जयंती पर विशेषः कभी इलेक्ट्रिशियन का काम करते थे संगीतकार रवि

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  • नवीन शर्मा 

हम हिंदी पट्टी में जन्म लेने वाले लोगों ने शादी के मौके पर एक गीत जो सबसे अधिक बजता हुआ सुना होगा, वो- आज मेरे यार की शादी है। खासकर जब बारात आती हैं तो इसी गीत के बैंड की धुन पर बारातियों को नाचते आज भी देखा जा सकता है। उसके बाद दुल्हन जब मायके से विदा होती है तो- बाबुल की दुआएं लेती जा, जा तुझको सुखी संसार मिले- गीत ही सबसे अधिक प्रचलित है। ये दोनों ही सर्वाधिक लोकप्रिय गीतों की धुन जिस शख्स ने बनाई, वो संगीत निर्देशक रवि हैं। 3 मार्च, 1926 को  दिल्ली में जन्मे रविशंकर शर्मा को ही हम हिंदी सिनेमा के आकाश में उगते सूरज संगीत निर्देशक रवि के रूप में देखते हैं।

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रवि ने संगीत की कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली थी, हालांकि उनकी दिली तमन्ना पार्श्व गायक बनने की थी।  इलेक्ट्रिशियन के रूप में काम करते हुए रवि ने हारमोनियम बजाना और गाना सीखा। इसके बाद सन 1950 में वह मुंबई आ गए। रवि ने शास्त्रीय संगीत कोई शिक्षा नहीं ली थी। फिर भी मुम्बई में न उनके पास रहने का घर था और न हाथ में कोई पैसा। अपनी ज्यादातर रातें तब वह मलाड स्टेशन पर बीताते थे। एक दिन हेमंत कुमार ने उन्हें देखा तो वह उन्हें अपने साथ ले गए। उन्होंने पहले रवि से ‘आनन्द मठ’ फिल्म में ‘वंदेमातरम्’ गीत में कोरस गवाया और फिर उन्हें अपना सहायक निर्देशक बना लिया।

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यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि ‘नागिन’ की सुपर हिट बीन वाली धुन रवि ने ही तैयार की थी जो पहली बार ‘मेरा तन डोले, मेरा मन डोले’ में इस्तेमाल हुई थी। हेमंत दा से अलग होने के अगले दिन ही निर्माता नाडियाडवाला ने रवि को बतौर संगीत निर्देशक तीन फिल्में ‘मेंहदी’, ‘घर संसार’ और ‘अयोध्यापति’ दे दीं। उधर निर्माता एसडी नारंग ने भी रवि को ‘दिल्ली का ठग’ और ‘बॉम्बे का चोर’ जैसी फिल्में दे दीं। बस उसके बाद रवि ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। दिल्ली से गायक बनने का सपना लेकर आया युवक रवि शंकर शर्मा हिन्दी फिल्मों का मशहूर संगीत निर्देशक रवि बन गया।

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यूं रवि के संगीत निर्देशक की पहली फिल्म सन् 1955 में आई ‘वचन’ थी जिसके गीत ‘चंदामामा दूर के’ और ‘बाबू एक पैसा दे दो’ हिट रहे थे। मगर कुछ कारणों से इस फिल्म में रवि के नाम के साथ एक और संगीतकार चन्द्रा का नाम भी गया थां पर बाद में उनके अपने स्वतंत्र संगीत निर्देशन में ‘अलबेली’, ‘दिल्ली का ठग’, ‘मेहंदी’ जैसी कई फिल्मों के आने का सिलसिला शुरू हो गया।

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इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और 50 से अधिक फिल्मों में संगीत दिया। रवि को उन लोगों में माना जाता है, जिन्होंने महेन्द्र कपूर और आशा भोंसले को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यदि हिन्दी फिल्मों के कुल 500 सुपर हिट गीतों को लिया जाए तो उनमें अकेले रवि के 100 से ज्यादा सुपर हिट गीत हैं और बाकी 400 सुपर हिट गीतों में 15 से ज्यादा संगीतकारों के नाम आते हैं।

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उन्होंने शास्त्रीय संगीत पर कई सुपर हिट धुनें बनाईं जिनमें ‘तोरा मन दर्पण कहलाए’, ‘जीवन ज्योत जले’, ‘दर्शन दो घनश्याम’ और ‘लागे ना मोरा जिया’ जैसे कई गीत हैं जिन्हें लता, रफी और आशा भौंसले ने गाया। सही मायने में आशा भौंसले को जिन गिने-चुने संगीतकारों ने शेप दी उनमें रवि प्रमुख थे। साथ ही महेन्द्र कपूर जैसे गायक की जिन्दगी तो रवि साहब की धुनों पर गीत गाकर ही बनी।

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उनकी अंतिम उल्लेखनीय फिल्म निकाह मानी जाती है जिसके गीत ‘दिल के अरमां आंसुओं में बह गए’को संगीत प्रेमी काफी पसंद करते हैं. रवि ने 14 मलयाली फिल्मों में संगीत दिया।   86 की उम्र से बीमार चल रहे रवि का 7 मार्च 2012 को  देहांत हो गया। रवि शंकर ने हिन्दी फिल्मों में कई सदाबाहर गाने दिए, जिसमें ‘चौहदवीं का चांद हो’, ‘आज मेरे यार की शादी है’, ‘नीले गगन के तले’, ‘बाबुल की दुआएं लेती जा’, ‘ओ मेरी जोहरा जबीं’ जैसे अनेक गाने शामिल है जो आज भी 21वीं सदी में गुनगुनाए जाते है।

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चर्चित फिल्में

चौंदहवी का चांद, घराना, खानदान, वक्त, भरोसा, वक़्त, भरोसा, दो बदन, काजल, हमराज, बहु- बेटी, नीलकमल, और निकाह शामिल हैं।

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