- राणा अमरेश सिंह
पटना। अस्पताल में इलाज करा रहे सजायाफ्ता लालू यादव सभी महागठबंधन के साथी दलों को साधने में लगे हैं। विश्वविद्यालय में शिक्षक नियुक्ति में आरक्षण पर तेजस्वी से दिल्ली में मार्च कराया तो कांग्रेस के साथ शरद यादव और पप्पू यादव जैसे नेताओं को उनकी औकात का एहसास करा दिया। राजद मुखिया लालू यादव के आगे सभी मजबूर हो गये हैं। 2019 के संसदीय चुनाव में अब महज दो माह बचे हैं। महागठबंधन की सियासत अब भी अपनी लाइन एण्ड लेंथ स्पष्ट नहीं कर पाई है। दूसरी ओर, राजद मुखिया लालू यादव की सियासी पैंतराबाजी आक्रमक होती जा रही है। वे एक साथ सीएम नीतीश कुमार समेत महागठबंधन के सहयोगियों को भी मात देने की चालें चल रहें हैं। हालांकि लोग चुनाव दर चुनाव समझदार व स्मार्ट होते जा रहे हैं।
लालू यादव अगड़ी जाति के गरीबों के 10 फीसदी आरक्षण और विश्वविद्यालय में शिक्षक नियुक्ति आरक्षण को लेकर जातीय ध्रुवीकरण में मशगूल हैं। वे एकबार फिर ’90 दशक की बयार से चुनावी वैतरणी पार करने की जुगत भिड़ा रहे हैं। यूं कहिए कि महागठबंधन के बड़े नेताओं के बीच राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई भी शुरू हो गई है। अपना कद बचाने-बढ़ाने के लिए राजद-कांग्रेस में जारी दांव-पेंच चरम पर है। वहीं नीतीश कुमार विरोधी शरद यादव सरीखे कद्दावर नेता को भी अपनी औकात में रखने की चुनौती राजद की ओर से मिल रही है।
देश की सियासत ने लालू यादव को एक बार फिर खाद-पानी मुहैया करा दी है। बिहार विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता और लालू यादव के अघोषित उत्तराधिकारी तेजस्वी यादव कहीं उनसे भी अधिक मुखर और आक्रमक हैं। स्वाभाविक है कि दोनों सीएम नीतीश कुमार को मात देने के लिए रणनीति बना रहे हैं।
राजद साबित करना चाहता है कि वही बिहार में मुसलमानों के साथ अति पिछड़ों और दलितों का रखवाला है। इसी क्रम में तेजस्वी यादव ने बुधवार को दिल्ली में मंडी हाउस से जंतर मंतर तक पैदल यात्रा की थी। दरअसल विश्वविद्यालय में शिक्षक नियुक्ति में आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर मुहर लगा दी है। इसका दलित व पिछड़े समाज के युवा विरोध कर रहे हैं। इसी मुद्दे को लेकर राजद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नीत भाजपा सरकार को कटघरे में खड़े करने के प्रयास में है, ताकि बिहार में राजग सरकार को अगड़ा समर्थित घोषित किया जा सके और दलित और पिछडे़ वर्ग के युवाओं को पार्टी बैनर के नीचे खींचा जा सके।
राजद की कोशिश मुसलमान, यादव के साथ दलित वोटों को अपने खांचे में डालने की है। राजद की इसी रणनीति पर लोजपा सांसद चिराग पासवान ने एतराज जताया तथा उन्हें दलितों के हितैसी बनने से बाज आने का संकेत दिया।
राजद मुखिया लालू यादव व शरद यादव की दोस्ती-दुश्मनी के किस्से सियासी जगत में शुमार हैं। दोनों एक दूसरे को पसंद नहीं करते हैं, लेकिन हालात ऐसे हैं कि एक साथ रहना दोनों की मजबूरी बन गयी है। राजनीति में तेजी से उभर रहे तेजस्वी यादव की राह में शरद का सियासी कद रोड़े अटका सकता है। इसलिए लालू की कोशिश है कि जदयू से अलग होने के बाद शरद की कमजोर होती सियासी शक्ति को दोबारा नहीं पनपने दिया जाए। शरद यादव पर लालू यादव यकीन नहीं करते हैं।
समाजवादी चरित्र के शरद यादव की अतीत की गतिविधियों का आकलन करते हुए लालू प्रसाद यादव की नजर भविष्य पर है। अपने सियासी उत्तराधिकारी की हिफाजत के लिए उन्होंने शरद के सामने स्पष्ट कर दिया है कि उन्हें मधेपुरा के मैदान में लालटेन लेकर ही उतरना होगा।
शरद यादव ने दांव-पेच की शुरूआत रालोसपा सुप्रीमो उपेंद्र कुशवाहा को लेकर की थी। वे पाला बदल कर राजग से आए रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा को साथ लेकर महागठबंधन में खुद को मजबूत करने की कोशिश में थे। इसके लिए रालोसपा में अपनी नई पार्टी के विलय की तैयारी में थे। वहीं हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) प्रमुख जीतननराम मांझी पर भी डोरे डाले जा रहे थे।
महागठबंधन में शरद यादव की भावी रणनीति की भनक मिलते ही लालू ने तेजस्वी यादव से मुकेश सहनी को महागठबंधन से जोड़ने को कहा ताकि महागठबंधन में राजद की अहमियत अधिक आंकी जाये। सहनी को साथ लाने के पहले तेजस्वी ने अन्य सहयोगी दलों से सहमति नहीं ली थी। सूत्रों के अनुसार लालू के दबाव पर ही शरद यादव को मीडिया से रालोसपा में अपने दल के विलय की बात का खंडन करना पड़ा था।
कोशी पुत्र और उत्तर बिहार के राबिनहुड के नाम से मशहूर सांसद पप्पू यादव को लालू यादव बिल्कुल पसंद नहीं करते हैं। लालू यादव को वे अपना नेता मानते हैं, मगर तेजस्वी यादव को वे राजा का बेटा कहते हैं। पिछले दिनों सांसद पप्पू यादव से लालू यादव रिम्स में मुलाकात करने से इंकार कर चुके है। इससे पत्ता चलत है कि लालू यादव के अंदर क्या चल रहा है।
वहीं, कांग्रेस पप्पू यादव के लिए राजद से मधेपुरा मांग रही है। सिटिंग के नाम पर पप्पू यादव ने भी सारे घोड़े खोल रखे हैं। जाप के राष्ट्रीय प्रधान महासचिव एजाज अहमद के मुताबिक मधेपुरा से कोई समझौता नहीं होगा। एक सीट के लिए शरद को संघर्ष करते हुए देख कर पूर्व विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी ने लालटेन थामने में देर नहीं की। चौधरी जमुई से टिकट के दावेदार हैं।
यह भी पढ़ें
- प्रियंका गांधी भी पटना की रैली में रहतीं, अगर यह मजबूरी न होती
- बूझ जाईं मलिकार कि मन चंगा त कठौती में गंगा
- जिनके नहीं अपने मकान, उन्होंने भी कर दिये लालू कुनबे को दान
- हवाई जहाज से उड़ने के लिए सांसद बनना चाहते हैं विधायक अनंत सिंह
- राहुल गांधी के मंच पर रहेंगे तेजस्वी यादव, अनंत सिंह की इच्छा अधूरी
- राम जी करेंगे बेड़ा पार, सरकार कोर्ट में तो संत शिलान्यस पर अड़े