20 लाख शब्द लिख चुके हैं पत्रकार व शिक्षक बी.के. मिश्र

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  • सुरेंद्र किशोर  

कोई व्यक्ति लगातार 47 साल से मुख्य धारा की पत्रकारिता में हो और उसके  लेखन को लेकर कभी कोई विवाद न हो,तो ऐसे पत्रकार विरल होते हैं। ऐसे ही पत्रकार सह शिक्षक रहे हैं बी.के.मिश्र। शालीन स्वभाव के मिश्र जी पटना साइंस कालेज के प्रिंसिपल भी रहे चुके हैं। वे वहीं के छात्र भी  थे। एक अन्य समकालीन पत्रकार लव कुमार मिश्र बताते हैं कि उन्होंने दोनों पेशों  के साथ न्याय किया। कालेज और अखबार के दफ्तरों में सामंजस्य बनाए रखा। बी.के. मिश्र ने 1972 में पटना के सबसे बड़े अंग्रेजी दैनिक ‘इंडियन नेशन’ से कैरियर शुरू किया था। 1987 में टाइम्स आफ इंडिया में लिखना शुरू किया। अब भी जारी है। उन्होंने अब तक 20 लाख शब्द लिखे हैं। दूसरों पर लाखों शब्द लिखने वाले पत्रकारों  पर भी यदाकदा कुछ शब्द लिखे ही जाने चाहिए। मिश्र जी की 1977 की एक रपट के कारण तो तत्कालीन प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई को जेपी से मिलने पटना आना पड़ा।

इससे पहले भी मैंने उन पत्रकारों पर  लिखा है, जिन्होंने कभी मुझे प्रभावित किया। बी.के. मिश्र की नब्बे प्रतिशत रपटें शिक्षा से संबंधित रहीं। हालांकि अन्य विषय पर भी याद रखने लायक रपट उन्होंने लिखी।

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मिश्र जी की 1977 की एक रपट के कारण तो तत्कालीन प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई को जेपी से मिलने पटना आना पड़ा। उन दिनों पूर्व सांसद व समाजवादी नेता किशन पटनायक के संपादकत्व में ‘सामायिक वार्ता’ नामक पाक्षिक विचार पत्रिका पटना से ही निकलती  थी। किशन जी ने जय प्रकाश नारायण का एक लंबा इंटरव्यू किया था। जेपी ने कहा था कि यदि सरकार चुनाव घोषण पत्र लागू नहीं करती है तो एक बार फिर आंदोलन होगा। हम सरकार को एक साल का समय देते है।

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इस इंटरव्यू के विषय वस्तु को आधार बना कर बी.के. मिश्र ने इंडियन नेशन में एक प्रभावकारी रपट छापी। मोरार जी भाई जेपी से मिलने पटना आ गए। शिक्षा की समस्याओं को लेकर सकारात्मक-सुझावात्मक ढंग से रिपोर्टिंग करने के कारण राज्यपाल तथा अन्य संबंधित लोग बी.के. मिश्र की रपटों को गंभीरता से लेते थे। कई बार राज्यपाल उनसे विचार-विमर्श भी करते थे। राजेंद्र माथुर कहा करते थे कि रिपोर्टर ऐसा हो जो मिल कर भी खुश करे और लिख कर भी। ऐसे ही पत्रकार हैं बी.के.मिश्र। (फेसबुक वाल से साभार)

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