पायेगा, वह चुनाव परिणाम बतायेगा।

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सामान्य जातियों में राजपूत और ब्राह्मण मुख्य हैं। जिनका कोई मास अपीलिंग लीडर नहीं है। अटल बिहारी वाजपेयी के बाद ब्राह्मणों को भाजपा में रहने के अलावा विकल्प भी नहीं है। प्रियंका का चेहरा उन्हें अपनी ओर खींच सकता है। कांग्रेस के आधार वोट बैंक के ठीकठाक होते ही मुसलमान पाला बदल कर कांग्रेस की पतवार पकड़ने का हौसला जरूर दिखायेंगे।

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