एक गुमनाम साप्ताहिक ‘महावीर’ का सत्याग्रह अंक, लोकार्पण 26 को

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रांची। देश की आजादी में पत्र-पत्रिकाओं ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उस समय के आंदोलन के दस्तावेजीकरण का काम इन पत्र-पत्रिकाओं ने बखूबी किया। जाने-अनजाने एक तरह से ये पत्रिकाएं ‘इतिहास’ लेखन कर रही थीं। इन्हीं पत्रिकाओं में एक है बिहार से प्रकाशित साप्ताहिक ‘महावीर’। इस पत्रिका के बारे में जो जानकारी मिलती है, वह पर्याप्त नहीं। आधी-अधूरी है, लेकिन इस एक अंक में जो जानकारी मिलती है, वह दुर्लभ है। पता चलता है कि इसे संपादक जगत नारायण लाल थे। जगत नारायण लाल के बारे में भी बहुत जानकारी नहीं मिलती है। पता चलता है कि ये उत्तर प्रदेश के थे। इनका जन्म उत्तरप्रदेश के गोरखपुर में हुआ था। उनके पिता भगवती प्रसाद वहां स्टेशन मास्टर थे।इस पत्रिका के बारे में पत्राकारिता के इतिहास की पुस्तकें भी सर्वथा मौन है। पत्रकार संजय कृष्ण ने महावीर के अंकों के संकलन का संपादन कर इसका पुनर्प्रकाशन सुनिश्चित करने का महत्वपूर्ण काम किया है। महावीर का लोकर्पण रांची प्रेस क्लब में 26 जनवरी को पत्रकार से राज्यसभा के उपसभापति तक का सफर करने वाले हरिवंश करेंगे।

इसका एक विशेषांक ‘सत्याग्रह’ पर आया था। 21 जून, 1931 में यह अंक निकला था। इस अंक के बारे में संपादक ने बहुत ईमानदारी से लिखा है, ‘इन पंक्तियों में उन्हीं घटनाओं का संक्षिप्त विवरण देने का प्रयत्न किया गया है। हम जानते हैं कि सत्याग्रह आंदोलन का ठीक-ठीक वर्णन करने में हजारों हजार पृष्ठों को रंगना पड़ेगा, और आज की अपेक्षा कहीं अधिक खोज ढूंढ और जांच-पड़ताल करनी पड़ेगी और उसके लिए तो महान साधनों की आवश्यकता है, जिसका हमारे पास सर्वथा अभाव है। इन्हीं बातों और कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए हम ने इस अंक में सत्याग्रह सिद्धांतों के संक्षिप्त विवेचन के साथ भारतीय सत्याग्रह का थोड़ा वर्णन करते हुए बिहार प्रांत में होने वाली घटनाओं पर अधिक जोर दिया है।’

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अच्छी और लघु पत्रिकाओं के साथ यह दिक्कत आज भी है। उस समय भी थी। साधनों के अभाव और समय पर लेखकों के सहयोग नहीं मिल पाने के बावजूद जो अंक निकला, वह कम महत्वपूर्ण नहीं है। दुर्भाग्य से, ‘महावीर’ का यही ‘सत्याग्रह’ विशेषांक ही उपलब्ध है। डबल डिमाई आकार में यह पत्रिका छपी थी। अंक के मुख्य पृष्ठ पर गांधीजी लाठी लिए हुए सबसे आगे हैं और उनके पीछे सत्याग्रहियों की ‘एस’ आकार में लंबी कतार है। नीचे मध्य में विजय-यात्रा लिखा हुआ है और फिर उसके नीचे सम्पादक का नाम- विश्वनाथ सहाय वर्मा। सबसे उ$पर बाएं संस्थापक श्री जगतनारायण लाल और दाहिने में पंजीयन-नं पी-186।

सत्याग्रह का यह अंक रांची के संतुलाल पुस्तकालय में ही मिला। हो सकता है, कहीं कोई और पुराने पुस्तकालयों में एकाध फाइलें पड़ी हों, लेकिन ऐसा कम ही जान पड़ता है, क्योंकि बिहार की पत्र-पत्रिकाओं पर शोधपूर्ण काम करने वाले पं रामजी मिश्र ‘मनोहर’ अपनी शोधपूर्ण कृति ‘बिहार में हिंदी-पत्राकारिता का विकास’ में बस एक पैराग्राफ की ही संक्षिप्त जानकारी ही दे पाते हैं-‘‘सन् 1926-27 में बाबू जगत नारायण लाल ने साप्ताहिक ‘महावीर’ निकाला, जिसके वे स्वयं संपादक भी थे। यह अपने समय का बड़ा ही संदर्भपूर्ण एवं सुसंपादित पत्रा था। जगत बाबू राजनीति से सक्रिय रूप से जुड़े थे, अतः समयाभाव तथा अर्थाभाव के कारण यह मुश्किल से पांच-छह वर्ष ही चल सका। इसके कई महत्वपूर्ण विशेषांक निकले, जिनमें बिहार के राजनीतिक आंदोलन का महत्वपूर्ण छिपा पड़ा है। दुर्भाग्यवश इसकी फाइलें न तो जगत बाबू के परिवार वालों के पास है और न कहीं पुस्तकालयों में ही सुरक्षित हैं।’’  मनोहर जी ने काफी श्रम के साथ काम किया है, लेकिन उन्हें महावीर का कोई अंक सुलभ नहीं हो सका, जबकि यह पटना से ही प्रकाशित होता था।

इस संक्षिप्त जानकारी से पता चलता है कि इसे संपादक जगत नारायण लाल थे। जगत नारायण लाल के बारे में भी बहुत जानकारी नहीं मिलती है। पता चलता है कि ये उत्तर प्रदेश के थे। इनका जन्म उत्तरप्रदेश के गोरखपुर में हुआ था। उनके पिता भगवती प्रसाद वहां स्टेशन मास्टर थे। जगत नारायण ने इलाहाबाद से एम.ए. और कानून की शिक्षा पूरी की और पटना को अपना कार्यक्षेत्रा बनाया। ओम प्रकाश प्रसाद ने ‘बिहार: एक ऐतिहासिक अध्ययन’ में कुछ प्रकाश डाला है। लिखते हैं, जगत नारायण लाल राजेंद्र प्रसाद के कारण स्वतंत्राता संग्राम में शामिल हुए और मालवीय जी के कारण हिंदू महासभा से उनकी निकटता हुई। 1937 के निर्वाचन के बाद लाल बिहार मंत्रिमंडल में सभा सचिव बने। 1940-42 की लंबी जेल यात्राओं के बाद 1957 में वे बिहार सरकार में मंत्राी बनाए गए। सामाजिक क्षेत्रा में काम करने के लिए उन्होंने बिहार सेवा समिति का गठन किया। 1926 में उन्हें अखिल भारतीय हिंदू महासभा का महामंत्राी चुना गया। वे सांप्रदायिक सौहार्द्र के समर्थक थे। छुआछूत का निवारण और महिलाओं के उत्थान के कार्यों में भी उनकी रुचि थी। वे प्रबुद्ध वक्ता और श्रोताओं को घंटों अपनी वाणी से मुग्ध रख सकते थे। अपने समय में बिहार के राजनीतिक और सामाजिक जीवन में उनका महत्चपूर्ण स्थान था। 1966 में उनका देहांत हुआ।’

जगत नारायण का लिखा हो सकता है कहीं सुरक्षित हो, लेकिन उनके द्वारा लिखी एक पुस्तक की भूमिका मिलती है। इस पुस्तक के लेखक रांची के गुलाब नारायण तिवारी थे। पुस्तक का नाम है-‘हिंदू जाति के भयंकर संहार अर्थात छोटानागपुर में ईसाई धर्म’। इसे बिहार प्रांतीय हिंदू सभा, पटना ने प्रकाशित किया था। रामेश्वर प्रसाद, श्रीकृष्ण प्रेस, मुरादपुर, पटना से छपी थी। उसमें संक्षिप्त भूमिका उनके नाम से प्रकाशित है।

मोहम्मद साजिद ने अपनी पुस्तक ‘मुस्लिम पालिटिक्स इन बिहारः चेंचिंग कंटूर’ में जरूर इस पत्रिका के बारे में कुछ पर्याप्त जानकारी दी है। लिखा है, जगत नारायण लाल बिहार में हिंदू सभा और आल इंडिया हिंदू महासभा के जनरल सेक्रेटरी थे। 1926 में महावीर नामक साप्ताहिक पत्र की शुरुआत की। संपादन भी खुद ही करते थे। इसमें सांप्रदयिक लेख काफी प्रमुखता से प्रकाशित होते थे। वे 1922 से 28 तक बिहार कांग्रेस के सहायक सचिव भी रहे। 1930 में पटना जिला कांग्रेस के सचिव रहे। इसी के साथ सेवा समिति से भी जुड़े रहे। इसी साल उन्होंने हिन्दुस्थान सेवा संघ की स्थापना की। 1934 में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी। 1937 में मदन मोहन मालवीय की इडीपेंडेंट पार्टी के साथ जुड़े। जगत नारायण लाल ने अपने संस्मरण में लिखा है कि ‘महावीर’ हिंदू विचारधारा का समर्थक पत्रा है। 1926 में यह पत्रा साप्ताहिक शुरू हुआ। 1932 में यह दैनिक हो गया और 1932 में ही सरकारी विरोध के कारण बंद हो गया। लेखक ने लिखा है कि पहले वह ईसाइयों को संकट के तौर पर देख रहे थे। बाद में मुसलमानों के विरोधी हो गए।’ इसके विश्लेषण में अभी जाने की जरूरत नहीं।

‘महावीर’ के इस सत्याग्रह अंक में कुल 49 लेख शामिल हैं। अंतिम 49 वां लेख नहीं, बल्कि ‘बिहार के रणबांकुरे’ नाम से पूरे प्रदेश के राजबंदियों की 12 पेज में सूची है। पूरी नहीं। जितनी मिल सकी। संपादक ने इस बारे में पहले ही संपादकीय में आगाह कर दिया, ‘हम अपनी त्राुटियों और साधनाभावों से सजग हैं। जिस थोड़े समय में और प्रतिकूल परिस्थिति में हमें इसका प्रकाशन करना पड़ा, उसे ख्याल कर घबराहट होती है और अपनी उन त्राुटियों के लिए हम पाठकों से क्षमा चाहते हैं। लेखों के चुनाव में भी हमें बहुत से विद्वानों के लेख और कवितायें अपनी इच्छा के विपरीत इसलिए रख छोड़नी पड़ी कि हमारे पास अधिक स्थान ही न था। हम उन सज्जनों से क्षमा चाहते हैं। इसी प्रकार चित्रों के चुनाव में भी कई प्रमुख नेताओं और कार्यकर्ताओं के चित्रा हमें अभाग्यवश कोशिश करने पर भी नहीं मिल सके, जिसका हमें हार्दिक खेद है और यह अभाव ऐसा है जो हमें सदा खटकता रहेगा और उसके लिये भी हम क्षमा-प्रार्थी हैं। उसी तरह बिहार के राजबंदियों की नामावली भी अधूरी रह गई है। कई जिलों से तो राजबंदियों की सूची मिली ही नहीं, और कई जगहों की लिस्ट आने पर भी वह अधूरी निकली। इस कारण उन त्राुटियों का ख्याल हमें दुःखित कर रहे हैं।’

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अंक के विषय सूची से कुछ अनुमान लगा सकते हैं। सबसे पहले भारतीय नेताओं के दिव्य संदेश है। उस समय के बड़े नेताओं के संदेश प्रकाशित हैं। महात्मा गांधी के तीन लेख कष्ट सहन का नियम, स्वराज्य का एक लक्षण एवं अहिंसा है। बाबू राजेंद्र प्रसाद का सत्य और सत्याग्रह नामक लेख है। श्री प्रकाश का सत्याग्रह का खतरा, जगत नारायण लाल की राजबंदी जीवन व सत्याग्रह की मीमांसा के साथ स्वामी सहजानंद सरस्वती का लेख सत्याग्रह की कमजोरियां और उनके नेवारण के उपाय आदि शामिल हैं। कविताओं में श्री अरविंद का माता का संदेश, रामधारी सिंह दिनकर की कविता भव, बेगूसराय गोली कांड-श्री कपिलदेव नारायण सिंह सुहृद, बिस्मिल इलाहाबादी की फरियादे बिस्मिल आदि कविताएं प्रकाशित हैं। इसके अलावा सत्याग्रह और महिलाएं, बिहार में सत्याग्रह, बिहार में चौकीदारी कर बंदी, बिहार के शहीद आदि दुर्लभ, जानकारीपरक और महत्वपूर्ण लेख हैं। सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि जिलों के सत्याग्रह की रिपोर्ट है। तब झारखंड भी बिहार का फार खान, पुरुलिया के जिमूत वाहन सेन, हजारीबाग की सरस्वती देवी एवं मीरा देवी, प्रो अब्दुल बारी, जेएम सेनगुप्ता के साथ जगत नारायण लाल एवं उनकी पत्नी की भी। उस समय के प्रमुख सत्याग्रहियों की तस्वीरें, जो सुलभ हो सकीं, दी गई हैं। मुजफ्फरपुर में सत्याग्रह, चम्पारण में सत्याग्रह, दरभंगा में सत्याग्रह, शाहाबाद में सत्याग्रह, भागलपुर में सत्याग्रह, प्रांत के कुल जेलयात्राी, बीहपुर सत्याग्रह, मुंगेर के सत्याग्रह, पटना नगर में सत्याग्रह, पटना जिला में सत्याग्रह, गया में सत्याग्रह, पूर्णिया में सत्याग्रह, रांची में सत्याग्रह, तमिलनाडु में सत्याग्रह आदि। इन लेखों में सत्याग्रह के बारे में संक्षिप्त जानकारी है और किनके नेतृत्व में सत्याग्रह हुए, किन-किन लोगों ने भाग लिया, इसकी भी जानकारी दी गई है। उस समय के कई महत्वपूर्ण लेखकों ने इस अंक में योगदान दिया। प्रांत के कुल जेलयात्राी के अलावा बिहार के वीर बांकुडे़ 12 पेज में दिया गया है। इसमें वृहद बिहार के जिलों के सत्याग्रह और राजबंदियों की सूची है। यह सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। इसलिए, महावीर के इस अंक का महत्व बढ़ जाता है। इसके अलावा इसमें उस समय के कई बड़े नेताओं की तस्वीरें भी हैं।

कहा जाता है कि रांची के रहने वाले राधाकृष्ण ने एक तरह से पत्रकारिता जीवन की शुरुआत इसी पत्रिका से की। फिर कहानी लेखन की ओर मुड़ गए। कहानी के साथ-साथ व्यंग्य भी लिखा। प्रेमचंद के निकट हुए। उनके निधन पर कुछ दिनों तक हंस भी संभाला। फिल्म लेखन भी किया। फिर रांची में ‘आदिवासी’ पत्रिका का संपादन किया। ‘महावीर’ के बारे में कुल जमा यही जानकारी मिलती है।

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