पटना। लोकसभा चुनाव में जीत पार्टी विशेष की हवा बनने पर होती है। कभी-कभी तो यह हवा सुनामी बन कर विरोधियों पर कहर बरपाती है। तो कभी चक्रवाती हवा बनकर खास क्षेत्रों में विरोधियों का सूफड़ा साफ कर देती है। ऐसा देखा और अहसास किया गया है। साल 2014 चुनाव में नरेंद्र मोदी की सुनामी थी। जिसने पिछले आंकड़े ध्वस्त कर उसे 282 सीटों पर काबिज होने में मदद की। पुलवामा हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक-2 यानी बालाकोट आपरेशन ने नरेंद्र मोदी नीत राजग सरकार को मजबूत किया है और नरेंद्र मोदी इसे वोट में तब्दील करने के लिए जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं। उधर नरेंद्र मोदी के विरोधी दल नयी तरकीब तलाशने में जुटे हैं। इसी क्रम में आपसी समझौते और आक्रमक मूड में हैं।
जनता नरेंद्र मोदी की गलत-सही नीतियों को भूल कर फिर से उसे अंगीकार करती दिख रही है। कारण जाहिर है। जनता जनार्दन को नरेंद्र मोदी का विकल्प नहीं सूझ रहा है। उधर विपक्षी दलों में एकजुटता बनाने की कसरतें तेज हो गई हैं, ताकि भाजपा की घेराबंदी कर 2019 में उसे सत्ता से दूर रखा जा सके। फरवरी के अंत तक तीन खेमों में बंटे विपक्ष नरेंद्र मोदी की फिर सरकार बनने के डर से तबाड़तोड़ समझौते कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में समाजवादी और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन ने कांग्रेस को 10 सीटों का ऑफर दिया है। सपा-बसपा का यह विचार देश में लगातार बदलते हालात के बाद हुआ है। सपा-बसपा गठबंधन के नेताओं को लगता है कि इस हालात में एक-एक वोट कीमती है और उसे व्यर्थ नहीं किया जाना चाहिए। इसलिए कांग्रेस के लिए रायबरेली और अमेठी छोड़ने वाले सपा-बसपा गठबंधन ने अब उसे 10 सीटें देने की पेशकश की है। अब कांग्रेस को यह तय करना है कि वह क्या कदम उठाती है। कांग्रेस की चुप्पी साबित करती है कि उसे बराबरी से कम मंजूर नहीं है। यानी बसपा सुप्रीमो मायावती और सपा प्रमुख अखिलेश यादव, तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी, आप के सर्वेसर्वा अरविंद केजरीवाल समेत सभी विरोधी दलों को फिर एक बार सुनामी की चपेट में आने का डर सालने लगा है। अब सभी मानने लगे हैं कि देश में हालात लगातार बदल रहे हैं। ऐसे हालात में उन्हें भी अपनी रणनीति बदलनी होगी। यही वजह है कि आने वाले दिनों में कांग्रेस उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा से बराबरी का दावा कर सकती है।
उधर, समाजवादी पार्टी कांग्रेस द्वारा पूर्व समाजवादी नेताओं के साथ संबंध बनाए जाने की कोशिशों से भी नाराज है। समाजवादी पार्टी खासकर शिवपाल यादव के साथ प्रियंका गांधी की टेलीफोन पर बातचीत करने से भी खफा है। यह भी खबरें थीं कि कांग्रेस शिवपाल यादव की पार्टी से गठबंधन करने जा रही है, मगर अब कांग्रेस के नेता इसे शिष्टाचार की बात कह कर टाल रहे हैं।
माकपा ने पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और वाम मोर्चे के कब्जे वाली छह सीटों पर आगामी लोकसभा चुनाव में ‘एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव न लड़ने’ की बात सोमवार को कही है। माकपा के इस प्रस्ताव से संकेत मिलता है कि वह भाजपा विरोधी वोटों को मजबूत करने के लिए राज्य में दो राजनीतिक खेमों में एक समझ कायम करना चाहती है।
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पं. बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कांग्रेस को हाल तक एक भी सीट देने को तैयार नहीं थीं। कांग्रेस के नाम पर ही वह नाक-मुंह सिकोड़ लेती हैं, लेकिन यहां भी नरेंद्र मोदी के फिर से आने का डर सिर चढ़ कर बोलने लगा है। एनसीपी नेता शरद पवार और तेलगु देशम नेता चंद्रबाबू नायडू ने कांग्रेस और ममता बनर्जी से बंगाल में गठबंधन करने का आग्रह किया है। साथ ही इन नेताओं ने कांग्रेस से कहा है कि दिल्ली में भी कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को साथ मिल कर चुनाव लड़ना चाहिए।
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हालांकि दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है और कांग्रेस भी कुछ दिनों में ऐसा ही करने वाली थी। फिर भी मंगल की रात राहुल गांधी ने आप के साथ समझौता होने का संकेत दिया। हालांकि दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने राहुल गांधी से मुलाकात के बाद साफ कर दिया कि कांग्रेस किसी भी कीमत पर आप के साथ नहीं जाएगी।
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कर्नाटक में जद एस के सुप्रीमो व पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगोड़ा ने कांग्रेस से बगैर शर्त सीट समझौता करने की बात कही है। आंध्रप्रदेश में चंद्रबाबू नायडू ने भी कांग्रेस से समझौते कर लेने का संकेत दिया है। बिहार में महागठबंधन तो बन चुका है। अलबत्ता सीट शेयरिंग पर बात अंटकी है। सियासी पंडितों का मानना है कि राजद सुप्रीमो भी अब ढीले पड़ेंगे और सीट शेयरिंग मुद्दे का पटाक्षेप करेंगे।
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